
मैं ने उत्पल दास से विनती भरे स्वर में कहा कि किसी तरह उस बुढिया के मकान में रहने की जुगाड़ कराओ , क्योकि तीन दिनों के भीतर पहले वाला मकान खाली करना है | मैं बहुत परेशान हूँ |
कुछ सोच विचार कर वो फिर बोला ..आप थोडा अपना हुलिया ठीक कर gentleman बन कर जाइये और उनलोगों से निवेदन कीजिए | वो लोग बहुत गरीब है पर भले है , इसीलिए वो आप के निवेदन को मान जाएंगे |
लेकिन आप मेरे बारे में चर्चा मत करना | उनके पति थोडा कड़क स्वभाव के है | हम से उनकी बनती नहीं है |

उसकी सलाह को मानते हुए , मैं दुसरे दिन बैंक से एक दिन की छुट्टी लिया | सैलून गया और बाल दाढ़ी ठीक करवाई | फिर बिल्कुल जेंटलमैन बन कर दुबारा शाम के वक़्त उस बुढिया के पास गया |
बड़ी सी गेट पर दस्तक देकर जबाब का इंतज़ार करता रहा | थोड़ी देर में फिर वही बुढिया आयी और साथ में उसका पालतू कुत्ता भी था | कुत्ते को देख कर मैं घबरा गया तो बुढिया के कहा कि डरने की ज़रुरत नहीं है, इसे मैं चैन से बाँध देती हूँ | फिर वो वापस आयीं | देखने में भली ही लग रही थी |
उन्होंने कहा कि आप तो कल भी आए थे और मैं ने मना भी कर दी थी | हमने कहा कि.. हाँ, आप ने कल मना किया था ,लेकिन उत्पल ने बताया कि आप सब भले लोग है और ज़रूरतमंद इंसान की मदद करते है |
इतना सुनते ही वो थोडा नरम पड़ गई | शायद अपनी तारीफ उनको अच्छा लगी | फिर वह गेट खोल कर मुझे अंदर ले गई और और अपने छोटे से ड्राइंग रूम में बैठाया |

मैं ने धन्यवाद कहा ..तो वो हँसते हुए बोली कि कल तुम्हे देख कर लगा जैसे कोई मवाली है, लेकिन आज तुम ठीक लग रहे हो | लोग कहते है कि First impression is the last impression .. लेकिन आज ऐसी बात नहीं लग रही थी |
उन्होंने बताया कि मैं सविता मुख़र्जी और मेरे पति शंकर मुख़र्जी साथ रहते है | और हमारे पास दो ही रूम है एक मेरा शयन कक्ष और दूसरा यही कमरा ,जिसमे हमलोग बैठे है | यही रूम मैं आप के लिए दे सकती हूँ |
मुझे तो दो दिनों में ही पहला मकान खाली करना था , इसीलिए इस proposal को फिलहाल मानना ही था | सोचा, बाद में अगर कोई ढंग का दूसरा मकान मिलेगा तो शिफ्ट कर जाऊंगा | यही सोच कर मैंने इस रूम के लिए हां कर दी और इसका भाडा भी पूछ लिया |
वो हँसते हुए बोली कि २०० रूपये देना होगा | मैं तुरंत ही …हाँ कर दिया और पॉकेट से १०० रूपये निकाल कर एडवांस के तौर पर उनके हाथ मे दिए | फिर नमस्ते किया और जाने को उठ खड़ा हुआ |
उन्होने अचानक मुझसे सवाल किया — तुम्हारे पास सामान क्या क्या हैं ?
मैं हँसते हुए जबाब दिया … सिर्फ एक बैग है | बाकी के समान खरीद लूँगा | मैं ख़ुशी ख़ुशी वहाँ से चल दिया ओर खुद को इस जीत की बधाई देने लगा |
आज दिनांक 2nd oct 1984, आज ही के दिन शिफ्ट करना था | मुझे थोड़ी घबराहट हो रही थी क्योंकि नई जगह थी और ख़ास कर अब अकेले रहना था | हमारे three idiot का दो पार्टनर ट्रान्सफर होने के कारण यहाँ से चला गया था और मुझे भी अपना idiot वाला चोला बदल कर गाँधी जी बन जाना था, क्योकि आज 2nd oct है |

