#सात अजूबे मेरे बिहार में -2 

दोस्तों,

हम बिहार के  महान हस्तियों , धरोहर और एतिहासिक स्थानो के बारे में चर्चा कर रहे है , इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए यहाँ बिहार में स्थित  कुछ और विशेष स्थान के बारे में चर्चा करना चाहते है |  यह किसी अजूबे से कम नहीं है |

मंदिर में होती है मछली की पूजा

वैसे तो हिंदू धर्म में पूजा-पाठ वाली जगहों से मछली को दूर रखा जाता है , खासकर मंदिर में तो मछली वर्जित है | लेकिन बिहार में एक ऐसी जगह है जहां इसकी पूजा की जाती है।

जी हाँ, बिहार के मधुबनी में स्थित राजनगर पैलेस में एक मंदिर है जिसकी चोटी पर मछली की आकृति बनाई गई है। 

यहां दरभंगा महाराज के पूर्वजों द्वारा बनाए गए मंदिरों में मछली की पूजा होती है। राजनगर पैलेस को महाराज रामेश्वर सिंह ने बनवाया था। वह खंडवाला वंश के राजा था । मछली को  इस वंश में कुल देवता के रूप में पूजा की जाती है | यही कारण है कि इस वंश में मछली की पूजा होती है ।

दोस्तों, एक बात और भी जानने को मिला है कि गुजरात के बालसाड में भी एक मंदिर है जिसे “मतस्य मंदिर ” कहा जाता है | इसकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है |

वैसे तो भारत में ऐसे कई मंदिर हैं, जो अपने आप में अनोखे हैं। इन मंदिरों से जुड़ी एक विशेष कहानी भी होती है।

हमलोगो ने बहुत सारे अनोखे देवी-देवताओं के अनेक मंदिर देखे है, लेकिन हमें एक ऐसे मंदिर के बारे में जानने को मिला है, जहां व्हेल मछली की हड्डियों की पूजा होती हो।  आपको शायद इस पर यकीन न हो, लेकिन यह सच है | गुजरात में वलसाड तहसील के मगोद डुंगरी गांव में ऐसा ही एक मंदिर मौजूद है।

इस मंदिर को ‘मत्स्य माताजी’ के नाम से जाना जाता है। 300 साल पुराने इस मंदिर का निर्माण गांव के ही मछुआरों ने करवाया था।

इस मंदिर की भी एक दिलचस्प कहानी है | आपको जानकर हैरानी होगी कि मछली पकड़ने के लिए समुद्र में जाने से पहले यहां रहने वाले सारे मछुआरे पहले मंदिर में माथा टेकते हैं, तभी वो मछली पकड़ने जाते हैं।

यहाँ लोगों का यह भी मानना है कि जब भी किसी मछुआरे ने समुद्र में जाने से पहले इस मंदिर के दर्शन नहीं किए तो उसके साथ कोई न कोई दुर्घटना जरूर हो जाती है । हालांकि, यह तो आस्था की बात है |

इस मंदिर के निर्माण के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है | जिसके अनुसार 300 साल पहले गांव के ही एक निवासी प्रभु टंडेल जी को एक सपना आया था कि समुद्र तट पर एक विशाल मछली आई हुई है। उन्होंने  सपने में यह भी देखा था कि वह मछली एक देवी का रुप धारण कर तट पर पहुंचती है, लेकिन वहां आने पर उनकी मौत हो जाती है ।

बाद में जब गांव वाले के साथ प्रभु टंडेल जी ने वहां जाकर देखा तो सच में वहां एक बड़ी मछली मरी पड़ी थी। उस मछली के विशाल आकार को देखकर गांव वाले हैरान हो गए। दरअसल, वो एक व्हेल मछली थी। प्रभु टंडेल जी ने जब अपने सपने की पूरी बात लोगों को बताई तो लोगों ने उस व्हेल मछली को देवी का अवतार मान लिया और वहां मत्स्य माता के नाम से एक मंदिर का निर्माण किया गया । 

गांव के लोग बताते हैं कि प्रभु टंडेल जी ने उस मंदिर के निर्माण से पहले व्हेल मछली को समुद्र के तट पर ही जमीन के नीचे दबा दिया था। जब मंदिर निर्माण का काम पूरा हो गया तो उसने व्हेल की हड्डियों को वहां से निकालकर मंदिर में रख दिया।

