
मैं और मेरी कलम हमेशा आपस में बातें करते है | जब भी पुरानी यादें मुझ पर हावी होती है तो यह कलम ही है जो कागज़ के पन्नो पर यादों की स्याही बिखेर देती है | जब भी आस पास कुछ अन्याय होता देखता हूँ तो मेरी कलम ही है जो आवाज़ बन कर लोगों तक पहुँचती है |
जब रात की चौखट पर नींद आंखों का साथ छोड़ देती है तो यही कलम उस वक़्त मेरा हाथ थाम कर साथ देती है | मेरी स्मृति के कुछ पन्नो को वक़्त के स्याही से रंग देती है और फिर मेरा दिल सुकून पा लेता है |
लेकिन आज कलम से मेरी लड़ाई हो गयी, जाने क्या बात हो गयी … जी हाँ , अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोने की कोशिश है मेरी यह कविता . मुझे आशा है आप ज़रूर पसंद करेंगे |

मैं और मेरी कलम
आज कलम से मेरी लड़ाई हो गयी
लगा ,जैसे वो हमसे पराई हो गयी
जब भावनाओं को लिखना चाहा तो ,
कलम में ख़तम रोशनाई हो गयी ,
मैं शरीर से बुढा हो गया तो क्या
मेरी हाथों में कम्पन है तो क्या
दिल से तो अभी जवान हूँ मैं
अपनी सोच का गुमान हूँ मैं
दिल की बातें तो कहना चाहता हूँ
लेकिन जुवान से खामोश हो जाता हूँ
कभी अपनी सोच से परेशान हो जाता हूँ
तो कलम से लड़ झगड़ कर ही सो पाता हूँ |
जिम्मेदारियों की बोझ से मेरे हालात उलझ जाते है
ख्वाबों के पंख अरमानों की आग में झुलस जाते है
घबरा कर दूर कर लेता हूँ खुद को खुद से ही
फिर मेरी कलम मुझसे मिलने को तरस जाते है
अब किसी की उम्मीद भी कंधो पर बोझ लगती है
खुद की खुशियां भी मुझे गमगीन करती है
अब मेरी परेशानी का यह आलम है दोस्तों
मेरी तबाही भी लोगों को बड़ी हसीन लगती है |
परिस्थितियों से लडूंगा, अपनी हार नहीं मानूंगा
दुनिया वालों के सामने, हथियार नहीं डालूँगा
मुझे बेरंग समझने वालों, तुम यही समझा करो
मैं तो अपनी ज़िन्दगी को, इंद्र धनुषी रंग से भरूँगा |
( विजय वर्मा )

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Categories: kavita
Thanks for sharing this. Anita
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Thank you so much for your appreciation.💕
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वाह, मेरी कलम से लड़ाई हो गई…… वाह
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बहुत बहुत धन्यवाद सर जी |
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💜💜
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Thank you so much.💕
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