# मोहब्बतें बेच रहा हूँ# 

 

आज जब समाचार पत्र पर नजरे  जाती है तो ऐसा महसूस होता है कि आज नफ़रतों का बाज़ार गरम है | ज़्यादातर समाचार मन को दुख पहुँचने वाली ही होती है | ऐसा लगता है जैसे आपसी भाई-चारा और प्रेम मिटता जा रहा है |

दोस्तों , हमें इतना भी नीचे नहीं गिरना चाहिए कि कोई ऊपर उठाने के लिए और सहारा देने के लिए हाथ बढ़ाए तो वो हम तक पहुँचते पहुँचते रह जाये |

उन्हीं वेदनाओं को महसूस कराता है  मेरी ये कविता…  

   मोहब्बतें बेच रहा हूँ 

नफ़रतों के बाज़ार में मोहब्बतें बेच रहा हूँ

जी हाँ, गंजों के शहर में कंघा बेच रहा हूँ

खरीदार बेशक कम है, मोल जोल भी नहीं 

बस, अपना समान सस्ते  में बेच रहा हूँ 

नफ़रतों के बाज़ार में मोहब्बतें बेच रहा हूँ |

सामने वाली दुकान पर रौनक देख रहा हूँ

वहाँ ग्राहक की धक्का मुक्का देख रहा हूँ

झूठ, नफरत, धोखा महंगे बिक रहे है जहां

अपनी दुकान पर मोहब्बत के खरीदार ढूंढ रहा हूँ

जी हाँ, नफ़रतों के बाज़ार में मोहब्बतें बेच रहा हूँ |

इंसान -इंसान से डरा -डरा सा महसूस कर रहा है

जो थे दोस्त कभी, आज आँखें चुराते देख रहा हूँ

मार काट और आगजनी का बाजार गरम है यहाँ

माथे पर पानी का घड़ा लिए यूँ खड़ा देख रहा हूँ

मैं तो, नफ़रतों के बाज़ार में मोहब्बतें बेच रहा हूँ |

आज नफरत ने तो प्रेम की हत्या कर डाली है यारों

अपनी दुकान पर मोहब्बत को आँसू बहाते देख रहा हूँ

लोग मुझे नासमझ और नादान कह रहे है यहाँ,   

क्योंकि, मैं अंधो के शहर में आईना बेच रहा हूँ

जी हाँ, नफ़रतों के बाज़ार में मुहब्बतें बेच रहा हूँ

                               ( विजय वर्मा )

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# मैं और मेरी कलम #

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6 replies

  1. 🩵

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  2. Nice poem
    Perspectives are good regarding different things😊😊

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