
इस ग़ज़ल में दिल की गहरी उलझन और उसकी अनकही तड़प को बयां किया गया है। एक ऐसा दिल जो अपने ही सवालों में खो गया है, खुद से ही सवाल करता है कि उसकी राह कौन तय कर रहा है |
कभी किसी की नज़र लग जाने का ख्याल, तो कभी अपनी मोहब्बत में खो जाने का एहसास—इन सबके बीच उसका ठिकाना कहीं खो गया है।
दिल की उलझन
ऐ दिल, सच-सच बता तू,
किसके इशारे पर चल रहा है,
क्यों अचानक मेरी ज़िंदगी का
हर मौसम बदल रहा है।
जो तूने न कहा, वो भी मैं सुनता रहा,
बेवजह ख्वाबों में, बस तुझको ही बुनता रहा।
जाने किसकी हमें लग गई नज़र,
इस शहर में ना अब अपना ठिकाना रहा।
बेबसी के आलम में दिल खो गया,
यादों के समंदर में वो बहता रहा।
हर लम्हा गुज़रता है तेरे बिना,
फिर भी ये दिल क्यों तुझे चाहता रहा।
खुदा की रहमत में भी अब कमी-सी है,
तेरी बेरुखी से दुनिया अधूरी-सी है।
खामोशियों का शोर है चारों तरफ,
दिल फिर भी तुझे पुकारता रहा।
मोहब्बत के सफर में खोया ये जहाँ,
बस तुझसे मिलने की आरज़ू बसी रही वहाँ।
ऐ दिल, सच-सच बता तू,
किसके इशारे पर चल रहा है।
(विजय वर्मा )
Categories: kavita
very nice.
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Thank you so much,
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nice words
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Thank you so much for your appreciation,
Your words mean a lot for me.
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Thankyou
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Stay happy and blessed.💕
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Thankyou
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