
दोस्तों,
हम बिहार दर्शन के तहत बिहार के कुछ दर्शनीय स्थान के बारे में जानकारी शेयर करते रहते है | इस कड़ी में आज हम बोध गया के बारे में चर्चा करना चाहते है |
बिहार का गौरवशाली इतिहास रहा है | यहाँ की पावन धरती महात्मा बुद्ध की कर्म भूमि रही है | बिहार का उल्लेख वेद, पुराण और प्राचीन महाकाव्यों में भी मिलता है।
बिहार से ही बौद्ध धर्म की उत्पत्ति हुई है | हमारे बिहार के बोध गया में भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था |
बोधगया-
मुझे बहुत बार बोध गया जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | मैं जब भी गया जाता हूँ तो बोध गया ज़रूर जाता हूँ | यह गया से 15 किलोमीटर की दूरी पर है | यहाँ भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जिस स्थान पर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई वहां एक विशाल खूबसूरत प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर को महाबोधि मंदिर कहा जाता है।
बौद्ध धर्म के श्रद्धालुओं के लिए यह सबसे पवित्र स्थल है। यह भगवान बुद्ध के जीवन से संबंधित चार पवित्र स्थलों में से एक है। महाबोधि मंदिर परिसर में प्रार्थना, धार्मिक अनुष्ठान और ध्यान लगाने के लिए दुनिया भर से श्रद्धालु आते हैं।

महाबोधी मंदिर
बोध गया में महाबोधी मंदिर एक भव्य मंदिर है | इसकी ऊंचाई करीब 52 मीटर है और इसके अंदर भगवान बुद्ध की एक सोने की मूर्ति विराजमान है। यहां भगवान बुद्ध अपनी भूमिस्पर्श मुद्रा में हैं। ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध बोधगया में सात सप्ताह रहे थे । ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद जहां-जहां अपने पैर रखे, वे स्थल पवित्र हो गए ।
करीब 5 हेक्टेयर में फैले इस मंदिर परिसर में भव्य महाबोधि मंदिर के अलावा, वज्रासन, पवित्र बोधिवृक्ष और बुद्ध के प्रबोधन के अन्य छह पवित्र स्थल हैं। परिसर के दक्षिणी में सातवां पवित्र स्थान कमल का तालाब है।
महाबोधि मंदिर परिसर को यूनेस्को ने सन 2002 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है। बताया जाता है कि सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी से पूर्व में यहां एक मंदिर बनवाया था। इसके बाद कई बार इस मंदिर स्थल का विस्तार और पुनर्निर्माण होता रहा है | देश में गुप्तकाल से आज तक पूरी तरह से ईटों से बना यह सबसे प्राचीन बौद्ध मंदिरों में से एक है।

पहला सप्ताह
महाबोधि मंदिर के पश्चिम में पीपल का विशाल बोधि वृक्ष है। इस पवित्र वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला सप्ताह बिताया था। बताया जाता है कि सम्राट अशोक की बेटी संघमित्रा धर्म प्रचार के लिए जब श्रीलंका गईं तो अपने साथ बोधगया से मूल बोधि वृक्ष की एक शाखा ले गईं। इसे उन्होंने श्रीलंका के अनुराधापुर शहर में लगा दिया।
वह बोधि वृक्ष वहां अब भी है और माना जाता है कि वह दुनिया का सबसे पुराना वृक्ष है। ये भी मान्यता है कि बोधगया में अभी जो बोधि वृक्ष है वह श्रीलंका से लाए गए पौधे से उगाया गया है।
दूसरा सप्ताह
मंदिर के उत्तर की ओर बीच में अनिमेश लोचन चैत्य है। यहां गौतम बुद्ध ने अपना दूसरा सप्ताह बोधिवृक्ष को एकटक देखते हुए बिताया था। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने अनिमेश लोचन चैत्य और बोधि वृक्ष के बीच चलते हुए एक सप्ताह बिताया था। इसे ज्वेल वॉक या विचरण पथ भी कहा जाता है।

तीसरा सप्ताह
भगवान बुद्ध ने अपना तीसरा सप्ताह मंदिर की उत्तरी दीवार के पास रत्न चक्रमा या चंक्रमण में व्यतीत किया। बताया जाता है कि इस दौरान भगवान बुद्ध ने जहां-जहां कदम रखे, वहां कमल खिल गए। यहां पत्थर के एक वेदिका पर कमल के फूल बने हुए हैं। इसे ज्वेल प्रोमेनेड श्राइन्स भी करते हैं।
चौथा सप्ताह
भगवान बुद्ध ने अपना चौथा सप्ताह रत्नाघर चैत्य नामक स्थान पर व्यतीत किया था। इसे ज्वेल हाउस भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस दौरान उनके शरीर से छह रंगों की किरण निकली थी। इसलिए बौद्ध अनुयायी ने इन्हीं रंगों से अपना झंडा बनाया।
पाँचवाँ सप्ताह
इसके बाद अपना पांचवां सप्ताह पूरब की ओर अजपाला निग्रोध वृक्ष के नीचे व्यतीत किया था। यहां पर पत्थर का एक स्तंभ अजपला वृक्ष का प्रतीक है।

