पुनर्जन्म की घटना # -1 

आज के वैज्ञानिक युग में पुनर्जन्मों की  बात करना वैसे तो बेमानी समझा जाता है, लेकिन कभी – कभी पुनर्जन्मों की खबरे समाचार के माध्यम से आती रहती है और हमलोग के लिए यह कौतुहल का विषय होता है कि सचमुच में पुनर्जनम होता है या नहीं ?.

मैंने एक बार समाचार पत्र में पढ़ा था कि कोई पांच साल का बच्चा अपने पिछली जनम की और अपनी हत्या के बारे में पूरी कहानी बता देता है कि पिछले जनम में वह कहाँ रहता था और किसने उसकी  हत्या की थी |

उसने कातिल की पहचान भी की थी और उसके बताये गए सभी बात सच साबित हुई थी , लेकिन कानून में उस तरह का कोई प्रावधान  नहीं होने के कारण उस हत्यारे को सजा नहीं हो सकी |

मेरी माँ बचपन में जब कहानी सुनाती थी तो उनके कहानियों में भी कभी कभी पुनर्जन्मों वाली कहानी भी हुआ करता था | माँ तो कभी कभी जब परेशान होती थी तो उनके मुख से निकल जाता था .. …यह तो पिछले जनम  का फल है | यानी पिछले जनम और इस जनम में कोई न कोई रिश्ता तो होता है |

इन सब बातों को पढ़ कर और सुन कर पुनर्जनम में विश्वास करने का दिल करता है |

आइये एक ऐसी ही कहानी आप के सामने प्रस्तुत करता हूँ.. जिसे पढ़ कर आप भी शायद पुनर्जनम में विश्वास करने को मजबूर हो जायेंगे |.

यह एक ऐसी पुनर्जन्म की कहानी है जो सच के इतने करीब है  कि उस घटना की सच्चाई जानने के लिए हमारे राष्ट्र पिता महात्मा गांची ने उत्सुकता  दिखाई थी और इस विषय में सच्चाई की पड़ताल की थी |

यह कहानी शुरू होती है 8 जनवरी १९०२ में,  जब मथुरा के एक गाँव में चतुर्भुज नाम के एक शख्स के  घर एक बच्ची का जनम होता है जिसका नाम रखा जाता है लुगदी | माँ बाप की माली हालत ठीक ठाक थी इसलिए बच्ची की परवरिस भी अच्छी तरह से हो रही थी |

लेकिन उस ज़माने  में लड़की को छोटी उम्र में ही शादी  कर दी जाती थी | अतः लुगदी जब १० वर्ष की हुई तो उसकी  शादी वही मथुरा में ही रहने वाले  एक कपडे के व्यापारी से कर दी गई | यह साल १९१२ की बात है , व्यापारी का  नाम था केदार नाथ चौबे |

यह उनकी दूसरी शादी थी , पहली पत्नी की मृत्यु  कुछ दिनों पूर्व ही हुई थी | घर- परिवार  और समाज के कहने पर वे दूसरी शादी के लिए तैयार  हुए थे |

लुगदी अपने ससुराल में आई और सभी सदस्यों  से घुल मिल गयी | वो काफी समझदार लेकिन कम पढ़ी लिखी थी | फिर भी अपने ससुराल में किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देती | वो तो वैसे बच्ची ही थी , इसलिए सभी लोग उसे  बहुत मानते थे |  

वक़्त बीतता है और लुगदी अब जवानी के दहलीज़ पर आ जाती है | साल १९२४ में लुदगी गर्ववती हो जाती है , उस समय उसकी उम्र 22 साल थी |

इसी तरह  उसके बच्चे के जनम का दिन भी नजदीक आ गया और उसे वहीँ  के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती  कराया जाता है | दुर्भाग्यवश वह  एक मृत बच्ची को जन्म देती है | लुगदी को सदमा लगा  लेकिन  कुछ दिनों के बाद  उसकी जिंदगी फिर पटरी पर आ गई |

संयोग से एक साल के बाद वो फिर गर्भवती हो गयी और साल १९२५ में फिर एक बच्चे का जन्म हुआ | बच्चा बिलकुल स्वस्थ और सुन्दर था | लेकिन प्रसव के बाद लुगदी की तबियत बिगड़ गयी और बच्चे के जनम के  नौ दिन बाद 4 अक्टूबर १९२५ को हॉस्पिटल में लुगदी की मौत हो जाती है |

