
एक पार्क मे दो बुजुर्ग दोस्त आपस में बातें कर रहे थे….
राधेश्याम — मेरी एक बेटी है, शादी के लायक है | उसने BE किया है, नौकरी भी करती है | देखने में सुन्दर है और उसका कद – 5″2 इंच है |
उसके लायक कोई अच्छा लडका नजर मे हो तो बताइएगा |
दीनानाथ :- आपकी बेटी को किस तरह का परिवार चाहिए…??
राधेश्याम :- कुछ खास नही |.. बस लडका ME / M.TECH किया हो | उसका अपना घर हो, कार हो, घर मे एसी हो, अपने बाग बगीचा हो, अच्छा जॉब , अच्छी सैलरी, कोई लाख रू. तक हो |
दीनानाथ :- और कुछ ?
राधेश्याम:- हाँ सबसे जरूरी बात.. अकेला होना चाहिए |
मां-बाप, भाई-बहन नही होने चाहिए |
वो क्या है कि लडाई झगड़े होते है |
अपनी दोस्त की बातें सुन कर दीनानाथ की आँखें भर आई | तभी उन्होंने आँसू पोछते हुए बोला – मेरे एक दोस्त का पोता है | उसके भाई-बहन नही है | मां बाप एक दुर्घटना मे चल बसे | अच्छी नौकरी है, डेढ़ लाख सैलरी है, गाड़ी है, बंगला है, नौकर-चाकर है |
राधेश्याम — (खुश हो कर), तो करवाओ ना रिश्ता पक्का |
दीनानाथ — मगर उस लड़के की भी यही शर्त है कि लडकी के भी मां-बाप, भाई-बहन या कोई रिश्तेदार ना हो |
कहते कहते उनका गला भर आया |
कुछ देर रुक कर फिर बोले — अगर आपका परिवार आत्महत्या कर ले तो बात बन सकती है | आपकी बेटी की शादी उससे हो जाएगी और वो बहुत सुखी रहेगी |
राधेश्याम — ये क्या बकवास है ? हमारा परिवार क्यों करे आत्महत्या ? कल को उसकी खुशियों मे, दुःख मे कौन उसके साथ व उसके पास होगा ?
दीनानाथ — वाह मेरे दोस्त, खुद का परिवार, परिवार है और दूसरे का कुछ नही ? मेरे दोस्त अपने बच्चो को परिवार का महत्व समझाओ | घर के बडे, घर के छोटे सभी अपनो के लिए जरूरी होते है | वरना, इंसान खुशियों का और गम का महत्व ही भूल जाएगा | जिंदगी नीरस बन जाएगी |
राधेश्याम को उनकी बातें सुन कर बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और वे आगे कुछ नही बोल पाए |

यह बिलकुल सच है कि परिवार है तो जीवन मे हर खुशी, खुशी लगती है और अगर परिवार नही तो किससे अपनी खुशियाँ और गम हम बाटेंगे | हमारे जीवन में परिवार का बहुत महत्व है |
परिवार व्यक्ति को मजबूत रूप से भावनात्मक सहारा प्रदान करता है। जीवन में सब कुछ प्राप्त कर पाने की काबिलियत हमें, परिवार द्वारा प्रदान की जाती है। परिवार के सही मार्ग दर्शन से व्यक्ति सफलता के उच्च शिखर को प्राप्त करता है | इसके विपरीत गलत मार्ग दर्शन में व्यक्ति अपने पथ से भटक जाता है।
खैर, अब इसके आगे की कहानी काफी दिलचस्प है |
इसे संयोग ही कहेंगे कि राधेश्याम की बेटी और दीनानाथ का बेटा दोनों बैंगलोर में रह कर नौकरी कर रहे थे | और सच तो यह है कि उन दोनों को एक दुसरे से प्यार हो गया था | वे दोनों सोच रहे थे कि मौका पाकर अपने माता पिता से बात कर उन्हें इस रिश्ते के लिए राज़ी कर लेंगे |
बेटा राजेश सीधा साधा और दिना नाथ जी से अच्छे संस्कार पाकर बड़ा हुआ था | लेकिन राधेश्याम की बेटी पल्लवी थोड़ी चालक और धूर्त किस्म की थी , क्योकि उसे अपने घर में ऐसा ही संस्कार मिला था |
कुदरत का करिश्मा भी अजीब होता है | एक दिन अचानक राधेश्याम जी को पता चलता है कि उनकी बेटी पल्लवी बैंगलोर में काफी बीमार है | वहाँ वो अकेली थी, इसलिए घबरा कर राधेश्याम बैंगलोर जाने का मन बना लेते है | लेकिन कोरोनाकाल में ट्रेन और फ्लाइट नहीं जा रहे थे |
बहुत माथा – पच्ची करने के बाद उन्होंने फैसला किया कि कार से ही वहाँ पहुँचा जाए | हालाँकि मुंबई से बैंगलोर की दुरी ज्यादा थी , फिर भी इमरजेंसी को देखते हुए उन्होंने दुसरे दिन ही अपने पत्नी के साथ कार के द्वारा बैंगलोर रवाना हो जाते है |
बरसात का मौसम और रात में घना कोहरा छाया हुआ था | कार अपनी रफ़्तार से जा रही थी | ड्राईवर को थोड़ी नींद सी आ रही थी , इसलिए उसने चाय पीने के लिए गाडी रोकनी चाही | लेकिन राधेश्याम को तो वहाँ पहुँचने की जल्दी थी इसलिए उन्होंने कहा कि कुछ दुरी और तय कर लो फिर हम सभी चाय पियेंगे |
कुछ ही दूर आगे चले होंगे कि एक खतरनाक मोड़ आया और ड्राईवर को झपकी आ जाने के कारण कार एक पेड़ से टकरा गयी | इस हादसे में ड्राईवर तो बच गया लेकिन राधेश्याम और उनकी पत्नी की हॉस्पिटल ले जाने के क्रम में मौत हो गयी |

