
“क्षणभंगुर जीवन” एक दार्शनिक कविता है जो जीवन की क्षणिकता और संसार की नश्वरता को उजागर करती है। यह रचना हमें याद दिलाती है कि ऐश्वर्य, महल, और मान-सम्मान सब यहीं रह जाते हैं—साथ जाते हैं केवल हमारे कर्म और प्रेम।
कविता एक आह्वान है, कि हम अपने जीवन में अभिमान, मोह और दिखावे से ऊपर उठकर सच्चे धर्म, करुणा और मानवता के मार्ग पर चलें। जीवन एक मुसाफिरी है—क्षणिक, लेकिन अर्थपूर्ण और सही दिशा में जिया जाए।
# क्षणभंगुर जीवन #
पल भर का हँसना, पल भर का रोना,
यही है ज़िंदगी का प्यारा खिलौना।
किसी से मिलना, और मिल के बिछड़ना,
घर है खाली और खाली है हर कोना।
देखते ही देखते, छूट जाएगा ये झमेला,
जिसे अपना समझा, वही छोड़ जाएगा अकेला।
साँसों की डोरी पता नहीं कब टूट जाए,
धरा का धरा रह जाएगा यह सब मेला
कब तक गिनोगे सोने चांदी के सिक्के,
कब तक भागोगे तुम सोहरत के पीछे
तुम छोड़ जाओगे ये महल और अट्टालिकाएँ
जब खाली हाथ जाओगे रहोगे आँख मीचे |
तेरे कर्मों का साया ही रहेंगे तेरे साथ,
तेरा धर्म और प्रेम ही बनेंगे तेरे हाथ ।
यहाँ तेरा और मेरा कहना सब बेमानी है
प्यार और मोहब्बत से ही बनेगी सारी बात
जिसने जन्म लिया, उसे तो मारना ही है,
इस दुनिया में रह कर कर्म करना ही है
अच्छे बुरे कर्मो का लेखा जोखा साथ जाएगा,
अपनी करनी का दंड सब को भरना ही है
मत कर अभिमान कि तू मालिक कहलाता है,
यहाँ आज का राजा कल रंक बन जाता है।
अच्छे कर्म करने वाले इसी दुनिया में
जीते जी ही भगवान का दर्जा पाता है |
जीवन तो बस मुसाफरी की एक दास्तान है
जो इसे जान गया वही सच्चा इंसान है |
क्षण भंगुर है सब कुछ, स्थायी कुछ नहीं
हम सब मानव यहाँ बस मिट्टी का सामान है |
( विजय वर्मा )
www.retiredkalam.com

Categories: kavita
Wow sir! bahut achchha likha hai aapne. Very thoughtful.
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बहुत-बहुत धन्यवाद आपके स्नेहिल शब्दों के लिए।
आपकी सराहना मेरे लिए प्रेरणा का काम करती है।
लेखन का असली आनंद तब मिलता है जब कोई पाठक दिल से जुड़े और भावों को समझे। 🙏🙂
शुभकामनाओं सहित! 🌸✍️
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very nice .
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Thank you so much.
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