# तेरे मेरे इश्क़ का…एक ग़ज़ल

प्रेम एक ऐसा अहसास है, जो समय के साथ भले ही बदल जाए, पर उसकी यादें मन में हमेशा ताज़ा रहती हैं। प्रस्तुत ग़ज़ल “तेरे मेरे इश्क़ का…” एक मधुर स्मृति है उन पलों की, जब दो दिल बेपनाह मोहब्बत में डूबे थे। यह कविता पुराने इश्क़ की मीठी कसक, अधूरी खामोशियाँ और दिल में बसी वो बातें बयां करती है, जो समय की रेत पर भले ही खो गई हों, पर रूह में अब भी गूंजती हैं।

तेरे मेरे इश्क़ का…

वो भी क्या दिन थे अपने जब
तुम हसीन थीं और हम जवाँ थे।
तेरे इश्क़ का वो दौर कुछ और था,
तब बस हम थे, और सब कहाँ थे?

तेरी मुस्कुराहटों का मैं दीवाना था,
तेरी हर अदा में इक फ़साना था।
तू अक्सर मेरी बातों में गुम रहती थी,
तेरी खामोशी भी इक तराना था।

न होकर भी तू पास लगती है,
मेरे हर ख्वाब में तू ही बसती है।
वक़्त के साथ बदल गया सब कुछ,
पर तेरी बातें अब भी मदहोश करती हैं।

जब भी मुझे याद आता है तेरा चेहरा,
बीते मौसम की यादें लौट आती हैं।
तेरे-मेरे इश्क़ की अनकही कहानी,
अब भी मेरी रूह को रुला जाती है।
(विजय वर्मा )
http://www.retiredkalam.com



Categories: kavita

Tags: , , , , ,

33 replies

  1. Wow .You are the father of the world of painting Sir. You have no equal in writing too. Salute to you Sir.

    Liked by 2 people

  2. अतीव सुंदर 👌

    Liked by 1 person

    • आपकी सराहना के लिए हृदय से धन्यवाद 🙏
      आपके शब्द मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं, जो रचनात्मकता को और भी गहराई देते हैं।

      Like

  3. Dear Verma Ji
    It is interesting to know a different point of view in this post.

    Thanks for liking my post, ‘Music’🙏❤️

    Liked by 1 person

  4. Dear Verma Ji

    I read your post. My morning was pleasant & my day was made.

    Thanks for liking my post, ‘MusicThree’🙏❤️

    Liked by 1 person

Leave a comment