# अलमारी से झांकती किताबें # 

यूँ ना छोड़ ज़िन्दगी की किताब को खुला

बेवक्त की हवा ना जाने कौन सा पन्ना पलट दे ..

आज सुबह सुबह जब मैं पार्क में टहलने गया तो  कुछ दोस्त वहाँ  मिल गए , दुआ सलाम के बाद हमलोग एक साथ वाकिंग  ट्रैक पर टहल रहे थे, तो आपस में बात करना लाज़मी ही था /

शर्मा जी ने कहा … ज़माना बहुत बदल गया है | हम अपने ज़माने से आज के समय की तुलना करते है तो ज़मीन  – आसमान  का  फर्क पाते है, …. और आज लॉक डाउन  ने तो हमारी ज़िन्दगी  पूरी तरह बदल डाली है  | अब हर चीज़ ऑनलाइन हो गया  है ……… ऑनलाइन पढाई , ऑनलाइन खरीदारी,  ऑनलाइन मीटिंग . ऑनलाइन मनोरंजन , और तो और बहुत सारी किताबें भी अब ऑनलाइन हो गया है  |

वो भी क्या दिन थे जब किताबों की एक अलग ही दुनिया मौजूद रहा करती थी ……..हर उम्र,  हर पेशा और हर  विचार धारा,  के उपयुक्त ..भिन्न भिन्न तरह की किताबें |

जादू टोना, तंत्र मंत्र, साहित्यिक, जासूसी और रहस्य रोमांस, धार्मिक, संस्मरण और न  जाने कितने ही  तरह की पुस्तकें /

फूट-पाथ  पर बिकने वाली उन सस्ती पुस्तकों का भी  अपना अलग ही जलवा था …लोग उसे छुप कर पढ़ा करते थे ..चोरी..चोरी |

और बहुत सारी पत्र – पत्रिकाएं  भी थी |  हरेक पाठक वर्ग के लिए अलग अलग |

इंसान का सबसे बड़ा मित्र था तो किताब एवं पत्र पत्रिकाएं ही  | चाहे समय बिताने के लिए, चाहे सचमुच के ज्ञान प्राप्ति के  लिए या फिर यह  दिखाने  के लिए कि  मैं  बुद्धिजीवी वर्ग से हूँ,  लोग हांथो में हर समय कुछ न कुछ पुस्तकें रखते थे  | कभी कभी यह दिखाने के लिए  कि  मैं बहुत व्यस्त हूँ  लोग पुस्तक खोल कर बैठे रहते थे |

पहले पुस्तके पढना मज़बूरी भी थीं क्योंकि मनोरंजन के नाम पर बस पुस्तकें  ही थे | हाँ , मनोरंजन के नाम पर फिल्मे भी थी,  पर हर जगह हर आयु वर्ग के लिए वो  सुलभ  नहीं थे | फिल्म देखना.. खासकर बच्चो एवं युवाओं के लिए एक मुश्किल काम था |

एक तो घर वालों से छुप – छुप कर सिनेमा हॉल में जाना पड़ता था,  दुसरे पैसे भी खर्च करने पड़ते थे | अगर फिल्म नयी हो तो मत पूछिये  …धक्कम – धक्का ,भीड़-भाड़  और टिकट ब्लैक में खरीदना विरले ही कर पाते थे |

एक और साधन था मनोरंजन का …जी हाँ,  रेडियो |  लाख ..घडघडाता हो …आवाज़ कभी कभी धीमी हो जाती हो, ( रेडियो स्टेशन ठीक से नहीं पकड़ने के कारण ) पर उसका एक अलग ही क्रेज़ था |

बुधवार को रात आठ बजे से “बिनाका गीत माला”  रेडियो सिलोन से प्रसारित होता था | इसे प्रस्तुत करने वाले अमिन सयानी की खनकती आवाज़ ,घर घर में पहचानी जाती थी |  फिर विविध भारती , आकाशवाणी से …हर घंटे समाचार | अगर आप चौपाल (आकाशवाणी पटना) सुनते होंगे तो मुखिया जी और बुधन भाई ज़रूर याद होंगे | भोजपुरी नाटक  …लोहा सिंह (रामेश्वर सिंह कश्यप , प्राचार्य जैन कॉलेज ,आरा  द्वारा लिखित एंड मंचित ) को सुनने के लिए लोग हफ्तों इंतज़ार करते थे | याद कीजिये उसके पात्र …फाटक  बाबा, खदेरन की मदर,  बुलाकी सिंह ..क्या मज़ा आता था सुनकर | 

हाँ, उस समय टेलीविज़न का आगमन  तो हो चूका था  पर यह बड़े शहरों तक ही सिमित था | 

अब वापस पुस्तक  पर आते हैं |

जब भी लोग सफ़र पर निकलते थे.. .ट्रेन का सफ़र हो या बस का …पिकनिक हो  या सभा – सेमीनार,  पास में पुस्तकें और मैगज़ीन  ज़रूर रखते थे |  ज्ञान बढाने  के लिए या  पढने के लिए या फिर टाइम पास करने के लिए |

पुस्तकें या पत्रिकाएँ हर आयु वर्ग का लिए मौजूद रहता था | बच्चो की पत्रिकाएँ …चंदामामा , नंदन, बालक…लोटपोट. पराग, फैंटम  या मैड्रक की कार्टून वाली किताबें | बच्चे इनके  दीवाने  रहते थे |