छठा सप्ताह
भगवान ने अपना छठा सप्ताह परिसर के दक्षिण में स्थित कमल के तालाब या मूचालिंडा सरोवर के पास बिताया था। बताया जाता है कि भगवान बुद्ध के ध्यान लगाते ही यहां मूसलाधार बारिश होने लगी। बारिश से उनकी रक्षा के लिए झील के सर्प राजा मूचालिंडा ने भगवान के सिर पर अपना फण फैला दिया। यहां सरोवर के बीच में फण फैलाए सांप के साथ भगवान बुद्ध की एक मूर्ति है।
सातवाँ सप्ताह
भगवान बुद्ध ने अपना सातवां सप्ताह को मंदिर के दक्षिण-पूर्व में स्थित राजयातना वृक्ष के नीचे व्यतीत किया था। इस दौरान उन्होंने यहां आने वाले लोगों को उपदेश भी दिया। ये सातों स्थल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र और पूजनीय हैं।
मंदिर परिसर के आसपास कुछ दुकान हैं जहां भगवान बुद्ध की मूर्तियां और बौद्ध साहित्य की किताबें मिलते है । हस्तशिल्प के सामान भी यहां मिलते हैं। यहाँ आने वाले श्रद्धालु बुद्ध कि मूर्तियाँ और अन्य चीजों को यादगार के रूप में ले जाते हैं।

अन्य नजदीकी दर्शनीय स्थल
बोधगया में महाबोधि मंदिर के साथ ही कई और मंदिर और म्यूजियम हैं, जो दर्शनीय है । बोधगया से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर “गया” शहर है | यहां आप विष्णुपद मंदिर का भी दर्शन कर सकते है | मंदिर के साथ के साथ सीताकुंड, राम कुंड, और अक्षय वट का दर्शन कर सकते हैं।
यह स्थान एक विशेष कार्य के लिए भी मशहूर है | विष्णुपद मंदिर के पास ही फलगु नदी बहती है | इस स्थान पर लोग अपने पूर्वजों के पिंडदान के लिए दूर – दूर से आते है |
इसके अलावा बोधगया से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर विश्व प्रसिद्ध नालन्दा विश्वविद्यालय है । आप इस विश्वविद्यालय के अवशेष को देख सकते हैं। यहां एक संग्रहालय भी है। यहां से करीब 95 किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध जैन तीर्थस्थल पावापुरी है। जहां जैन महावीर का मंदिर है |
यहां से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर राजगीर हैं। आप यहां विश्व शांति स्तूप का दर्शन कर सकते हैं। वहाँ का प्राकृतिक नज़ारा बेहद खूबसूरत है | राजगीर की जानकारी पिछले ब्लॉग में शेयर किया है | उसका लिंक भी नीचे दे रहा हूँ, उसे क्लिक कर विशेष जानकारी प्राप्त कर सकते है |
गया शहर पटना के साथ देश के सभी प्रमुख शहरों से रेल और सड़क मार्ग से बेहतर तरीके से जुड़ा हुआ है। गया में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है। कोई भी यहाँ आसानी से आ सकता है | देश के विभिन्न शहरों से रेलमार्ग , बस, टॅक्सी या हवाई जहाज से आया जा सकते हैं।
दोस्तों, मैं चाहता हूँ कि आप एक बार बोध गया के दर्शन जरूर कीजिये, सच मानिये आपको घूमने का आंनद आएगा ।
(Pic Souce: Google.com)
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Mr. Varma ! Do you know about ‘Dungeshwari Temple’ from where Lord Budhha had started his penance . It is seven or eight KM from Bodh Gaya on Manpur-Fatehpur Road , about five KM far from my house . It is on the ‘Dumgeshwari Hill’ where he was praying ‘Devi Durga’ in a cave and his body turned into skeleton , but he couldn’t get ‘Gyana’.Then he moved to Bodh Gaya . In that cave the statue of ‘Devi Durga’ is still there . And beside Devi is the statue of skeleton Lord Budha . Many monks from Thailand and other countries still live on that hill . Thanks !
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This is very nice information about Dumgeshwari Temple. Thanks for sharing.
I will try to visit there whenever I get opportunity.
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🩵
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Thank you so much.
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Nice post 🖊️
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Thank you so much.
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