
यह एक भावनात्मक और दार्शनिक कविता है, जो जीवन में छूटे हुए रिश्तों, टूटे सपनों और अधूरी ख्वाहिशों को स्वीकार करने का संदेश देती है। यह रचना बीते कल को जाने देने, दर्द को अपनाने, और वर्तमान में प्रेम और विश्वास की एक नई शुरुआत करने की प्रेरणा देती है।
इसमें एक गहराई है—कि ज़िंदगी अधूरी ही सही, लेकिन उसमें भी सुंदरता और अवसर छिपे होते हैं। कविता पाठक को आत्म-स्वीकृति और प्रेम की ओर ले जाती है, जहाँ वह पुराने ज़ख्मों को छोड़कर नए रिश्तों की रोशनी में जीने लगे।
जो बीत गया…
जो बीत गया, उसे बीतने दो,
जो छूट गया, उसे छूटने दो।
मेरे दिल को उन्हें दुखाने दो,
दर्द को भी ज़रा मुस्कुराने दो।
जो साथ था, अब दूर हो गया,
इस भीड़ में कोई अपना खो गया।
जो जाता वादा तोड़ उसे जाने दो ,
उनके यादों को अपना बनाने दो।
कुछ शिकायतें तो यहाँ हरदम रहेंगी,
हर रिश्ता कुछ न कुछ कहेगी।
अधूरेपन में ज़िंदगी जी जाने दो,
कोई आना चाहे तो उसे आने दो।
ख़्वाहिशों का ये समंदर गहरा है,
हर लहर में इक सपना ठहरा है।
अभी इस नशे को उतर जाने दो,
अपने आप को उन्हें आज़माने दो।
‘मीत’ को समझो और उसे पहचानो,
उसका हाथ ज़रा हौले से थामो।
आज किसी को अपना बनाने दो,
प्रेम की एक नई धारा बहाने दो।
(विजय वर्मा)
www.retiredkalam.com

Categories: kavita
very nice
LikeLiked by 2 people
Thank you so much.
LikeLiked by 1 person
बहुत बढ़िया 👍
LikeLiked by 2 people
बहुत-बहुत धन्यवाद! 😊
आपकी सराहना दिल को ख़ुशी देती है और लिखते रहने की प्रेरणा भी।
उम्मीद है मेरी रचनाएँ ऐसे ही आपके मन को छूती रहेंगी।
आभार सहित, स्नेह बनाए रखिएगा। ✍️🌸
LikeLiked by 1 person
Wow, beautiful!
Jo beet gaya, usse beet jaane do…
Such depth in such few words. Truly touched, sir.
LikeLiked by 1 person
Thank you so much for your kind words.
कुछ एहसास वक़्त के साथ भी नहीं बीतते —
उन्हीं लम्हों से कुछ पंक्तियाँ जन्म लेती हैं।
आपका स्नेह ही मेरी लेखनी को और संवेदनशील बना देता है।
शुक्रगुज़ार हूँ इस भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए। 🌷🙏
LikeLike