आज 4 फ़रवरी है और आज के दिन को चौरा -चौरी कांड के लिए याद किया जाता है | हम भारतवासी इस चौरा चौरी काण्ड की घटना का शताब्दी समारोह वर्ष भी मना रहे है |
दोस्तों, चौरा चौरा कांड आज़ादी के इतिहास को एक नया मोड़ देने में सफल रहा, हालाँकि इसे आज़ादी के इतिहास में प्रमुखता से जगह नहीं दी गयी |
लोग कहते है कि अगर यह घटना नहीं होती तो 1922 में ही हमारा देश आज़ाद हो गया होता |
असहयोग आन्दोलन
दरअसल गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ 1 अगस्त, 1920 को असहयोग आंदोलन शुरू किया था। इस आंदोलन के तहत गांधीजी ने उन सभी वस्तुओं (विशेष रूप से मशीन से बने कपड़े), संस्थाओं और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला लिया था, जिस व्यवसाय के तहत अंग्रेज़ भारतीयों पर शासन कर रहे थे ।
मतलब कि विदेशी सामान खरीदना बंद करना और अंग्रेजो के द्वारा बनाये गए वस्तुओं का बहिष्कार करना | उसके बदले स्वदेशी सामान का इस्तेमाल करना, जिससे कि हमारे कुटीर उद्योग, लघु उद्योग और हस्तशिल्प उद्योग को बढ़ावा मिल सके |
हमारे लोगों में स्वदेश की भावना कूट कूट कर भरी है | इसलिए लोग विदेशी कपड़ा का वहिष्कार करने लगे और उसकी जगह खादी के कपडे का उपयोग शुरू हो गया | उन दिनों हमारा भारत कपड़ा का बहुत बड़ा मंडी हुआ करता था | इसका नतीजा यह हुआ कि 1921 में इम्पोर्ट 107 करोड़ से घट कर सिर्फ 57 करोड़ ही रह गयी थी | इससे अंग्रेज भी काफी बौखला गए थे |
पुलिस को जिंदा जलाया
चौरी चौरा एक गाँव जो गोरखपुर जिला में स्थित है | 4 फरवरी को वहाँ के स्वयंसेवकों ने बैठक की और असहयोग आन्दोलन के तहत जुलूस निकालने के लिये पास के मुंडेरा बाज़ार को चुना गया। इस जुलुस का नेतृत्व भूतपूर्व सैनिक भगवान् अहीर कर रहे थे |
उस जुलुस में भीड़ बहुत जमा हो गयी थी | पुलिसकर्मियों ने उन्हें जुलूस निकालने से रोकने का प्रयास किया। पुलिस वाले से भगवान् अहीर और उसके साथियों की झड़प हो गयी | भीड़ के मुकाबले पुलिस की संख्या बहुत कम थी | लेकिन पुलिस ने भीड़ पर गोली चला दी, जिसमें कुछ लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए।
इस पुलिस कार्यवाही में अपने क्रांतिकारी साथी की मौत से आन्दोलनकारी लोग क्रोधित हो गए | और क्रोधित भीड़ ने पुलिस पर पत्थात्बाजी करने लगी और उन्हें पीटने लगी | परिणाम यह हुआ कि घबरा कर पुलिस वालों ने पुलिस चौकी में जाकर शरण ली |
लोगों में अंग्रेजो के खिलाफ बहुत रोष था | इसलिए उग्र भीड़ ने ब्रिटिश सरकार की उस पुलिस चौकी में आग लगा दी थी जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस जिन्दा जल कर मर गए थे। इसमें तत्कालीन दरोगा गुप्तेश्वर सिंह जी भी थे | इस घटना को चौरा चौरी काण्ड के नाम से जाना जाता है।
चूँकि गाँधी जी अहिंसा के पुजारी थे और उनके सभी आन्दोलन अहिंसा से सिद्धांत पर चलता था | जब इस हिंसक घटना की जानकारी गाँधी जी को हुई तो उन्हें बहुत दुःख हुआ | इसलिए चौरी -चौरा की घटना से आहत होकर गाँधी जी ने कहा था कि हिंसा होने के कारण यह असहयोग आन्दोलन उपयुक्त नहीं रह गया है और उन्होंने 11 फरवरी 1922 को इसे वापस लेने की घोषणा कर दी |
असहयोग आन्दोलन स्थगन प्रस्ताव