यह बहुत बड़ी विपत्ति थी | बेटी उधर हॉस्पिटल में एडमिट थी और इधर उसके माता- पिता दोनों का देहांत हो चूका था |
ड्राईवर ने राधेश्याम जी के भाई लोगों को फ़ोन से इसकी सुचना दी | उनके भाई और भतीजा लोग मिल कर उन दोनों का अंतिम संस्कार किया | उधर पल्लवी को हॉस्पिटल में राजेश हर तरह का सहयोग कर रहा था और कुछ दिनों के बाद पल्लवी ठीक होकर घर आयी |
माँ बाप की अकेली बेटी अब अनाथ हो चुकी थी | उसके ऊपर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा था | परिवार के नाम पर अब कोई नहीं था | लेकिन राजेश उसे हिम्मत देता रहता और उसे इस दुःख से निकालने का हर संभव प्रयास करने लगा |
इसी बीच दीननाथ जी को अपने बेटे और पल्लवी के सम्बन्ध के बारे में पता चला |
एक दिन मौका पाकर राजेश ने अपने पिता से अपने मन की बात कह दी |
दीनानाथ जी ने सोचा कि अपना दोस्त तो दुनिया को अलविदा कह दिया है तो मेरा भी फ़र्ज़ बनता है कि उसकी बेटी को अपना लूँ | उसके माता पिता की कमी भी हम दोनों मिल कर पूरा करेंगे | ऐसा सोच कर वे और उनकी पत्नी उन दोनों की शादी के लिए राज़ी हो जाते है | फिर बड़े धूम धाम से राजेश – पल्लवी का शादी कर देते है |
चूँकि दीनानाथ जी का एक ही बेटा राजेश था, इसलिए वे भी अपनी पत्नी के साथ बेटे और बहु के पास बैंगलोर आ जाते है | सभी लोग मिल कर आनंद से रहने लगते है | इस बीच घर में एक नन्हा मेहमान भी आ जाता है, दादा – दादी का खिलौना |

करीब एक साल बीते होंगे तभी पता नहीं किसकी नज़र उनके परिवार को लग गयी | हँसते खेलते परिवार में अब कलह शुरू हो गया | आज कल के बच्चो का परिवेश और विचार , बड़े बुजुर्ग के विचार से मेल नहीं खाते है | घर की बहु को सास – ससुर अब बोझ लगते है | उन्हें तो बस अपनी स्वतंत्रता प्यारी होती है |
शायद आधुनिकता का प्रभाव , नए सांस्कृतिक मानदंडो, हमारी नयी प्राथमिकता और इन्टरनेट जमाने में आज की पीढ़ी के जीवन जीने के तरीके ही बदल गए है |
आधुनिकता के प्रभाव ने जीवन को तो आसान बना दिया है लेकिन भावनात्मक मूल्यों का ह्रास हो रहा है | आजकल माँ – बाप के सलाह को बच्चे अपनी जीवन में दख़ल-अंदाजी समझते है |
एक तरफ हम मोबाइल के एक click से दुनिया की कोई वस्तु घर बैठे प्राप्त कर सकते है, वही दूसरी तरफ सच्चाई यह भी है कि हम अपने पड़ोसियों के नाम तक नहीं जानते है | इस बदलते माहौल में परिवार की परिभाषा भी हम दो और हमारे एक में सिमट कर रह गयी है | इसी लिए आज हर कोई परेशान नज़र आता है |
आज दीनानाथ जी सोसाइटी में बने छोटे से मंदिर के परिसर में बैठ कर इन्ही सब बातों को सोच रहे है | उनका मन उदास और आँखों में आँसू थे |
दीनानाथ जी सोचते सोचते अचानक यह फैसला करते है कि इस घर में रोज़ रोज़ के कलह से बचने के लिए अच्छा यही होगा कि अपने गाँव वापस लौट जाएँ | ताकि बेटे – बहु शांति से और ख़ुशी ख़ुशी रह सकें |

