
यह कविता टूटे हुए सपनों की पीड़ा और उनसे उबरने की एक मार्मिक अभिव्यक्ति है। यह रचना हमें सिखाती है कि चाहे जितना भी टूट जाए, फिर से ख्वाब बुनना और ज़िंदगी को दोबारा सजाना हमेशा संभव है।
टूटे सपनों की कसक
टूटे सपनों की किरचों को,
पल-पल महसूस करते हैं हम,
आँसुओं के सैलाब में बहते हुए,
हर दर्द को सहते हैं हम।
उम्मीदें भले धुंधली सी हैं,
पर हल्की सी एक आस तो है,
बीते दिनों की मधुर स्मृतियाँ,
और ज़िंदगी की प्यास तो है।
दिल की गहराइयों में अक्सर,
तेरी यादें घुल सी जाती हैं,
सूनेपन के आलम में मुझे,
तेरी याद बहुत सताती है।
राहों में जब छा जाता है धुंधलका,
तेरी बातें सहारा बनती हैं,
मेरे मायूसी के घेरे में भी,
तेरे नाम की ज्योति जलती है।
चलो फिर एक बार हिम्मत करें,
बिखरे ख्वाबों को फिर से बुने,
कुछ अनकहे अरमानों से भरकर,
अपनी ज़िंदगी को फिर से जिएं |
(विजय वर्मा)

Categories: kavita
very nice .
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Thank you so much.
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Very nice 👏
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Thank you so much, Sir.
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हर किसी के सपने पूरे नहीं होते
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बहुत सही कहा आपने —
हर किसी के सपने पूरे नहीं होते, लेकिन अधूरे सपने ही हमें आगे बढ़ने की हिम्मत देते हैं।
कभी-कभी टूटे हुए ख्वाब ही हमें अपनी ताक़त और असली पहचान से मिलवाते हैं।
जो अधूरा है, वही तो हमें और जीने की वजह देता है।
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