सिर्फ 23 साल की उम्र में अपने बच्चे को छोड़ वह  इस दुनिया से अलविदा हो गई थी | उसने अपने बच्चे को  सिर्फ एक बार ही देखा था |  बाद में लुगदी की  तबियत बिगड़ने के कारण बच्चे को उससे अलग कर दिया गया था |

घर में मातम का माहौल था लेकिन किसी तरह  बच्चे की परवरिस हो रही थी | बच्चे का नाम नवनीत लाल रखा जाता है |

लुगदी के मरने के ठीक १ साल दस  महीने  और 7 दिन के बाद 11 दिसम्बर १९२६ को दिल्ली के बाबु रंग बहादुर माथुर के घर में एक बच्ची का जन्म हुआ | इस बच्ची का नाम रखा गया शांति  |

बच्ची के जन्म से घरवाले खुश थे और उसका लालन पालन ठीक तरह से होता है | वक़्त बीतता है, लेकिन चार साल तक वह बच्ची बिलकुल चुप चुप सी रहती है, ज्यादा किसी से बातचीत  और खेलना कूदना नहीं करती है |

लेकिन ठीक चार साल की उम्र पूरा होते ही अचानक उसमे विचित्र परिवर्तन आता है | वह खूब बोलने लगती है. उसकर हाव भाव बिलकुल बदल चूका था  |

घर वाले तब यह देख कर चौक जाते है  जब वह  बच्ची मथुरा  की लोकल भाषा में बातचीत  करने लगती है, जब कि घर वाले शुरू से दिल्ली में रहे और  घर में भी  दिल्ली की भाषा बोली जाती थी |

फिर उसके जुवान में मथुरा की भाषा कैसे आई ? वहाँ उसके साथ खेलने वाले बच्चे भी दिल्ली की भाषा ही बोलते थे | और इसके आलावा रंग बहादुर माथुर के कोई भी रिश्तेदार  मथुरा में नहीं रहता था | फिर भी  वो लोग इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिए  |

 लेकिन वे लोग तब चौक उठे जब वो बच्ची पांच साल की हुई और वह अपने पुनर्जन्म की बात  कहने लगी |

एक दिन घर वालों के सामने वह  बोल पड़ी कि यह मेरा घर नहीं है, जहाँ आपलोगों ने मुझे रखा है |  मेरा अपना असली घर मथुरा में है | मेरा एक पूरा परिवार है | वहाँ मेरा पति है और एक बेटा भी है | मेरे सास ससुर है |

सिर्फ पांच साल की बच्ची के मुँह से इस तरह की बातें सुन कर उनलोगों को कुछ समझ नहीं आया कि ऐसा क्यों वह बोल रही है |

वो किसी तरह उसे समझा बुझा कर बात को टाल देते है  | लेकिन रंग बहादुर माथुर के मन में यह बात घुमती रहती कि सिर्फ पाँच साल की बच्ची इस तरह की बातें क्यों करती रहती है |

एक दिन वह बच्ची जिद पर अड़ गयी  कि मुझे मथुरा जाना है | मुझे मथुरा में छोड़ आओ |

परेशान होकर रंग बहादुर ने उसे  मनोचिकित्सक डॉ के पास ले गए और उसकी सारी बातें उस डॉ  को बता दिया  कि यह बच्ची कहती है कि मेरी  शादी हो चुकी है , मेरा पति और सास ससुर भी है |

यह भी बताती है कि उसका एक बच्चा है और उससे पहले एक मरे हुए बच्चे को जनम दिया था |

इस सब बातों को सुन कर डॉ को भी थोडा आश्चर्य हुआ |

फिर डॉ साहब ने अकेले में बिठा कर पूछा .. तुम्हारे बच्चे का जनम कैसे हुआ था ? वो बच्ची बिलकुल धारा  प्रवाह बताने लगी कि कैसे ऑपरेशन से उसके बच्चे का जनम हुआ था |

डॉ भी उसकी बातें सुन कर हैरान हो गए , क्योकि यह सब बातें एक बालिग औरत ही बता सकती थी जिसने बच्चे को जनम दिया हो  |

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6 replies

  1. Sach hai ki nahin bhi manana padta hai.Sundar blog.

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