# मेरी कुछ यादें # 

माना मैं तुम्हारे नए शहर की पुरानी इमारत ही सही,

लोग आज भी मुझमे अपना बीता हुआ कल ढूंढते है |

रांची को हमने खूब जिया है |  तब हम खगौल (पटना) से नए नए रांची आये थे | स्कूल की पढाई समाप्त कर कॉलेज में एडमिशन लिया था |

रांची के आर एन डी कॉलेज में एडमिशन होते ही हमारे  दोस्तों के साथ एक हुड़दंग टोली बन गयी थी | नया नया कॉलेज का अनुभव था |

स्कूल के मास्टर जी के डंडे से छुटकारा पा कर कॉलेज की रंगीनियाँ हमलोगों को  पसंद आ रही थी | शायद हमलोगों को कॉलेज की हवा लग गयी थी  |

हमारा कॉलेज  रांची के धुर्वा इलाका में पड़ता था और हम चार पांच दोस्त मिनी बस के द्वारा घर से कॉलेज आना जाना करते थे |

लेकिन बस वाले को किराया नहीं देते थे | अगर कंडक्टर पैसा मांगता तो कह देते कि हमलोग स्टूडेंट है और वो  फिर दोबारा बस किराया मांगने की हिम्मत नहीं करता था |

एक दिन की घटना है कि कॉलेज जाने के लिए बस में चढ़ा था | उस बस में जो कंडक्टर था  वह दबंग टाइप का था | मेरे किराया देने से मना  करने पर वो जोर देकर बोला कि भाडा तो देना ही पड़ेगा |

थोड़ी तू तू  मैं मैं  होने लगी और अंत में हमलोग को भाडा देना पड़ा क्योंकि दुसरे बस यात्री उसके साथ हाँ में हाँ मिलाने लगे |

हमने भाडा तो दे दिया  लेकिन बस से उतरते वक़्त बस का नंबर नोट कर लिए … मेघदूत ट्रांसपोर्ट, no…. | हमलोगों को इस घटना से बहुत गुस्सा आ रहा था |  हम सब स्टूडेंट इसे अपने लिए बड़े शर्म की बात समझ रहे थे |  

हमने कॉलेज पहुँचते ही अपने दुसरे  दोस्तों से इस बात की चर्चा की और कहा — उस बस – कंडक्टर को सबक तो सिखाना ही पड़ेगा, वर्ना हमारे कॉलेज का जो  हुडदंग वाला इमेज है खराब हो जायेगा |

फिर क्या था,  हम करीब 20 – 25 लड़के चल दिए उस  बस-कंडक्टर को सबक सिखाने के लिए | कॉलेज से थोड़ी दूर पर ही एक गोलंबर था जहाँ से सभी मिनी बस गुज़रती थी |

हमलोग सभी वहाँ खड़े होकर उस बस को धुर्वा बस स्टैंड से वापस आने का इंतज़ार करने लगे | हमारे कुछ दोस्तों के हाथ में हॉकी स्टिक भी थी |

थोड़ी ही देर में वही बस आता हुआ दिखाई दिया | हमलोग रोड को ब्लॉक कर खड़े थे और जैसे ही मिनी बस वहाँ आई | हमलोग बस-कंडक्टर को बस से नीचे उतार लिया और उसकी जम  कर धुनाई करने लगे |

मुझे अफ़सोस भी हो रहा था कि हमारे एक साथी ने अपने हॉकी स्टिक से वार कर दिया था, जिसके कारण उसके सिर से खून बह रहे थे | हमारा तो सिर्फ उसे डराने का इरादा था ताकि वे लोग आने वाले दिनों में हमसे भाडा मांगने की हिम्मत नहीं कर सके |

बस-कंडक्टर  ने तुरंत पुलिस केस कर दिया और दोपहर तक वहाँ के  थाना से कुछ  पुलिस हमारे कैम्पस में आ गए  | लेकिन किसी स्टूडेंट की पहचान नहीं हो सकी और कॉलेज पर तो  कोई केस  बनता ही नहीं था | इसलिए मामला वही ख़त्म हो गया |

