बुरा न मानो होली है

दोस्तों ,

आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं …

एक बार फिर आज हमलोग होली मनाने जा रहे है | आज होलिका दहन है ,लेकिन बारिश होने की वजह से कुछ खास मज़ा नहीं आ रहा है | हालाँकि  हमारे जीवन में इसका बहुत महत्व है | इस अवसर पर इससे जुडी एक कहानी  मैंने पढ़ा था,  जो प्रस्तुत है …

वैसे तो हम लोग होलिका को एक खलनायिका के रूप में जानते हैं लेकिन हिमाचल प्रदेश में होलिका के प्रेम की व्यथा जन-जन में प्रचलित है |. इस कथा को आधार मानें तो होलिका एक बेबस प्रेयसी नजर आती है, जिसने प्रिय से मिलन की खातिर उसने मौत को गले लगा लिया |

हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का विवाह इलोजी से तय हुआ था और विवाह की तिथि पूर्णिमा निकली |. इधर हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रहलाद की भगवान् – भक्ति से परेशान था.

उसकी महात्वाकांक्षा ने बेटे की बलि को स्वीकार कर लिया.| बहन होलिका के सामने जब उसने यह प्रस्ताव रखा तो होलिका ने साफ़  इंकार कर दिया. |

फिर हिरण्यकश्यप ने उसके विवाह में खलल डालने की धमकी दी | बेबस होकर होलिका ने भाई की बात मान ली. और प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठने की बात स्वीकार कर ली.|  वह अग्नि की उपासक थी और अग्नि का उसे भय नहीं था.|

उसी दिन होलिका के विवाह की तिथि भी थी. | इन सब बातों से बेखबर इलोजी बारात लेकर आ रहे थे और इधर होलिका प्रहलाद को जलाने की कोशिश में स्वयं जलकर भस्म हो गई |.

जब इलोजी बारात लेकर पहुंचे तब तक होलिका की देह खाक हो चुकी थी | इलोजी यह सब देख कर सहन नहीं कर पाए और वे  भी उस  हवन में कूद पड़े .|

लेकिन  तब तक आग बुझ चुकी थी.| वे इस आग में जल तो नहीं सके, लेकिन बिरह की आग में जलते हुए  अपना मानसिक संतुलन खो बैठे | वे राख और लकड़ियां लोगों पर फेंकने लगे |. उन्होंने उसी हालत में बावले से होकर सारी ज़िन्दगी काट दी |

 होलिका-इलोजी की प्रेम कहानी आज भी देश के कुछ भाग खास कर हिमाचल प्रदेश के लोग याद करते हैं |

प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी  ढुंढी,  राधा कृष्ण के रास  और कामदेव  के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है।  कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग  शिव के गणों का वेश धारण करते हैं |  तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं।

कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना  नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।

होली का त्यौहार  मध्य भारत में बड़े धूम धम से बनाया जाता है | ..जिसमे मथुरा और बरसाने की होली काफी मशहूर है …इसमें लठमार होली के बारे में सारा विश्व जानता है | इस दिन  औरतें उनलोगों को लठ से मारती है जो मरद उसे रंग लगाने आते है |.

वैसे तो होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है । यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है तो है ही, लेकिन यह अब  विश्वभर में मनाया जाने लगा है |

यह प्रमुखता से  भारत   तथा नेपाल  में मनाया जाता है । लेकिन अब यह त्यौहार कई अन्य देशों में जहाँ अल्पसंख्यक  हिन्दू   लोग रहते हैं वहाँ भी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है |

हम भारतीये जिन देशों में गए इस परंपरा को साथ निभाते भी जा रहे है | हमारे होली की विशेषता और उसमे निहित जोश और उमंग को देख कर विदेशी लोग भी हम  भारतीयों के साथ  रंगों का त्यौहार का मज़ा लेते है |

होली  पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है । पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे  होलिका दहन भी कहते हैं।

दूसरे दिन,  हम रंगों और गुलाल से होली मानते है | इसे हम धुलेंडी व धुरड्डी,  धुरखेल या  धूलिवंदन  और भी   अन्य नाम से जानते है |

