
माँ, वह अद्वितीय भाव है जिसे शब्दों में पकड़ा नहीं जा सकता। माँ, वह स्वर्गीय संगीत है जो हमारे दिल को स्पर्श करता है। वह अपने बच्चों को स्नेहपूर्ण दुलार से पालती है, वह अपने बच्चों के प्रति हर तरह से समर्पित रहती है।
लेकिन जब माँ हमें अकेला छोड़ कर अनंत की ओर चली जाती है, तो हमारे दिल में कैसी खामोशी छा जाती है ! यह कविता उस अनुभव को जीवंत करने की कोशिश करती है और हमें भावनाओं की उड़ान में ले जाती है। आइए, हम सब मिलकर उस अनमोल प्रेम की बागीचा में विचरण करें।

एक घर की कहानी
एक छोटी सी झोपड़ी, और तीन कमरे,
हम सब के खुशियों का घर था यहीं।
धूप-छाँव के नीचे एक चारदीवारी थी
इसके छत के नीचे सिमटी दुनिया हमारी थी
इसमे रहती थी हम सबों की माँ
एक प्यारी सी माँ ,
जो अपने बच्चों की ख्वाहिश सुनती थी
फिर अपने मेहनत से उन्हें सँजोती थी
उनके गोद में हम सब सुकून पाते थे
उनकी ममता घर को स्वर्ग बनाते थे |
फिर हमारी ज़िंदगी में भूचाल आया
जिसने हम सब को खूब रुलाया
पर पिताजी के अकालमृत्यु के बावजूद,
माँ चट्टान की तरह खड़ी रही
हम सब बच्चो की छत्र-छाया बनी रही |
फिर हर सुबह सूरज छत पर चमकने लगा ,
रात में चाँदनी भी छत पर बिखरने लगी
माँ की ममता और सुकून गया जीत
हम सब गाने लगे खुशियों के गीत
लेकिन एक बार फिर बुरा वक़्त आया
जब हम सब को रोता बिलखता छोड़
माँ भी चल दी अनंत की ओर ,
अब इस घर का कोना कोना रोता है,
सब चुप रहते है, आँखों में आँसू होता है |
अब छत पर चाँदनी भी नहीं दिखती है
अब माँ की आवाज़ भी नहीं गूँजती है
मैं अपने आंसुओं को जतन से सहेजता हूँ
फिर उन्हे कागज़ के पन्नो पर बिखेरता हूँ
और निश्चिंत हो कविता लिखता हूँ
बिना यह सोचे ना यह जाने
कि कोई इसे पढ़ेगा भी या नहीं !
(विजय वर्मा )
BE HAPPY….BE ACTIVE….BE FOCUSED….BE ALIVE…
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Categories: kavita
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