
इस कविता में जीवन की यात्रा में आने वाली कठिनाइयों और अकेलेपन को गहराई से चित्रित किया गया है। जब हम अपने सपनों और इच्छाओं का पीछा करते हैं, तो अक्सर हमें अपने रास्ते में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
चाहे जीवन की राह में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, हमें हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए और अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए–यही कविता का संदेश है ।
ज़िंदगी की राहों पर
ज़िंदगी की राहों पर चलते हुए,
एक बार मैंने मुड़कर देखा,
हैरान हो गया, अरे क्या हुआ !
मैं तो अकेला ही चल रहा हूँ।
सपनों की उड़ानों में खोकर,
मैंने पाया, कुछ रंग बिखर गया,
चाहतें थी जो दिल में,
उनका कारवां कहीं रुक गया।
जिन अपनों का था साथ,
वो दूरियों में बदल गए,
जो बातें होती थी दिल से,
वो ख़ामोशियों में दब गए।
फिर भी, उम्मीद की एक किरण,
दूर कहीं चमक रही है,
जैसे कह रही हो,
मंजिल तुझसे दूर नहीं है।
इस तन्हाई के सफर में,
मैंने खुद को पहचाना है,
जो खो गया था कहीं,
वो अब फिर से जाना है।
ज़िंदगी की राहों पर चलते,
अब कोई डर नहीं रहा,
मैं अकेला ही सही,
मंजिल की ओर बढ़ रहा हूँ |
( विजय वर्मा )

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Categories: kavita
🧡♥️💝💖
Blessed and Happy afternoon 🌞
Greetings 🌹🌸🌷
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Thank you so much for your kind words.💕💕
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Beautiful and enjoyable poem.
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Thank you so much, dear.
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