
मैं एक आम इंसान हूँ | मेरी भी कुछ इच्छाये हैं | कभी कभी मैं भी जुनूनी हो जाता हूँ |
वैसे कभी कभी इंसान इतना जुनूनी हो जाता है कि अपनी मन की बात जो नहीं कहनी चाहिए वह भी कह देता है जब वह हालात से परेशान हो कर दोहरी ज़िन्दगी जीने को मजबूर हो जाता है |
यह सही है कि अपनी गलतियां, मौज मस्तियाँ, खामोशिया, पश्चाताप यह सब निजी होने चाहिए, इसे सार्वजनिक करने से हम खुद ही हँसी के पात्र बन जाते है |
समाज के सामने दोहरा जीवन न जिया जाए लेकिन सब कुछ ओपन भी न किया जाए तो बेहतर रहता है | हमारी व्यक्तिगत लाइफ तभी तक मजेदार और अपनी बनी रहती है जब तक कि उस’से किसी और को नुक्सान ना हो |
कभी कभी मन की भावनाओं को प्रकट करना मज़बूरी हो जाती लेकिन ऐसा करने से हमारा मन भी हल्का हो जाता है |

अब लौट चलें
लौट जाना है मुझे एक दिन वहाँ
मैंने जीवन की परिकल्पना की थी जहाँ
जैसे लौट जाता है धुआं वापस बादल में
और वरिश की बूंदें समा जाती है सागर में
पर मेरी आवाज तब भी रहेगी
मेरी कहानी ये दुनिया कहेगी
जनम – मरण मेरे वश में नहीं
पर मेरी यादे तो जिंदा रहेगी
खूब जिया है ज़िन्दगी अपनी शर्तो पर
गवारा नहीं अब जीना औरों के मर्जी पर ,
लौट जाने दो मुझे अब, मौज और मस्ती में,
डाल दिया है ख्वाब सारे, ज़िन्दगी की कश्ती में |
( विजय वर्मा )
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Categories: kavita
Beautiful poem 🥰
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Thank you so much.
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Your welcome Sir 🙏
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I have visited your Blog and found it value read.
Keep writing.
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