
यह बात है उन दिनों की, जब हमारे बैंक में कम्प्यूटराइजेशन (computerization) हो रहा था | मुझे कंप्यूटर के बारे में ज्यादा अनुभव नहीं था | इसलिए मेरे अलावा कुछ और स्टाफ इसे लेकर काफी परेशान थे | हमारे मन में तरह तरह के नकारात्मक विचार आते रहते थे |
लेकिन मैं टोटका (superstition) में बहुत विश्वास करता था | मैं साधारणतया बैंक में नए कपडे पहन कर हरगिज़ नहीं जाता था | मेरा मानना था कि इससे हमारा ज़तरा खराब हो जायेगा और मैं परेशानी में पड़ सकता हूँ | इन्हीं कारणों से कभी कभी तो एक ही ड्रेस एक सप्ताह तक पहन कर बैंक जाता था | हकीकत में तो पता नहीं लेकिन इस तरह के टोटके में मैं बहुत विश्वास करता था |
कम्प्यूटराइजेशन (computerization) के बाद ब्रांच के सिस्टम का इंचार्ज मुझे ही बना दिया गया था , इसलिए रोज़ भगवान् को याद कर घर से निकलता था और बैंक से घर आकर भगवान् को धन्यवाद देता था |
उन दिनों मैं कोलकाता के मेन ब्रांच में पोस्टेड था और कोलकाता में अकेला ही रहता था | एक दिन तो ऐसा हुआ कि हमारे सारे कमीज़ “काम वाली बाई” ने वाशिंग मशीन में डाल दिया और मुझे तुरंत तैयार होकर बैंक जाना था |

मेरे पास कमीज़ तो थे लेकिन वे बिलकुल नए थे जिसे टोटका के कारण मैं उसे पहन कर नहीं जाना चाहता था | तभी मुझे अलमारी में एक पुराना कमीज़ दिख गया | उसकी कहानी भी अजीब है |
हुआ यूँ कि एक दिन मैं एक दोस्त से मिलने उनके घर गया था, लेकिन मेरा कमीज़ बारिस में भींग चूका था, तो मेरे दोस्त ने अपने एक पुराने कमीज़ को दिया था जिसे पहन कर वापस अपने घर आया था |
वह कमीज़ बिलकुल साधारण था लेकिन वह नया नहीं था, इसलिए पुराना कमीज़ होने के कारण उसे ही पहन कर बैंक चला गया , लेकिन मन ही मन डर रहा था कि आज का दिन कैसा गुज़रेगा ?
लेकिन यह तो कमाल हो गया, क्योंकि, आज का दिन बहुत शानदार गुज़रा था | हमारे बॉस ने आज मेरे काम की सराहना भी की थी | इसका परिणाम यह हुआ कि उस दोस्त का दिया हुआ वह पुराना कमीज़ मेरा पसंदीदा कमीज़ बन गया |
कुछ दिनों के बाद मुझे एक दूसरी शाखा का शाखा प्रबंधक बना दिया गया | जब भी कोई जोखिम वाला काम करना होता तो उसी कमीज़ को धारण कर लेता था और बड़े आराम से वो कठिन दौर गुज़र जाता था | मैं उस कमीज़ के प्रति अंध-विश्वासी हो गया था |
जब भी ब्रांच रिव्यु मीटिंग होता तो मैं खास कर उसी कमीज़ को पहन कर मीटिंग में जाता था | वो दोस्त बेचारा भी मुझे वह कमीज़ पहने देखता तो कभी भी उसे वापस मांगने की हिम्मत नहीं करता, शायद मेरे टोटके के बारे में उसे भी पता चल चूका था |

देखते देखते वह कमीज़ इतना पुराना हो गया कि पहनने लायक नहीं रह गया | लोगों को कभी कभी हमारे पहनावे पर आश्चर्य भी होता कि शाखा प्रबंधक होते हुए भी मैं क्यों ऐसी साधारण ड्रेस पहनता हूँ |
अब तो आलम यह हो गया कि उसके कालर फट गए | लेकिन मुझे उस कमीज़ को छोड़ने का मन नहीं कर रहा था | मैंने उसके कालर को रिपेयर कर उल्टा करवा दिया और जाड़े के दिनों में स्वेटर के नीचे पहनता ताकि उसके फटे और रफ्फु को ढका जा सके |
लेकिन अंत में उस कमीज़ का इतना दुखद अंत हुआ कि आज भी मुझे उस कमीज़ के लिए अफ़सोस होता है | ….हुआ यूँ कि एक बार मेरी पत्नी पटना से यहाँ आई हुई थी | मैं तो बैंक में था और उस कमीज़ पर मैडम की नज़र पड़ गयी | फिर क्या था, उन्होंने उसी दिन उसे कामवाली को देकर उसे पोछा बनवा दिया |
वो कमीज़ बहुत दिनों तक मेरी नज़रो के सामने रहा लेकिन पोछा बन कर | मैं उसे देखता था लेकिन अफ़सोस के सिवा कुछ नहीं कर सकता था …..😘😘
Categories: ##Memoire, मेरे संस्मरण
🥰🥰🥰
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Thank you so much.
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बहुत बढ़िया 👌
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बहुत बहुत धन्यवाद |
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[24/02, 7:24 pm] Jbb: https://wp.me/pfy9Vy-Z
[25/02, 12:24 pm] ..: https://http1161.wordpress.com/2024/02/25/%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%a4%e0%a4%be%e0%a4%82%e0%a4%a4-%e0%a4%8f%e0%a4%95-%e0%a4%b5%e0%a5%83%e0%a4%a4%e0%a4%be%e0%a4%82%e0%a4%a4/
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very nice.
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💯🌈
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Thank you so much.
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