 लोग एक दूसरे पर  रंग, अबीर – गुलाल इत्यादि फेंकते हैं | ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है ।

ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं।  यही इस त्यौहार की विशेषता है |

एक दूसरे को रंग में सराबोर करने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के थोडा विश्राम करने अपनी थकान मिटाते है |

फिर शाम के समय नए कपड़े पहन कर हम लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं | उन्हें अबीर लगा कर , गले मिलते हैं | जो बुजुर्ग होते है उनके पैरों में अबीर डाल कर उनसे आशीर्वाद लेते है | एक दुसरे को मिठाइयाँ  खिलाते हैं

आज इस होली के अवसर पर मुझे अपने  बचपन की  होली बहुत याद आती है क्योकि  बचपन में होली की मस्ती कुछ ज्यादा ही रहती थी |

घर में लड़ झगड़ कर नई पीतल वाली  पिचकारी और रंग मंगवाते थे और साथ ही घर की  बहुत सारी हिदायते होती थी  कि होली कैसे खेलना है ..

लेकिन  यह क्या ? , सुबह हुआ नहीं कि दोस्तों की टोली घर के दरवाजे पर,…  और सब लोग जोर जोर से चिल्लाने लगे..  अरे भोला ,( मेरे बचपन का नाम) घर से बाहर निकलो, और बुरा ना मानो होली है जैसे नारे लगने लगे |

और मुझे मज़बूरी में घर से बाहर निकलना पड़ा और फिर हमलोग  जो  हुरदंग मचाते थे वो हम  कैसे भूल सकते है |

जब मौका मिलता एक बन्दे को सब मिलकर कीचड़ में पटक देते और देखते देखते ग्रुप के सभी दोस्त कीचड़ से सन जाते थे |  और तो और रंग भी चेहरे पर ऐसा लगता कि कोई तीसरा आदमी देख कर पह्चान भी नहीं पाता |

गजब का उत्साह होता था ,हमलोगों के हाफ पैंट वाले दोस्तों के ग्रुप में | बुशर्ट  सभी के इतने फाड़ दिए जाते कि  पूरा बदन झाकता था |

एक ढोलक या कनस्टर  का जुगाड़ करते और फिर  झाल बजा बजा कर होलिका गाते हुए बारी बारी से सभी के घर जाते | जिनके घर के सामने गाना बजाना चलता वो लोग बड़े प्यार से घर का बना हुआ पुआ और गुजिया  हमलोगों को खिलाता |

इस तरह दोपहर तक यह कार्यक्रम चलता था  और  फिर चेहरे से रंग उतारने  की  जद्दो जहद शुरू हो जाती |

सचमुच वो दिन बहुत याद आते है | ना ज़िन्दगी  की जद्दो-जहद …. ना चिता, ना फिकर, ना  गुस्सा ना नफरत .. सिर्फ प्यार और खुशियों के पल … और ना ही  कोरोना का  डर |

लेकिन आज के दौड़ में परिस्थितियां भले ही बदल गयी है, लेकिन इन पर्व को मनाने के पीछे की भावना नहीं बदली है  |  वो भावना है ख़ुशी को सब में बांटना ….

समाज के हर तबके को बराबरी का अधिकार देना …. उंच – नीच, जाती – धर्म के भेद भाव से ऊपर उठ कर सच्चे मन से पर्व मनाना और सबों में खुशियाँ बाँटना ताकि हमारा समाज और देश खुशहाल हो सके और आपसी सम्बन्ध मजबूत हो सके …..आपसी भाई चारा हमेशा कायम रह सके |

गुजिया की महक आने से पहले

रंगों में सराबोर होने से पहले

होली के नशे में डूबने से पहले

हम आप से कहते है सबसे पहले

हैप्पी होली… हैप्पी होली… हैप्पी होली 

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BE HAPPY….BE ACTIVE….BE FOCUSED….BE ALIVE…

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14 replies

  1. होली की शुभकामना सर 💐

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