मैं रिक्शा पर अपना सामन डाला और चल दिया नए घर की ओर…. …
बिलकुल शरीफ बनकर ,.. .simple living high thinking .. वाली तर्ज पर घर में प्रवेश किया | मैं बुढिया की तरफ मुखातिब होते हुए बोला …माँ जी, मैं finally यहाँ आ गया | लेकिन अंदर रूम में घुसते ही आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा | कमरा पूरी तरह सजी हुई थी |
..एक तरफ बेड – गद्दे के साथ लगा था औए दूसरी तरफ एक study table और chair और कपडा टांगने के लिए wooden hanger था | ऐसा लगा कि मैं एक होटल में आ गया | कमरा को सलीके से सजाया गया था ,जैसे उस बूढी का कोई अपना सगा आने वाला हो |
मैं सबसे पहले बुढा और बूढी का पैर छू कर आशीर्वाद लिया | और एक गिलास पानी की इच्छा जताई, माँ जी ने एक प्लेट में दो सन्देश मिठाई और एक गिलास जल टेबल पर रख दी, बिल्कुल Bengali culture .. |
बात आगे बढ़ाते हुए वो बोली — तुम मेरे बेटे जैसे हो ,आज रात को मेरे साथ ही भोजन करना | होटल जाने की ज़रुरत नहीं है | मैं मन ही मन बोल पड़ा ….वाह, क्या बात है ..और क्या चाहिए, “जैसे अंधे को मिली दो आँखे” …मैं ने भगवान को दिल से शुक्रिया अदा किया |

मैंने सोचा ही ना था कि इतनी जल्दी दुबारा अच्छे दिन आ जाएंगे | सुंदर सा एक कमरा, सोने के लिए फ्री की चौकी और उस पर गद्दा , पढाई लिखाई के लिए टेबल-कुर्सी, कपडा वगैरह रखने के लिए एक लोहे की अलमारी, सब कुछ बिलकुल फ्री |
रात को नींद अच्छी आई और सुबह ठीक 6 बजे नींद खुल गई | उठ कर बैठा ही था कि गरमा गरम चाय और साथ में एक प्लेट में दो बिस्कुट | मैं ने तुरंत ही कहा..माँ जी, इसकी क्या ज़रुरत थी | उन्होंने हँसते हुए ज़बाब दिया ..अभी अभी ,तुमने तो मुझे माँ जी कहा है ..तुम तो मेरे बेटे के समान हो |
मैं ने हँसते हुए पूछा कि आप इतना अच्छा हिंदी कैसे बोल लेती है | “आमी तो जन्म से बंगाली.. परन्तु कर्म से बिहारी” …बोल कर धीरे से हँस दी | उनलोगों के इतने अच्छे व्यवहार से बहुत आश्चर्य हो रहा था |
ऐसा लगा सचमुच मेरे माता पिता यही लोग है | सच में दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है | बाबा की उम्र ७० साल थी | फिर भी एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करके जीविका चला रहे थे | गरीबी इस हद तक, फिर भी दिल इतना बड़ा कि जितना भाडा मुझसे मिलना था उससे ज्यादा तो मुझे खाना खिलाने में खर्च हो जाएंगे, शायद |

बातों बातों में पता चला कि उनका भी एक बेटा था जो भरी जवानी में एक एक्सीडेंट में मारा गया था और अब उनकी सिर्फ एक बेटी थी जो शादी के बाद कोलकाता में सेटल थी | लेकिन बुढा – बूढी का हौसला इतना कि किसी से कोई मदद लिए बिना इस उम्र में खुद कमा कर पेट पाल रहे है |
मैं रोज़ सुबह उठ कर उन दोनों के पैर छूकर अपने दिन की शुरूवात करने लगा | और सोचता कि उनका बेटा बनकर उनके जीवन की शुन्यता में थोड़ी खुशियों के पल दे सकूँ…..(क्रमश.)
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Categories: मेरे संस्मरण
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