# सीख रहा हूँ #

यह कविता आत्मबल और संघर्ष की शक्ति को दिखाती है। यह बताती है कि कठिनाइयाँ हमें सीखने का मौका देती हैं। हार मानने वाले केवल असफलता देखते हैं, पर सच्चे योद्धा गिरावट को अपनी ताकत बनाते हैं। इस रचना में आत्मविश्वास और सकारात्मकता को सुंदरता से दर्शाया गया है।

हार नहीं, सीख रहा हूँ

लोग कहते हैं कि मैं हार रहा हूँ,
पर मुझे लगता है, कुछ सीख रहा हूँ।
हर ठोकर से बन रही हैं मेरी राहें,
गिरकर भी मैं और बड़ा दिख रहा हूँ।

मेरी ख़ामोशी को कमजोरी मत समझो,
मेरी सहनशीलता को बुरा मत कहो।
आँसू की हर बूंद मेरी ताकत है,
हर दर्द मेरी जीत की इबारत है।

जवाब देना आता है, पर सब्र मेरी आदत है,
चुनौतियों से लड़ना ही मेरी इबादत है।
शोर मचाने वालों, मेरा इरादा तो देखो,
हँसते हुए आगे बढ़ जाना मेरी ताकत है।

दुःखों से हार मान लूँ, यह हो नहीं सकता,
मेरा उनसे तकरार है, यह कोई नहीं कहता।
यह वक्त भी बदलेगा, देख लेना तुम,
हारने की दुआ करने वाला चुप नहीं रहता।

मैं गिरकर उठता हूँ, और फिर बढ़ता हूँ,
हर बार मैं खुद को फिर से गढ़ता हूँ।
जो कहते हैं कि मैं हार रहा हूँ,
सच कहूँ, तो हार कर मैं जीत रहा हूँ।
(विजय वर्मा)

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4 replies

    • Thank you so much! 😊✨

      It is not just a composition of words but a reflection of unwavering self-belief and perseverance. Each line carries a profound lesson, reminding us that every setback is an opportunity to rise stronger.

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