
“टूटे हुए पलों की छाँव में…” एक आत्म-संवाद की कोमल और भावुक कविता है, जो जीवन के उन लम्हों को समर्पित है जहाँ हम टूटते हैं, मगर फिर भी मुस्कुराना नहीं छोड़ते।
यह रचना रिश्तों की बिछड़न, यादों की सोंधी चिट्ठियाँ, और भीतर पलते आत्मबल को बड़े ही सुंदर शब्दों में बयां करती है।
यह कविता हर उस दिल के लिए है जो कभी टूटा, बिखरा, पर फिर भी अपने भीतर उजाले को सहेजे रहा। पढ़िए, महसूस कीजिए और अपने भीतर के साहस को सलाम कीजिए।
टूटे हुए पलों की छाँव में.
कुछ टूटी साँसों की थकन है सीने में,
कुछ बीते लम्हों की सर्द हवा बहती है।
फिर भी मुस्कानों का एक कोना रख लिया है,
ज़िंदगी के नाम एक सपना सहेज लिया है।
हर मोड़ पर बिछड़े हैं कुछ रिश्ते, कुछ अफ़साने,
पर यादों की भीगी चिट्ठियाँ अब भी लिए फिरता हूँ।
कुछ नम आँखों की मुस्कानें हैं, कुछ खामोश साज़,
इन्हीं से मैं अब अपना दिल बहला लिया करता हूँ।
भीड़ में गुम न हुआ, मेरी आवाज़ अब भी बाकी है,
कुछ सच, कुछ सवाल, कुछ सपने बचा रखे हैं।
थोड़ी सादगी, थोड़ी आग, थोड़ा जुनून है मुझ में,
इन्हीं में अपनी एक अधूरी कहानी छुपा रखी है।
ना सोना मिला, ना ताज मिला इस जीवन में,
पर खुद से मिलने का एक खूबसूरत अंदाज़ पाया हूँ।
राहें चाहे मुश्किल थीं, पर हार न मानी है मैंने,
देखो, टूट कर भी, मैं फिर से खड़ा हो पाया हूँ।
(विजय वर्मा )

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Categories: kavita
वाह्ह्हह्ह्ह्ह 👌👌
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धन्यवाद दिल से 🙏😊
आपकी सराहना ही मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा है।
यही जुड़ाव लिखने को और भी अर्थपूर्ण बना देता है। 🌸
आभार एवं स्नेह सहित 🙏💐
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very nice
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Thank you so much.
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Nice post 💜
Grettings regards 🌞
Good bless you 🌹
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