#मैं और मेरा जख्म#

कभी – कभी हमारे जीवन में कुछ ऐसी घटनाएँ घट जाती है जिसके कारण मन उदास हो जाता है और हम गुमसुम रहने लगते है | हालांकि उदासी, किसी बड़े दुख के अनुभव का एक छोटा सा हिस्सा मात्र होता है ।

यह एक ऐसा दर्द भरा अनुभव होता है, जिसको किसी से साझा नहीं किया जा सकता है । यह उदासी एक ऐसी आम भावना है, जिसे हर एक इंसान अपनी ज़िंदगी के किसी न किसी दौर में महसूस जरूर करता है | इन्हीं भावनाओं को समेटने का प्रयास है ये कविता …

मैं और मेरा जख्म

कागज़ पर कलम दौड़ता दिखाई देता है

आज जख्म अपना रिसता दिखाई देता है

यूँ तो कोई  कमी नहीं है ज़िंदगी में

 फिर भी ना जाने क्यूँ

मन तनहाइयों में अटक जाता है

किसी को याद कर, मन भटक जाता है

बीतें दिनों  की कुछ घटनाओं से

अपनी तो दिल जली है

वो मेरे ज़िंदगी के साथ पली है

अब भी पीछा नहीं छोड़ती है

और दिल को झकझोर देती है

बहुत समझाया ज़िन्दगी को …

“शांति” में ही आनंद है ,

ज़िन्दगी  को ना जाने क्यूँ ..

हमारी बात उल्टी नज़र आती  है

वह तुरंत ही बोल पड़ी   ..

गलत कहते है आप ..

जब “आनंद” साथ था तो

“शांति” भी थी हमारे साथ,

फिर से “आनंद” पैदा करो ..

“शांति” वापस आ जाएगी .

… ज़रूर वापस आएगी
     (विजय वर्मा)

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Categories: kavita

11 replies

  1. So beautiful 👌👌

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  2. अच्छी कविता।

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  3. Bahut marmik aur dil ko choo lenewala warman
    Keep it up

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  4. Bahut sundar soch Kavita roopme.Kya kahana.Khusi raho.Jakham mitao.

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  5. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    Good afternoon friends,

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