“किसी ने पूछा, प्यार क्या है?”


प्यार की परिभाषा हर किसी के लिए अलग हो सकती है, पर उसकी गहराई एक सी होती है।
यह कविता उस मौन एहसास की बात करती है — जिसे कह पाना मुश्किल है, लेकिन महसूस करना सबसे सुंदर है।
वर्मा जी के शब्दों में सजी यह रचना, पाठकों को उनके अपने किसी “अनकहे प्यार” की याद ज़रूर दिला देगी।

“किसी ने पूछा, प्यार क्या है?”

किसी ने पूछा, प्यार क्या है?
मैं मुस्कुराया… और चुप हो गया।
कहना चाहता था बहुत कुछ,
पर कुछ एहसास लफ्ज़ों में कम हो गया।

प्यार… वो है जो बेवजह इंतज़ार करे,
जो तुम्हारी खामोशी को भी प्यार करे।
जो बिना कहे, सब समझ जाए,
जो तुम्हारी हँसी में खुद को पाए।

प्यार वो है —
जो भूले नहीं, भले ही साथ न हो,
जो तुम्हें दूर से भी दुआ देता हो।

वो किताबों में नहीं, नज़रों में लिखा जाता है,
वो चाय की चुस्की में, बारिश की बूंदों में मिलता है।
वो माँ की ममता में है, पापा के त्याग में है,
वो उस चुप सच्चे दोस्त की आँखों में जागता है।

कभी पहली नज़र में,
कभी आखिरी सांस तक — प्यार वही है।
जो लौट कर न आए… फिर भी तुम्हारा है ।
(विजय वर्मा )

BE HAPPY… BE ACTIVE… BE FOCUSED… BE ALIVE!

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2 replies

  1. very nice

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