लेकिन वो कंडक्टर दबंग किस्म का था, वह इस घटना से शांत बैठने वाला नहीं था | अगले  दिन करीब एक बजे दिन में वह चार पांच गुंडे टाइप दोस्तों को लेकर कॉलेज कैम्पस में घुस गया | उस समय हमलोग कॉलेज कैंटीन में चाय पी रहे थे |

तभी किसी ने आ कर कहा – जवाहर को बाहर से आये चार गुंडे पीट रहे है | दरअसल जवाहर ने ही हॉकी स्टिक से उस बस कंडक्टर पर हमला किया था |

कॉलेज के सामने फुटबॉल ग्राउंड में जवाहर अकेला उन चार गुंडों से पिट रहा था और बाकी के शरीफ टाइप स्टूडेंट तमाशा  देख रहे थे,  लोकल गुंडों से पंगा कौन ले ?

तभी कैंटीन में हमलोग चार पांच दोस्त तय किया कि जवाहर को उन गुंडों से बचाना है और हमलोग वहाँ से भागते हुए जवाहर के पास पहुंचे जहाँ उसे चारो गुंडे घेर कर उस पर बेल्ट से वार कर रहे थे |

हमलोगों ने  आव ना देखा ताव,  बस उनलोगों से भीड़ गए और दोनों तरफ से महाभारत शुरू हो  गया | कॉलेज के बाकी लड़के जो अब तक तमाशा देख रहे थे,  उनलोगों के ज़मीर जाग गए | वे भला अपने कॉलेज के स्टूडेंट को मुसीबत में  कैसे देख सकते थे ?

फिर क्या था  40 – 50 स्टूडेंट्स एक साथ जब हो गए तो वे चारों गुंडे घबरा कर भागने लगे | .. लेकिन सभी स्टूडेंट में जोश आ चूका था  अतः भागते – भागते भी उन चारो की अच्छी तरह धुनाई हो गयी |

उसके बाद  हमलोगों ने उससे कहा — आइंदा,  हम स्टूडेंट पर आँख उठा कर भी मत देखना |  इस तरह हमलोगों ने जवाहर को ठुकाई होने से बचाया और साथ में जीत का जश्न भी मनाया |

लेकिन इतनी मार – पीट  और खून – खराबा देख कर मुझे बहुत बुरा लगा और आत्मग्लानि   भी हुई , क्योकि यह सब झगडा लड़ाई मेरे कारण ही हुआ था |

इसलिए उस दिन हमने अपने मन में कसम खाई कि गुंडागर्दी को छोड़ देंगे और अपनी पढाई पर ध्यान देंगे |

उस दिन के बाद हम महात्मा बुद्ध के प्रवचनों को आत्मसात करने लगे |

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Categories: मेरे संस्मरण

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12 replies

  1. हम भी विद्यार्थियो की किताबे एक के बैग से दुसरे मे रख देते थे खासकर लड़के और लड़कियो के आपस मे और झगड़े का आनंद लेते थे.

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    • जी, सही कहा आपने |
      यह स्वाभाविक है कि छात्रों के बीच ऐसे मजाक होते रहते हैं।
      हम भी वो पुरानी बातों को याद कर मुस्कुरा लेते है |😂😂

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  2. आपकी शानदार लेखनी को नमन 🙏

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    • धन्यवाद आपके हौसला अफजाई के लिए |
      आपका समर्थन हमें प्रेरित करता है और हमें और अच्छा लिखने की प्रेरणा देता है।
      हमें यह खुशी है कि हमारी लेखनी आपको प्रेरित करती है। आपका आभार! 🙏

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  3. Oh the ways of youthful college students! I note that at least one went on to be a respectable banker! LOL!

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    • Thank you so much, Doug.
      Ah, the unpredictable paths of youthful college students indeed. It’s always fascinating to see where life takes us. A respectable banker emerging from the midst of collegiate antics? Now, that’s quite the unexpected twist. It goes to show that our journeys can often surprise even ourselves. Here’s to the diverse trajectories and the unforeseen destinations they lead us to.
      Expected Cheers to the banker with a college past that probably makes for some entertaining stories.

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    • I admire no doubt it is a real fact Excellent 100% You are the best 🏆🎖️🏆

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  4. kabhi kabhi e Umar me bachpan ka bura kaam aata hai dukh to hota hai.Khusi to nahi milti.Bahut Sundar blog.Likha hua to sahi hai.

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