
जीवन की चुनौतियों और संघर्षों का साहसपूर्वक सामना करने के संकल्प को बखूबी बयां करती यह कविता प्रस्तुत है। जी हाँ , हर परिस्थिति में आत्मविश्वास बनाए रखें और जीवन के हर रंग को दिल से अपनाएं, यही इस कविता का संदेश है ।
ज़िंदगी का सच
तेरे हर ग़म को मैं हँसी में बदलता चला गया,
ज़ख्म तो मिले पर नए सपने बुनता चला गया।
राह में कांटे मिले और मिले पत्थरों के सिले,
ठोकर खाकर भी, मैं गले लगाता चला गया।
रातों की तन्हाई में भी उजाले के साज़ खोजे,
अंधेरी रातों में रोशनी के दीप जलाता चला गया।
न मंज़िल की फ़िक्र थी, न रास्तों की बेबसी,
जज़्बात के जुनून से कदम बढ़ाता चला गया।
तेरे हर इम्तिहान को मैंने हँस कर कबूला,
मुसीबतों से भी मैं दोस्ती निभाता चला गया।
ये ज़िन्दगी, तुझे तो मैंने हमेशा गले लगाया,
तेरे हर रंग को मैं अपना समझता चला गया।
तूफानों में भी मैंने पतवार थाम रखी थी अपनी,
चुनौती को मैं अपना हमसफ़र बनाता चला गया।
न कभी हार से डरा, न जीत का कोई गुरूर किया,
जीना हमारा हक़ है, मानकर मैं जीता चला गया।
(विजय वर्मा

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Categories: kavita
बहुत सुन्दर रचना।🙏🙏
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बहुत बहुत धन्यवाद! 💕
आपके विचारों और सराहना के लिए ह्रदय से आभारी हूँ। 🙏🙏
आपकी प्रेरणा ही मेरे लेखन की ऊर्जा है।
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very nice
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Thank you so much..
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