# Three Idiots # 

आज “ईस्टर” है और इस मौके पर मुझे  मेरे  बहुत  पुराने और अज़ीज़ दोस्त सुदर्शन की याद आ गई | हालाँकि ज़िन्दगी की व्यस्तता के कारण बहुत दिनों के उससे बात नहीं हो सकी थी | 

उसका पुराना number पर try किया, पर switch off आ रहा था | शायद number बदल गया था | इसीलिए उसका नया number जानने के लिए अपने परम मित्र किशोरी को संपर्क  कर सुदर्शन का नया number लिया | 

संयोग से number engage होने के कारण अभी भी बात नहीं हो पा रही थी |

लेकिन, उसके साथ बिताये गए पुराने लम्हों की यादें जेहन में आते ही चेहरे पर एक हल्की मुस्कान बिखर गई |

वो पुराने दिन और पुरानी बातें एक एक कर याद आती चली गई | तब हम सब बूढ़े नहीं बल्कि जवान हुआ करते थे और शादी और  परिवार  की झंझटो से दूर हमलोगों की एक अलग ही दुनिया थी |

वो जवानी की जोश और कुछ कर गुजरने की लगन | वैसे, बहुत सारी दुर्घटनाओं में से वो एक हसीन दुर्घटना जिसको याद कर आज  भी हमें गुदगुदी होती है /

रोडवेज की “बस” अपनी रफ़्तार से सड़क पर भाग रही थी और मैं नौकरी का ऑफर लेटर लिए गंतव्य स्थान पर पहुँचने की आशा में “बस” की खिडकियों से बाहर हरे भरे तिलैया घाटी का मज़े ले रहा था |

हम अभी अभी college  की पढ़ाई पूरी कर इस नौकरी को  join करने जा रहे थे |

पहली बार घर से बाहर निकले थे नौकरी के लिए,… जगह थी “झुमरी-तिलैया” और नौकरी बैंक की । नौकरी पाकर  उत्साहित तो था लेकिन साथ ही साथ घर छोड़ने का दुःख भी था और एक अनजाना सा डर भी ।

लेकिन एक अच्छी बात यह थी कि जहाँ मैं नौकरी करने जा रहा था,  मेरा अज़ीज़ दोस्त सुदर्शन पहले से वहाँ रह रहा था क्योकि वो BOB join कर चूका था |

इसलिए रहने और खाने की चिंता से मुक्त था | बात पहले ही तय थी कि उसी के साथ रहना है., हमलोग तभी कुँवारे ही थे।

सुदर्शन के साथ एक और स्टाफ जो उसका दोस्त नवीन था, साथ ही रहता था | मैं करीब पाँच बजे शाम में तिलैया पहुँच गया और सीधे उसके बैंक चला गया |

देख कर बहुत खुश हुआ और अपने काम निपटा कर जल्द ही मेरे साथ हो लिया | थोड़ी देर में हमलोग अपने कमरे में थे | वो खाना बहुत अच्छा बनाता था |

गप शप चलता रहा और करीब ८.०० बजे खाना तैयार हो गया | हम तीनो  ने खाना खाया और पहले से इन्तेजाम किया हुआ खाट और बिस्तर मिला गया और एक ही रूम  में हम तीनो सो गए |

सुदर्शन से परिचय college के दिनों से ही था | मैं अपने  ग्रुप में सबसे शरारती समझा जाता था, फिर भी सभी दोस्त ख़ास कर सुदर्शन से ज्यादा ही घनिष्ठता थी |

इसीलिए यहाँ अपना  अधिकार  समझ कर उसके पास रहने चला आ गया था | या यूँ कहे तो यहाँ वो मेरा लोकल गार्जियन था | मैं भी उसके बिना पूछे कोई भी काम या decision नहीं लेता था |

बाकि सब तो ठीक था, बस एक समस्या थी ..खाना बनाने में  मैं उसका बिल्कुल मदद नहीं कर पाता था, और वो हम से मदद लेता भी नहीं था | वो बैंक से थका हारा आकर खाना बनाता और, खाने का सारा सामान का इन्तेजाम और सब्जी वगैरह का जिम्मा उन दोनों पर ही था | 

कारण कि मैं बैंक से आने के बाद अपना रैकेट लेकर badminton खेलने चला जाया करता था जो थोड़ी दूर पर एक अलग मित्र मंडली के साथ बना रखी थी |

यह सिलसिला चल रहा था लेकिन कभी कभी नवीन झुंझलाहट में काम में हाथ बँटाने के लिए कहता था | लेकिन सुदर्शन इन सब बातों को हँस कर टाल दिया करता था |

और मुझे पूर्ण आज़ादी दे रखी थी उसने |  शायद वह महसूस करता था कि मुझे खाना खाने के सिवा बाकि के रसोई का कोई कार्य नहीं आता है |

मैं उसके स्नेह का बेवजह फायदा उठा रहा था | मैं मस्ती से badminton खेलता और ठीक खाने के समय हाज़िर हो जाता था | सुबह का भी यही सिलसिला था, मैं जब सो कर देर से उठता और नहा धोकर तैयार होता तब तक खाना बन कर तैयार रहता |

लेकिन कभी कभी भगवान भी मजे लेने से नहीं चुकते है | एक दिन सुदर्शन बीमार पड़ गया, और हमलोग उसकी सेवा में लग गए | अब तो भोजन बनाने की समस्या आन पड़ी | नवीन तो जैसे इसी दिन का इंतज़ार कर रहा था कि कब मैं रसोई में अपने हुनर दिखा सकूँ | बस क्या था नवीन ने भी अपने अस्वस्थ होने का बहाना बना लिया /

अब मरता क्या ना करता, खुद आँखों में आँसू लाकर प्याज काटता हुआ मैंने  सब्जी बनाया और आटा गूँथ कर गोल गोल मुलायम रोटी के साथ थाली लगाई तो पहले तो दोनों को विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं इतना अच्छा खाना बना सकता हूँ |

उन दोनों ने पहले तो भर पेट गाली गलोज किया कि इतना दिन उन दोनों को मैं बेवकूफ बनाता रहा कि मुझे खाना बनाना ही नहीं आता है | फिर मेरे हाथ का खाना भी खाया और बीमारी से ठीक भी हो गए |

 लेकिन आगे की ड्यूटी हमारी तय हो गई,  और मैं नवीन के  साजिश का शिकार हो गया… मेरा badminton का खेल भी जाता रहा …..(क्रमश) ..:

वो सुनहरी यादें

कुछ सुनहरी यादें …

ना कभी धुंधली होती है

ना कभी भूली जाती है

हर पल हर लम्हा अब भी ..

वो सुनहरे पल …याद करते करते

मन भावुक हो जाता है

ना रहा वो जोश …

ना रहा वो बैंक …

ना रही वो चाकरी …

ॐ शांति …ॐ शांति …ॐ शांति

…….विजय वर्मा…..

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

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Categories: मेरे संस्मरण

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