#बचपन की यादें#

मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया,

हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया,

बरबादियों का शोक मनाना फ़जूल था

बरबादियों का जश्न मनाता चला गया |

सच,  ज़िन्दगी को खुल कर जीना चाहिए |  दुख – दर्द, उतार-चढ़ाव तो ज़िंदगी में आते-जाते रहते हैं। इनको लेकर चिन्ता और फिक्र करने की कतई आवश्यकता नहीं हैं बल्कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपने आप पर संयम रखना हैं और खुल कर जीना हैं। यही ज़िंदगी है |

 रफी साहब का उपरोक्त  गाना मुझे बहुत प्यारा लगता  है । यह गीत मैं जब भी सुनता हूँ ,  यह मेरे अंदर एक शक्ति भर देता है | सच कहूँ तो यह गीत  मुझे बहुत प्रेरित करता है |

मैं अब 65 साल का हूं। आज भी यह गीत  मेरे  ज़िंदगी के सफर को एक नया आयाम देता है |

मैं जब भी उदास होता हूँ तो इस गीत को सुनता हूँ और मुझे सुकून मिलता  है | मुझे ऐसा लगता है कि इस गीत को सदा गुनगुनाता रहूँ ।

यह गीत फिल्म “हम दोनों” का है | मैं रफ़ी साहब को धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने इस गीत को अपना स्वर दे कर इसे अमर बना दिया और साथ ही जय देव साहब को धन्यवाद जिन्होंने इस गाने को  सुंदर संगीत से सजाया है |

इसके  साथ ही गीतकार साहिर साहब को दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूँगा जिन्होंने इतने खूबसूरत गीत लिखे  |

इस फिल्म को याद कर मुझे एक पुराना वाकया याद आ रहा है, जिसे मैं यहाँ सुनाना चाहता हूँ |

 स्कूल के दिन:

जब मैंने पहली बार इस फिल्म को देखा था, उस समय मैं स्कूल में पढ़ रहा था | उन दिनों मैं रांची मे था और कंपनी के  क्वार्टर मे हमलोग रहते थे |  हमारे सोसाइटी मे एक क्लब था – “मनभावन क्लब’ | इस क्लब मे समाचार पत्र, मैगज़ीन और बहुत सारी किताबें उपलब्ध थी |

हम अपने चॉइस के किताब घर  ले आते और पढ़ कर वापस कर देते थे  और इसके अलावा क्लब के  तरफ से महीने के अंत मे एक फिल्म भी दिखाई जाती थी |  वो भी खुले मैदान मे |

उन दिनों प्रॉजेक्टर और सफ़ेद कपड़े का स्क्रीन होता था |  हम सभी बोरा या चादर लेकर जाते और खुले आकाश  के नीचे ज़मीन पर चादर बिछा कर बैठ जाते थे | ठंड के दिनों में ठंड से ठिठुरते हुए दोस्तों के साथ चादर ओढ़  कर फिल्म देखने का अलग ही मज़ा था |

याद है वो दिन | कड़ाके की ठंड थी और हम दोस्तों ने एक साथ फिल्म देखना का प्रोग्राम बनाया था, जो उस क्लब की ओर से दिखाया जाना था |  ठंड से बचने के लिए हमने एक तरकीब निकाली थी | घर से एक कंबल और मफ़लर चुपके से निकाला और चल दिये खुले मैदान में फिल्म देखने |

सोचा था कि रात 10 बजे तक वापस आ जाएंगे और कंबल वापस अपनी जगह पर रख देंगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा |

एक दोस्त ने मूँगफली का और दूसरे  दोस्त मूढ़ि का इंतजाम किया | फिल्म देखते हुए मूँगफली खाने का मजा ही कुछ और है |

सही टाइम पर फिल्म शुरू हो गई और हम सब  दोस्त मूँगफली खाते हुये फिल्म का  मज़ा ले रहे थे /  फिल्म तो ज्यादा समझ नहीं आती थी लेकिन बचपन के दिनो में वैसे माहौल को जीने का एक  अलग ही मज़ा था |

हाँ, तो फिल्म शुरू हो चुकी थी, रात भी हो चली थी और क्लब के मैदान में बिलकुल अंधेरा था |  सिर्फ प्रॉजेक्टर की आवाज़ और फिल्म के सीन चल रहे थे | हम लोग मूँगफली खाते हुए  सिनेमा का मजा ले रहे थे |

करीब आधी फिल्म तो मजे लेते हुए देख ली,  तभी अचानक बारिश शुरू हो गई, और बिजली चली गई | और उस अंधेरे  में चारो  तरफ अफरा – तफरी मच गई | हम सभी अपनी कंबल को समेटे अंधेरे में ही  सुरक्षित जगह ढूँढने की कोशिश कर रहे थे और अंधेरा  होने के कारण एक दूसरे से टकरा रहे थे |

फिर भी फिल्म देखने का जुनून:

हम लोग  किसी तरह क्लब के छत के नीचे आ गए और बरिस बंद होने का इंतजार करने लगे | लेकिन तभी बिजली आ गई और फिर धीरे धीरे सब कुछ सामान्य होने लगा | लेकिन बारिश अभी भी हो रही थी | हम सभी छत की ओट में खड़े हो कर बरिस के रुकने का इंतज़ार करने लगे |

हमारा बचपन का जोश ऐसा कि ऐसी हालात में भी पूरी फिल्म देखने का दृढ़ संकल्प था | अंततः बारिश बंद हो गई  और फिल्म दोबारा शुरू हो गया | हम सभी ठंड में अपने अपने कंबल ओढ़ कर फिल्म का मजा ले रहे थे |

लेकिन अफसोस ,इसी बीच मेरी आँख लग गई और मैं खुले मैदान मे घोड़ा बेच कर सो गया | कब फिल्म खत्म हुई मुझे याद नहीं | परंतु जब मैं आँख मलते हुए उठा तो अपमे को मैदान में अकेला पड़ा पाया |  मेरा कंबल गायब था | किसी ने मुझे बोरा ओढा दिया था और कंबल लेकर भाग गया था |

उसके आगे की  कहानी मत पूछिए | कंबल के खोने और रात भर घर से गायब रहने के कारण मेरी अच्छी तरह कुटाई हुई | मेरा दोस्तों के साथ फिल्म देखने का मजा जाता रहा |

जब भी वो घटना मुझे याद आती है मेरे होठों पर एक मुस्कान बिखर जाता  है | सच, वो भी क्या बचपन के दिन थे जब हम  टीप- टिपाते  बारिस में भी पूरा फिल्म देख कर ही चैन पाते थे |   

आज ज़माना बदल गया है। आज दोस्तों के पास समय नहीं है। सभी की व्यस्त ज़िंदगी में बस भागम- भाग है।

परंतु  बचपन की यादें, इस भागम – भाग भरी ज़िंदगी में आज भी नई ऊर्जा और ढेर सारी खुशियाँ प्रदान करते है |

यह ब्लॉग मेरे अनुभवों और यादों को साझा करने का एक प्रयास है। आपके विचारों और अनुभवों का स्वागत है!

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Categories: मेरे संस्मरण

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4 replies

  1. NICE 💚🧡♥️

    Blessings and Happy monday

    Greetings 🇪🇸

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