# जीवन का सार #

यह कविता जीवन के सच और भ्रम को उजागर करती है। यह दर्शाती है कि जब तक कोई व्यक्ति उपयोगी होता है, लोग उसकी सराहना करते हैं, लेकिन जब वह संघर्षों से घिर जाता है, तो अपने भी दूर होने लगते हैं।

फिर भी, सच्चे जीवन का सार यही है कि बिना शिकायत जीवन को अपनाया जाए और अपने कर्म से इतिहास रचा जाए।

जीवन का सार

रिश्ते-नाते, अपने-पराये,
प्यार-मोहब्बत, सबको भाये।
जब तक देना संभव है,
देने से हम क्यों घबराएं?

वो पेड़ देखो, निःशब्द खड़ा है,
फल और छाया से भरा है।
सारे लोग उसको पूजते,
जड़ों से उनका आस बंधा है।

जब शाखाएँ सूखने लगतीं,
छवि उसकी सिकुड़ने लगती।
नज़रें फेर लेते अपने ही,
जब पत्ते बिखरने लगतीं।

तब भी पेड़ मुस्काता है,
अपने आप को समझाता है।
जीवन का तो सार यही है,
वह दुनिया को बतलाता है।

सच में अगर जीना है,
बहाना तुम्हें पसीना है।
किसी से कोई शिकवा नहीं,
ग़म को खुद ही पीना है।

वो जब दिल की बात लिखेगा,
सारी दुनिया उसे पढ़ेगा।
उसकी सारी प्रेम कहानी,
एक दिन तो इतिहास बनेगा।
(विजय वर्मा)



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6 replies

  1. jeevan ki baare me Sundar Kavita.👏👏

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