ऐसा कहा जाता है कि प्रभु टंडेल की आस्था का गाँव के कुछ लोगों ने विरोध किया और उन्होंने मंदिर से संबंधित किसी भी काम में हिस्सा नहीं लिया | क्योंकि उन्हें देवी के मत्स्य रूपी अवतार पर विश्वास नहीं था।

यह भी कहा जाता है कि उसके बाद सभी गांव वालों को इसका गंभीर परिणाम भुगतना पड़ा था । दरअसल, उसी समय गांव में एक भयंकर बीमारी फैल गई और लोग परेशानी में घिर गए  |

तब प्रभु टंडेल के कहने पर लोगों ने मंदिर में जाकर मत्स्य देवी की प्रार्थना की और उनसे माफी मांगी।  इसके बाद धीरे-धीरे वो भयंकर बीमारी अपने आप ठीक हो गई।

कई लोगों का यह भी मानना है कि जब भी किसी मछुआरे ने समुद्र में जाने से पहले इस मंदिर के दर्शन नहीं किए तो उसके साथ कोई न कोई दुर्घटना जरूर हो जाती है।

अब इसे संयोग कहें या फिर अंध विश्वास , आप ही फैसला करें |

बक्सर का ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर :

इस की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इस मंदिर का मुख्य दरवाजा पश्चिम मुखी है जबकि देश के अन्य शिव मंदिरों का दरवाजा पूर्व दिशा में है।

वैसे तो हमारे देश में एक से एक चमत्कारी मंदिर है। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में चर्चा कर रहे है, जिसका चमत्कार देख कर मोहम्म्द गजनी को उल्टे पांव वापस लौटना पड़ा था। जी हाँ,  ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर , बिहार के बक्सर में  स्थित है |

एक ऐसा स्थल, जहां होता है शिव-शक्ति का मिलन

पौराणिक कथा के अनुसार, इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना ब्रह्मा जी ने किया था। इस मंदिर के बारे में जानकारी अनेकों पुराणों में भी मिलता है। शिव महा पुराण की रुद्र संहिता में यह शिवलिंग धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है। यही कारण है कि इसे मनोकामना महादेव भी कहा जाता है।

मंदिर का मुख्य दरवाजा पश्चिम मुखी

ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इस मंदिर का मुख्य दरवाजा पश्चिम मुखी है जबकि देश के अन्य शिव मंदिरों का दरवाजा पूर्व दिशा में है। मंदिए के पश्चिम मुखी दरवाजा को लेकर एक दिलचस्प कहानी है |  एक बार मुस्लिम शासक मोहम्मद गजनी इस शिव मंदिर को तोड़ने के लिए ब्रह्मपुर आया। तब स्थानीय लोगों ने गजनी को  मंदिर नहीं तोड़ने की गुजारिश की और कहा कि अगर वह  मंदिर तोड़ेगो तो बाबा तुम्हारा विनाश कर देंगे।

उल्टे पांव लौटा था मोहम्मद गजनी

लोगों के अनुरोध पर गजनी ने ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर को चैलेंज किया और कहा कि अगर रात भर में मंदिर का प्रवेश द्वार पूरब से  पश्चिम की ओर हो जाएगा तो वह मंदिर को छोड़ देगा। अगले दिन जब वह मंदिर तोड़ने के लिए आया तो वह देखकर दंग हो गया। उसने देखा कि मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम की तरफ हो गया है। इसके बाद वह वहां से हमेशा के लिए चला गया।

मनोकामना महादेव भी कहा जाता है

लोगों में यह आम धारणा है कि  इस ब्रह्मेश्वर नाथ के दरबार में जो भी आता है, उसकी मनोकामना पूरी हो जाती  हैं। इसलिए इन्हें मनोकामना महादेव भी कहा जाता है। एक बात और खास है कि  यहां जलाभिषेक का महत्व सालों भर है | हालांकि  सावन में कांवड़ियों का जलाभिषेक का विशेष महत्व माना जाता है। यही कारण है कि सावन महीने में बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ ( baba brahmeshwar nath ) का दर्शन करने लाखों की संख्या में लोग यहाँ आते हैं।

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