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एक बार की बात है, एक साधु नदी के किनारे पानी पीने गया। पानी पीने के बाद, वह नदी के किनारे एक पत्थर पर सिर रखकर लेट गया और आराम करने लगा।
उसी समय, पानी भरने के लिए कुछ महिलाएं वहां आईं। साधु को आराम करते हुए देखकर, उनमें से एक ने कहा, “हम्म… सब कुछ त्याग कर साधु बन गए, लेकिन तकिया की जरूरत नहीं छोड़ पाए। पत्थर ही सही, उसे सिर के नीचे रख लिया।”
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साधु ने उन शब्दों को सुना और तुरंत उस पत्थर को फेंक दिया। यह देखकर दूसरी महिला बोली, “साधु बन गए, लेकिन गुस्सा नहीं छोड़ पाए। देखो, गुस्से में पत्थर फेंक दिया।” साधु ने यह सुना और सोच में पड़ गया, “अब मैं क्या करूं?”
तभी तीसरी महिला ने कहा, “यह नदी किनारा है। हमारे जैसी महिलाएं पानी भरने आती रहेंगी और कुछ न कुछ कहती रहेंगी। यदि आप बार-बार उनकी बातों से प्रभावित होते रहेंगे, तो आप भगवान की आराधना कब करेंगे?” चौथी महिला ने बहुत सुंदर और अद्भुत बात कही, “क्षमा करें, लेकिन मुझे लगता है कि आपने सब कुछ छोड़ दिया, लेकिन अपने अहंकार को छोड़ नहीं पाए।
जब तक यह अहंकार बना रहेगा, दुनिया जो भी कहे, आप भगवान की पूजा में ध्यान नहीं लगा पाएंगे।”
साधु ने यह समझ लिया और उसने किसी की बातों की परवाह किए बिना ध्यान और भगवान की आराधना में लग गए। सच तो यह है कि लोगों का काम ही कुछ न कुछ कहना है।
अगर आप ऊपर देखकर चलें, तो लोग कहेंगे – “आप घमंडी हो गए हैं।” अगर आप नीचे देखकर चलें, तो लोग कहेंगे – “आप किसी को देखना ही नहीं चाहते।” अगर आप आँखें बंद करके प्रार्थना करें, तो लोग कहेंगे – “आप दिखावा कर रहे हैं।” अगर आप इधर-उधर देखें, तो लोग कहेंगे – “आप ध्यान नहीं लगा पा रहे हैं, आपकी आँखें इधर-उधर भटक रही हैं।” और अंत में, अगर आप इन सब से परेशान होकर खुद को अंधा बना लें, तो यही दुनिया कहेगी – “आपको अपने बुरे कर्मों का फल भुगतना पड़ रहा है।”
ईश्वर को मनाना आसान है, लेकिन लोगों को मनाना असंभव। इसलिए, अगर आप इस बात पर ध्यान देंगे कि दुनिया क्या कहेगी, तो आप अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएंगे। दूसरों की टिप्पणियों के प्रति पूरी तरह बहरे बन जाएं और अपने लक्ष्य पर ध्यान दें।
साधु की यात्रा: आत्मा की खोज
साधु की कहानी सिर्फ एक घटना नहीं है, यह हमारे जीवन के कई पहलुओं को दर्शाती है। जब साधु ने पत्थर फेंका, वह केवल एक पत्थर नहीं था, बल्कि वह उसके मन का बोझ था। लेकिन दूसरे की टिप्पणी ने उसे यह महसूस कराया कि क्रोध भी एक बोझ है, और जब तीसरी महिला ने उसे सत्य का आईना दिखाया, तब उसने समझा कि यह दुनिया हमेशा कुछ न कुछ कहेगी।
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समाज की धारणाएं और आत्मविश्वास
हमारे समाज में धारणाएं और टिप्पणियां हमेशा हमें घेरती रहती हैं। लोग हमारे हर काम का मूल्यांकन करते हैं, चाहे वह सही हो या गलत। यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें अपनी आत्मा की आवाज सुननी चाहिए, न कि दुनिया की बातों पर ध्यान देना चाहिए।
ध्यान और आत्मिक शांति
साधु ने अंततः समझा कि सच्ची शांति बाहरी चीजों में नहीं, बल्कि अंदर की स्थिरता में है। हमें भी यह सीखना चाहिए कि कैसे बाहरी शोर को अनदेखा करके अपने अंदर की शांति को खोजा जाए। साधु की तरह, हमें भी अपने जीवन में ध्यान और आत्म-आराधना को प्राथमिकता देनी चाहिए।
दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि दुनिया की बातों पर ध्यान देने के बजाय हमें अपने आत्मिक विकास और लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। साधु की यात्रा हमें प्रेरित करती है कि हम अपने जीवन में सच्ची शांति और संतोष को कैसे पा सकते हैं।
इस कहानी को पढ़ने के बाद, आपसे अनुरोध है कि आप अपने जीवन में भी ऐसी ही स्थिति का सामना करें और देखें कि आप कितनी आसानी से दूसरों की बातों को नजरअंदाज करके अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। यह कहानी न सिर्फ एक साधु की है, बल्कि हम सब की है, जो जीवन की यात्रा में अपने लक्ष्य को पाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं।
आपका ध्यान, आपकी साधना, और आपका आत्मविश्वास ही आपको दुनिया की टिप्पणियों से ऊपर उठाकर आपके लक्ष्य की ओर ले जाएगा। इसलिए, अपनी आत्मा की सुनें और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें।
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प्रेरणात्मक प्रस्तुति सर आपकी 🙏🏻
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बहुत बहुत धन्यवाद |👏👏
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NICE 💓💖💚
Blessed and Happy Saturday 🌞
Greetings from 🇪🇸
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Thank you so much for your support.
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सत्य कहा ये दुनिया किसी तरह जीने नहीं देती
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यही कटु सत्य है | हमारी समस्या , लोग क्या कहेंगे |
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