“मन की बातें”

इस चित्र-प्रेरित कविता में एक नारी की मौन संवेदनाओं को उजागर किया गया है। वह अपने भीतर समाए भावों को शब्दों के बिना एक नन्हे पंछी के माध्यम से साझा करती है।

यह रचना जीवन की नीरव पीड़ा, आशा की झलक, और निस्वार्थ प्रेम के गहरे अनुभव को दर्शाती है। चित्र में जैसे रंगों की तपिश और कोमलता है, वैसे ही इस कविता में भी एक स्त्री की आत्मा की अनकही पुकार गूंजती है।

“मन की बातें”

नील चुप्पी में सिमटी हुई,
एकाकी बैठी एक बाला,
नयनों से नहीं, हृदय के स्वर से,
कह रही थी अपनी गाथा।

रक्तिम पंखों वाला पंछी,
अनजाने कब आन बसा था,
बिन बोले ही समझ गया वो,
मन का गीत जो अनकहा था।

धूप-छांव के रंगों जैसा,
जीवन उसका रंगमंच है,
पर आंखों में ठहरी करुणा,
कहती — “अब भी कुछ शेष है।”

नव जीवन की उम्मीदें,
घोंसले में दो अंडों सी,
सजाए बैठी सपनों को,
प्रेम की मूक बंदिशों सी।

ना वह बोली, ना वो चहका,
पर संवाद हो गया सजीव,
नारी की मौन व्यथा में,
गूँज उठा एक गीत अतीव।
(विजय वर्मा)

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  1. very nice

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