# यादों की उलझन #

यह कविता “यादों की उलझन “ उन भावनाओं की सजीव प्रस्तुति है जो हमारे मन में बसी रहती हैं—पुराने रिश्तों की कसक, अधूरी बातों की टीस और उन लम्हों की छाप जो कभी लौटकर नहीं आते। यह रचना हर उस दिल की कहानी कहती है जो तन्हाई में भी किसी अपने की याद को जिया करता है।

यादों की उलझन

कभी-कभी यूँ ही चुपचाप
दिल की गलियों में चल पड़ते हैं,
कुछ बीते लम्हे, कुछ अधूरी बातें,
जो आज भी सांसों में पलते हैं।

कोई आवाज़ नहीं, फिर भी सुनाई देते हैं,
वो हँसी के झरने, वो आँसू के गीत,
बिछुड़े रिश्तों की परछाइयाँ,
अब भी मेरी रूह को सीते हैं।

आरज़ू थी बस थोड़ी सी,
कि कोई एक बार मुड़ कर देख ले,
लेकिन वक़्त का पंछी उड़ गया,
अब सिर्फ यादें ही हैं जो साथ देती हैं।

कौन पूछता है इन आँखों की नमी को?
कौन समझता है दिल की खामोशी को?
जो पास होते हैं, वो अक्सर अनदेखा कर देते हैं,
और जो दूर चले जाते हैं,
वो ही सबसे गहरे याद आते हैं।

अब तो बस इन बंद पलकों के पीछे,
एक तस्वीर सी बसी रहती है,
और हर रात चाँद से कहता हूँ,
“क्या उन्हे मेरी तन्हाई सुनाई देती है?”
(विजय वर्मा)



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6 replies

  1. very nice .

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