
दोस्तों,
ज़िन्दगी में बहुत सारे लम्हे ऐसे होते है जो बाद में भी हमें याद आते है | खास कर कॉलेज के दिनों के बिताये उन हसीन लम्हों को याद कर आज भी अपने आप को तरो ताज़ा कर लेता हूँ |
अब मैं रिटायर हो चूका हूँ इसलिए मैंने सोचा है कि क्यों ना उन भूले बिसरे यादों को कलमबद्ध कर अपने दिमाग को कुछ हल्का करूँ |
दूसरी बात यह कि जो सुखद यादें हमारे दिमाग में कैद है उसे क्यों न अपने दोस्तों के साथ शेयर किया जाये | इन्ही सब बातों को ध्यान में रख कर मैंने अपने इस ब्लॉग के माध्यम से उन संस्मरणों को पोस्ट कर रहा हूँ |
मुझे ख़ुशी भी होती है कि आप लोग इसे पसंद कर रहे है | इससे आप सभी से जुड़ने का मौका भी मिलता है | आज का ब्लॉग उन्ही पुरानी यादों को समेटने का प्रयास है |
बात बहुत पुरानी है लेकिन लगता है जैसे कल की ही बात हो | उन दिनों मैं स्कूल की पढाई समाप्त कर कॉलेज ज्वाइन किया था | रांची के धुर्वा में स्थित कॉलेज में एडमिशन हुआ था और थोड़े दिनों में ही मेरे दोस्तों की एक टोली बन गयी थी | हमलोग थोडा ज्यादा ही शैतानी करते थे |

उन दिनों घर से मिनी-बस के द्वारा कॉलेज आते थे लेकिन भाडा नहीं देते थे | सारी बसें हमारे कॉलेज के सामने से गुज़रती थी इसलिए स्टूडेंट से पंगा कोई नहीं लेना चाहता था |
एक दिन हम दोस्तों ने विचार किया कि पढाई के साथ साथ खेल कूद पर भी ध्यान दिया जाए ताकि अपनी सेहत भी ठीक रह सके |
हमारा क्लास दिन के दो बजे समाप्त हो जाते थे | कॉमन रूम में टेबल टेनिस बोर्ड तो था लेकिन खेलने के लिए टेबल टेनिस बैट और बॉल नहीं था |
हमलोगों ने इस खेल को सीखने का मन बनाया | लेकिन उन दिनों हमलोगों के पास पैसो की बड़ी किल्लत रहती थी | किसी तरह आपस में चंदा कर दो टेबल टेनिस बैट और बॉल खरीद सका |
खैर, उस दिन जम कर खेला हुआ | शरीर थक चूका था और बहुत जोरों की भूख लग रही थी | अब क्या किया जाए ? घर पहुँचने में काफी वक़्त लगेगा और भूख भी बर्दास्त नहीं हो रहा था |

हमलोगों के पास बहुत मुश्किल से दो डोसा के पैसे मिले | थोड़ी दूर में ही एक रेस्टोरेंट था | हमलोग भागते हुए वहाँ पहुंचे | वहाँ एक टेबल पर हम चारो दोस्त बैठ गए और दो मसाला डोसा का आर्डर किया | रेस्टोरेंट में सभी टेबल फुल थे |
डोसा दो और हम चार | हम लोग डोसा मिल बाँट कर खाने लगे, लेकिन डोसा इतना स्वादिस्ट था कि भूख और भी बढ़ गयी | तभी हमारे खुराफाती दिमाग में एक बढ़िया आईडिया आया | जब डोसा समाप्त होने वाला था तभी मैंने एक मक्खी पकड़ा और उसे मार कर ढोसे में छिपा दिया | तभी दुसरे दोस्त ने जोर से बोला — डोसा में मरा मक्खी है |
हंगामा देख कर मेनेजर भागा भागा हमलोगों के पास आया तो हमने वो मरी हुई मक्खी दिखा दी और जोर जोर से बोलने लगे | वो मद्रासी भाई घबरा गया और हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगने लगा |
उसने कहा – आप हंगामा नहीं करे | मेरे रेस्टोरेंट की बदनामी हो जाएगी | मैं आप सभी के लिए फ्रेश चार डोसा बिलकुल फ्री भिजवाता हूँ |
उस दिन तो अपना काम बन गया | फ्री का डोसा खा कर मजा आ गया | हमलोगों ने एक्टिंग अच्छी की थी | आज भी उस लम्हे को याद करता हूँ तो हँसी छुट जाती है |
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Categories: मेरे संस्मरण
LOL! Then you became a responsible citizen, a trustworthy banker! What a funny story!
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Yes Sir,
That was a childhood story.😂😂
Thanks for your beautiful comment.
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I think we all have stories like that, stories where we try things that we would never do as adult but that were valuable learning experiences.
I enjoy reading your blog posts because you have such a positive outlook on life!
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Thank you so much for your beautiful compliment, Sir.
Yes, remembering those childhood funny things makes a smile on our faces.
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