# अनदेखा प्रेम #

यह कविता एक अनदेखे प्रेम के प्रति व्याकुलता और लालसा को व्यक्त करती है। कवि का मन एक अदृश्य चेहरा ढूँढ़ रहा है, जिसकी छवि धुंधली है, लेकिन उसकी उपस्थिति का अहसास गहरा और आत्मीय है।
यह कविता उस अनकहे और अनदेखे प्रेम की खोज है, जो दिल की गहराइयों में छिपा हुआ है और सपनों के संसार में झलक देता है।

अनदेखा प्रेम

कौन आया मेरे मन के द्वारे, पायल की झंकार लिए।
अनजाने से चेहरे पर, इक मधुर मुस्कान लिए।
मेरी आँखें ढूँढें जिसको, दिल भी न तो जान सके।
धुंधली-धुंधली है तस्वीर कोई कैसे पहचान सके।

याद करूँ तो याद न आए, बन सपना बिखर जाए।
बीते पल जब याद आए, तो मन मेरा सिहर जाए।
खोजूँ उसको हर आहट में, हर गली के मोड़ पर।
पर वो मूरत अनजानी सी, खो जाए मुझे छोड़ कर।

सपनों के संसार में विचरू, एक झलक पाने को।
मन की चौखट बैठी आशा, आतुर उसे बुलाने को।
कभी लगे वो पास खड़ी है, कभी लगे परछाईं है।
मन के तारों को छेड़ रही, ये रागिनी किसने गाई है।


कौन आया मेरे मन के द्वारे, पायल की झंकार लिए।
चुपके से दिल में बस जाए, एक अनोखा प्यार लिए।

( विजय वर्मा )



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