# समय का आईना #

यह कविता समय के साथ हमारे रिश्ते का आईना है। हम अक्सर उसकी कमी की शिकायत करते हैं, पर सच्चाई यह है कि समय सबको बराबर मिलता है—धूप की तरह, जो हर आँगन में एक-सी उतरती है। फर्क बस इतना है कि हम अपनी आदतों, टालमटोल और प्राथमिकताओं की दीवारें खड़ी कर देते हैं, जिससे रिश्तों की जड़ों तक पानी नहीं पहुँच पाता।

कविता हमें याद दिलाती है कि यदि हम शिकायत छोड़कर समय को दिल में बसाना सीख लें, तो वह यादों, अपनापन और रिश्तों की गर्माहट में हमेशा जिंदा रहेगा।

समय का आईना

शिकायत सबकी एक सी है—
समय कटता ही नहीं,
दिन की थाली में
पल जैसे चावल के कुछ दाने—
गिने-चुने, अधूरे और अनजाने।

हम कोशिश करते हैं
इन पलों को बाँटने की,
पर वक़्त का यह सुनहरा सिक्का
कभी खुलता ही नहीं,
बस जेब में खनकता रहता है,
और हम सोचते हैं—
शायद कल खर्च कर लेंगे…

इंसान दोहरी बातें करने का आदी है,
अपने आईने से कहता है—
“काम इतने हैं कि साँस लेने का वक़्त नहीं…”
और दोस्तों से कहता है—
“मिलने की फुर्सत ही नहीं मिलती!”

पर सच तो यह है—
समय तो हमेशा पास होता है,
धूप की तरह,
जो हर आँगन में बराबर उतरती है।
हम ही दीवारें खड़ी कर लेते हैं
अपनी आदतों की,
टालमटोल की,
और रिश्तों की जड़ों में
पानी देना भूल जाते हैं।

काश…
एक दिन हम शिकायत छोड़ दें,
और अपनी हथेलियाँ खोल दें,
ताकि समय उँगलियों से फिसलकर खो न जाए,
बल्कि दिल में ठहर जाए—
यादों की खुशबू बनकर,
रिश्तों की गुनगुनाहट बनकर,
और जीवन की कहानी में
एक सुनहरी पंक्ति बनकर।

(विजय वर्मा)



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12 replies

  1. Dear Pandit Ji,
    I found your post quite interesting.

    Thanks for liking my post ‘Aamti’. 🙏

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  2. very nice .

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  3. Dear Verma Ji
    I found your post quite interesting.

    Thanks for liking my post ‘SilenceTwo’. 🙏

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