भूत –प्रेत,  तिलस्म, ऐयारी, विक्रम -वेताल  की किताबें बहुत पॉपुलर थी उस समय | इस सब का एक विशेष पाठक वर्ग था  | मुझे याद है बाबु देवकी  नंदन खत्री की तिलस्म वाली पुस्तकें …”भूत नाथ”,  कुल १८ भाग में छपा था | लोग उसके छपने का इंतज़ार करते थे | बाद में उसपर  चंद्रकांता संतति नामक  मशहूर सीरियल भी बना था |

जासूसी किताबों का भी अलग क्रेज़ था |  इबने सफी (बी.ए .) की  जासूसी दुनिया , वेड प्रकाश कम्बोज एवं कर्नल रंजित की जासूसी वाली किताबें ,( हालाँकि उस समय हम बच्चो को पढने की मनाही थी पर अपनी  स्कूल की किताबों में छुपा कर घर लाते  और छुप छुप कर पढ़ा करते थे ) का भी काफी क्रेज़ था |

रूमानी एवं प्रेम से परिपूर्ण  कहानियों  एवं उपन्यासों का अलग संसार मौजूद था |

गुलशन नंदा , कुशवाहा कान्त,  रानू …कई मशहूर नाम थे | अगर सुखांत (happy ending ) वाले उपन्यास पढने हो तो फिर गुलशन नंदा , नहीं तो फिर कुशवाहा कान्त या रानू  तो थे ही |

गंभीर साहित्य और उपन्यास, कहानी या कविता – संग्रह इत्यादि तो पाठ्यक्रम में पढाये जाते थे | उनमे प्रेमचंद,  दिनकर,  महादेवी वर्मा , सुमित्रानंदन पन्त  और …अनगिनत नाम थे |

मुझे  अमृत लाल नागर की “अमृत और विष”  तथा कवियत्री अमृता प्रीतम की “रसीदी टिकट” बहुत पसंद थे | ये सब किताबें स्कूल की लाइब्रेरी में उपलब्ध रहते थे | इनका भी एक  विशेष पाठक  वर्ग था जो साहित्य चर्चाओं और कवि  सम्मेलनों का लुफ्त उठाता  था और अपने बुद्धिजीवी होने का दम भी भरता था …| 

धार्मिक पुस्तकों की बात की जाये और “गीता प्रेस” गोरखपुर की चर्चा न हो भला,  यह कैसे हो सकता है | रामायण, राम चरित मानस , महाभारत इत्यादि पुस्तकों को सस्ते दामों पर आम जनता में सुलभ तो कराया ही,  साथ ही साथ देश भक्ति एवं चरित्र निर्माण की पुस्तकों को भी छाप कर घर- घर पहुँचाने का श्रेय भी गीता प्रेस को ही जाता है |

बच्चो के लिए बाज़ार  में आई “कॉमिक्स” एवं “कार्टून”  की पुस्तकें बच्चों में तो काफी लोकप्रिय थे ही,  पर ये अन्य आयु वर्ग में भी पढ़े जाते थे | चाचा चौधरी को भला कौन भूल सकता है |

पहले हर चौक – चौराहे पर बुक स्टाल हुआ करते थे | कहीं भी  हाट  बाज़ार लगा हो या भीड़ – भाड़ वाले जगहों में ज़मीन  पर ही पुस्तकों की दूकान  सज जाती थी और लोग इन्हें देखते और ख़रीदा भी करते थे |

हमारे समय में पुस्तकों एवं पत्रिकाओं की चलती फिरती दूकान भी होती थी | बेचने वाले हाथो में, झोले में किताबों को लेकर ट्रेन में बस में या चौक – चौराहों पर पुस्तकें बेचा करते थे |

मनोहर पोथी से लेकर अंग्रेजी सिखाने वाली पुस्तकें  या देसी दवा या कढाई – बुनाई सिखाने वाली पुस्तके भी  उसके पास उपलब्ध होती थी | हाँ, जनरल नॉलेज सिखाने वाली किताबें भी वह रखता था |

हालाँकि आज भी किताब की दुकाने हैं, पुस्तके है  और  उसे पढने वाले लोग भी है पर उसे खरीदने वाले, पढने वाले और अपने बुक सेल्फ में सजा कर गर्व करने वाले लोगों की संख्या काफी कम हो गयी है ..|.

अब तो किताबें ऑनलाइन हो गई है,  google सर्च  करते है , और डाउनलोड कर पढ़ लेते है.. लेकिन मेरे समय में तो हमें याद है कि किताब को  हमेशा बगल में दबाए रखते थे या पढ़ते – पढ़ते छाती पर किताब रख कर ही सो जाते थे और फिर जब नींद खुलती थी तो फिर पढना चालू |

अब तो सब कुछ ऑनलाइन हो गया है, लेकिन किताब के प्रति वो भावनाएं समाप्त हो गई है | अब तो ऑनलाइन स्कूल भी हो गया है , और सभी रिश्ते गौण हो गए है .||..

आप को क्या लगता है …मैं ठीक  कह रहा हूँ न  ?  

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BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

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12 replies

  1. christinenovalarue's avatar

    🩶

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  2. I personally feel that technology are making young generation empty from inside.

    Like people are more bound to their phones, and it’s effecting their mental health.

    When we get engage in good habits like book reading and get involved with it. We are taking care of our mental health.

    I make sure to give atleast 2 hours to book reading daily

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