गाँव में तो अभी भी खेती बारी है, लेकिन बेटे के साथ रहने की ललक में उन्होंने खेत को बंटाईदार को दे रखा था | अब जब कि बेटे -बहु से मोह भंग हो चूका था, तो क्यों न गाँव में रह कर अपने खेतों की देख भाल की जाए |
ऐसा सोच कर उन्होंने अपने बेटे से अपनी इच्छा प्रकट कर दी | बेटा तो यह नहीं चाहता था कि माता -पिता गाँव वापस जाये लेकिन पत्नी के दबाब के कारण वह चुप ही रहा | और कुछ दिनों के बाद दीनानाथ जी अपने पत्नी के साथ गाँव में शिफ्ट हो गए |
दीनानाथ जी तो सरकारी नौकरी और बड़े पद से रिटायर हुए थे | इसके वावजूद उनमे जरा भी घमंड नहीं था | इसलिए गाँव वाले उनकी बहुत इज्जत करते थे | दीनानाथ जी की गाँव में काफी प्रतिष्ट थी |
लेकिन समय का चाल कोई भी समझ नहीं पाया है | करीब छह माह ही बीतें होंगे कि बेटा – बहु की परेशानी बढती ही जा रही थी | दादा -दादी के जाने से अपने छोटे बेटे को पालने के लिए पल्लवी को नौकरी छोडनी पड़ी | वह घर पर रह कर अपने बच्चे की देख भाल करने लगी |
लेकिन मुसीबत का पहाड़ तब टूट पड़ा, जब राजेश जिस कंपनी में काम करता था उसे कोरोनाकाल के दौरान काफी वित्तीय घाटा उठाना पड़ा और इस कारण कंपनी ने अपने बहुत स्टाफ की छटनी कर दी |
राजेश को भी नौकरी से निकाल दिया गया | राजेश को पहले कभी इस तरह की मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ा था, क्योंकि तब माता – पिता साथ में थे |

आज पल्लवी और राजेश को अपने पिता दीनानाथ जी की याद आ रही थी | उन्हें अब महसूस हो रहा था कि बड़े बुजुर्ग अपने बच्चो के लिए बृक्ष की छाया का काम करते है |
वे लोग गाँव आकर अपने पिताजी के चरणों में गिर गए और गलती माफ़ करने की विनती करने लगे |
माँ – बाप का दिल भी बड़ा नाजुक होता है | बेटे को जरा भी चोट लगे तो दर्द उन्हें ही होता है | आज फिर दीनानाथ जी की आँखों में आँसू थे, लेकिन ख़ुशी के आँसू ….
कुछ रिश्ते अजनबी होते हैं
हर पहचान से परे
कोई अपनापन नहीं
कोई संवेदना नहीं
जी चाहता है कि
इनका पता पूछ कर
इन्हें बैरंग लौटा दूँ |
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सुंदर मार्मिक कहानी | आम सी कथा है आज के समय में |
कहानी का अंत भी आम ही है , बेहतर अंत तो फिल्म बागबान या अवतार के लगे थे |
प्रायः सभी माँ बाप प्रेम के वशीभूत ऐसा निर्णय ही ले पाते हैं!
पिता की आँखों में जरूर ख़ुशी के आंसूं हैं पर बेटे बहू पैरों पर गिरे तो जरूर हैं पर उनकी आँखोने में पश्चाताप के आंसू शायद ही हों!
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यस सर , आपने बहुत सही कहा है |
बेटे-बहू की सोच है जो इतना होने पर भी उनके आँखों मे पश्चाताप के आँसू नहीं है |
कहानी का अंत ठीक से नहीं कर पाया |आगे की कहानियों मे इसका ख्याल रखूँगा
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Aaj ke samay Bagbaan jaisa climax real life me very rare hee hoga, aapne jaisa kahani ko poorn kiya wahi aamtaur par hota hai! Par yeh maine paaya hai ki Baagban ke baad log is wishay par apni soch badal rahe hain!
(Hindi font nahi type kar paya)
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सर , आज के समय मे लोग अंधी दौड़ मे लगे है जहां भावनाओं की कोई कद्र नहीं है |
Social media भी कुछ हद तक ज़िम्मेवार है |
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मिसाल तो यही होती:
जी चाहता है कि
इनका पता पूछ कर
इन्हें बैरंग लौटा दूँ |
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बहुत सुंदर लाइन है, सर |
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परिवार नहीं चाहिए लड़की को
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आज कल यही हो रहा है |
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परिवार ही अपनी खुशी है
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सही है |
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