
लोग कहते है कि जिन्दादिली से जीवन जीने को ही “ज़िन्दगी” कहते है | .यह सही भी है , परन्तु जीवन में कुछ पल ऐसे भी आते है कि निर्णय लेने के लिए बस टॉस करना पड़ता है | तब हमें Decision लेने के बाद ही पता चलता है कि हमने सही लिया या गलत |
बैंक के ३२ वर्षो की सेवा देने के बाद ,VRS (voluntary Retirement Scheme) का decision लेना मेरे लिए बहुत कठिन लम्हा था | रिटायरमेंट के साइड इफ़ेक्ट का थोडा थोडा अनुमान तो था, या यूँ कहे कि जिसका डर था वही हुआ | मैं अचानक बिजी इंसान से बेकार इंसान बन गया | ऐसा लगा कि हमारा जीवन अब बिना लक्ष्य का हो गया है |
मैंने सुना था कि ज़िन्दगी में कुछ लक्ष्य या goal ना हो तो ज़िन्दगी नीरस हो जाती है | अतः जीवन को सार्थक बनाना तो ज़रूरी था | मैंने अपने आपका विश्लेषण करने का निर्णय लिया | जैसे किसी फर्म (FIRM) के भविष्य जानने के लिए उसका SWOT analysis करते है उसी तरह मैं ने भी अपना swot analysis करने की सोचा |

भविष्य के बारे मे बहुत सारी अच्छी एवं बुरी बातें भी मन में उठ रही थी, उससे भी पार पाना था | सर्वप्रथम मैंने अपने आप से सवाल किया — मैं ने VRS क्यूँ लिया ? मैं उन सभी कारणों को एक कागज़ पर लिखने लगा | बहुत से कारण दिखाई पड़ने लगे |
Financial Safety :
मैं सोचा कि रिटायरमेंट से जो पैसा मिलेगा वो हमारे आगे के जीवन के लिए sufficient होगा , क्यूँ कि हमें और कोई Liability आगे नहीं दिखती थी | दूसरी तरफ , अपना बैंक के मर्जर के बाद नौकरी में कठिनाई आने की संभावना भी थी | पता नहीं तब हमारा भविष्य क्या होगा ?
Monotonous Job:
३२ वर्षो के लम्बी बैंक की नौकरी करने के बाद ज़िन्दगी जैसे ठहर सी गई थी | थोडा अलग तरह का अनुभव करना चाहता था | अब मैं थोड़ी लाइफ में रिस्क लेने की स्तिथि में भी था , क्यूंकि अभी हमारे पास कोई अन्य Liability नहीं थी | अपने अनुभव के बल पर मन लायक काम खोज लूँगा, ऐसा मन में विचार आया |
Transfer and Posting :
मैं ट्रान्सफर और पोस्टिंग से बहुत घबराता था और हमें पता चला था कि बैंक मर्जर के बाद हमें ऑडिट में पोस्टिंग मिलने वाली है | मुझे इस तरह का assignment पसंद नहीं था , क्योंकि मैं मानता था कि ऑडिट के assignment में travelling ज्यादा होने से स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और उम्र के इस पड़ाव में अपने स्वास्थ का रिस्क नहीं लेना चाहता था |

मैं अपने ज़िंदगी अपनी मन के मुताबित जीना चाहता था | अपने अधूरे सपने , दबी हुई हॉबी को पूरा करना चाहता था | मैं अपने को सभी बंधनों से मुक्त करना चाहता था, ताकि अपने मन मुताबित जीवन जी सकूँ | हमारे शुभचिंतक लोग दूसरी नौकरी जॉइन करने की सलाह देने लगे, लेकिन मैं तो बंधन मुक्त होना चाहता था |
मैं अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहता था , मेरी पह्चान क्या है … मैं हिन्दू हूँ ,मैं बिहारी हूँ , मेरा जन्म बिहार में हुआ है , या मैं एक जिम्मेदार पति हूँ , एक बाप हूँ या फिर एक रिटायर्ड बैंकर .–. नहीं , मेरी यह पह्चान नहीं है शायद |
दोस्तों, मैं अपनी पह्चान बनाना चाहता हूँ , मेरी अपनी पह्चान होगी. — मेरी सोच” ,”मेरे ख्वाब” , “मेरे ख्याल” … मेरी कोशिश की शुरुआत हो गई है | मैं अपने बारे में खुद ही ज्यादा वाकिफ नहीं हूँ , इसलिए लिखने के बहाने अपनी पह्चान खोज रहा हूँ |
एक महान व्यक्ति ने बड़ी बात कही है कि मैं फैसला लेने से पहले गलत या सही का विचार नहीं करता हूँ, बल्कि फैसला लेने के बाद उसे सही साबित करने के लिए मेहनत करता हूँ | अब हमें इसी में अपनी खुशियों को पाना है और बचे हुए ज़िन्दगी के लम्हों को शानदार बनाना है | ….खुल कर जीना है ज़िन्दगी जब तक मौत गले ना लगा ले |

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Categories: मेरे संस्मरण
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बिना स्वार्थ के किसी का भला करके देखिये ,
आपकी तमाम उलझाने ऊपर वाला सुलझा देगा |
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