
यह कविता प्रेम और अनकही भावनाओं के गहरे स्पर्श को चित्रित करती है। अपने प्रिय के बारे में सवाल करता है, उनके रहस्यमय व्यक्तित्व को पहचानने की कोशिश करता है, फिर भी उन्हें पूरी तरह समझ नहीं पाता।
यह कविता उन सपनों की बात करती है, जिन्हें वास्तविकता में बदलने की चाहत होती है और प्रिय की यादों से भरी मिठास में जीने की ललक है।
कौन हो तुम ?
कौन हो तुम, जाना कभी नहीं,
क्या हो तुम, पहचाना कभी नहीं,
जानता हूँ तो बस इतना,
पता नहीं तुम्हें चाहता हूँ कितना?
हर आशिक का ख्वाब हो तुम,
हर प्रश्न का जवाब हो तुम,
काश यह सपना हकीकत हो जाए,
साथ जीना हमारी ज़रूरत हो जाए।
तुम्हारी हर मुस्कान में तो,
कई अनकही बातें छिपी होती हैं,
तुम्हारी हर सांस में, दोस्त,
कई अनसुनी धुनें बसी होती हैं।
सोचता हूँ, काश हमारे ख्वाब
हकीकत बन जाते तो कैसा होता,
तुम्हारे साथ बिताए हर लम्हे,
हमारी दास्तान की कहानी कहते।
तुम कौन हो, यह जान भी जाऊँ,
तो भला अब तुम्हें कहाँ ढूंढूंगा?
तुम्हारी यादों की मिठास ही काफी है,
अब तुम्हारा पता मैं किससे पूछूंगा।
(विजय वर्मा)

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Categories: kavita
दिल से बात तो दिल के लिए ही निकलता है। और वह दिल पर असर भी डालता है। बहुत बढ़िया 👌
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आपकी बात बिल्कुल सही है! जब कोई बात दिल से निकलती है, तो वह सीधे दूसरे दिल तक पहुंचती है और गहरी छाप छोड़ती है।
यही तो भावनाओं की खूबसूरती है। आपके इस स्नेह भरे शब्दों का तहे दिल से शुक्रिया! 🙏✨
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very nice.
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Thank you so much.
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