चौरी चौरा की इस घटना से महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन को आघात पहुँचा था , जिसके कारण उन्हें असहयोग आन्दोलन को स्थागित करना पड़ा | जिसका स्थगन प्रस्ताव 12 फरवरी 1922 को विधिवत रूप से बारदोली, गुजरात के कांग्रेस कमिटी की सभा में पारित किया गया |
ब्रिटिश सरकार ने इस घटना के बाद, अभियुक्तों पर आक्रामक तरीके से मुकदमा चलाया। सत्र अदालत ने 225 अभियुक्तों में से 172 को मौत की सज़ा सुनाई । लेकिन इन अभियुक्तों की तरफ से इलाहबाद हाई कोर्ट में अपील की गयी |
इस मुकदमा को पंडित मदन मोहन मालवीय ने अभियुक्तों की ओर से लड़ा था | अंततः उन्होंने 172 लोगों में से 151 दोषी ठहराए गए लोगों की फांसी की सजा माफ़ कराई थी | और केवल 19 को फाँसी दी गई थी | उनकी याद में यहाँ एक शहीद स्मारक आज खड़ा है |
गांधी जी का विरोध
लेकिन कहा जाता है कि इस फांसी की सजा दिए जाने के विरोध में गांधी जी ने सरकार के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला | इसके कारण लोगों ने उनकी खुलेआम आलोचना भी की थी | इसका परिणाम हुआ कि कांग्रेस कमिटी के कुछ सदस्य गाँधी जी का विरोध करने लगे | विरोध करने वालों में प्रमुख थे मोती लाल नेहरु, जवाहर लाल नेहरु, सी आर दास , सुभास चन्द्र बोस, सी राज गोपालाचारी और अली बन्धु ( शौकत अली और मो अली ) |
इन लोगों ने खुल कर गाँधी जी की आलोचना की | जब अंग्रेजों को इस बात की जानकारी हुई तो उसने इस स्थिति का फ़ायदा उठाया |
पहले अंग्रेज गाँधी जी से डरते थे और उन्हें कभी गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे | अंग्रेजी हुकूमत को इस आपसी फुट के कारण मौका मिल गया |
अंग्रेजों ने गाँधी जी को 10 मार्च 1922 को गिरग्तार कर लिया | अदालत ने उन्हें 6 वर्ष की कारावास की सजा सुना दी और उन्हें जेल में डाल दिया |
उपाधि वापस कर दी
अंग्रेजो द्वारा बहुत सी उपाधि गाँधी जी को दी गयी थी उनमे प्रमुख है .. “केसर ए हिन्द “, “बोअर युद्ध पदक” जुलु युद्ध पदक | ये पदक अंग्रेजो द्वारा गाँधी जी को प्रथम विश्व युद्ध के समय दिया गया था, क्योकि प्रथम युद्ध में भारतीयों ने अंग्रेजो के तरफ से युद्ध में हिस्सा लिया था |
गाँधी जी असहयोग आन्दोलन के दौरान उन सभी उपाधियों को वापस कर दिया था |
इसके अलावा जमना लाल बजाज ने भी अंग्रेजो से प्राप्त “राय बहादुर” की उपाधि वापस कर दी थी |
करीब दो साल जेल में बिताने के बाद गांधी जी की स्वास्थ अचानक बहुत खराब हो गयी | उनकी बिमारी के कारण ही अंग्रेजों ने उन्हें 5 फरवरी 1924 को जेल से रिहा कर दिया था |
हालाँकि असहयोग आन्दोलन सफल नहीं हो सका | इसके पीछे का कारण यह बताया जाता है कि इसे “खिलाफत आन्दोलन‘ के साथ जोड़ दिया गया था | खिलाफत आन्दोलन एक धार्मिक आन्दोलन था जब कि असहयोग आन्दोलन पुर्णतः राष्ट्रीय आन्दोलन था | और दोनों आन्दोलन का स्वरुप बिलकुल भिन्न था |
लेकिन इस असहयोग आन्दोलन से एक फायदा भी हुआ और वह यह कि इससे पहले जितने भी आन्दोलन हुए थे वे सब नगर और शहरों तक ही सिमित रहे, जबकि असहयोग आन्दोलन गाँव और कस्बो तक पहुँच गया था | मतलब, यह आन्दोलन गाँव-गाँव तक पहुँच चूका था |
इसमें गाँव के लोग, किसान भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे | गांधी जी ने गाँव के लोगों में भी अंग्रेजो के खिलाफ जागृति उतपन्न कर दी थी | और यह बात साफ़ हो गयी थी कि भारतीय जनता अब और अंग्रेजों के अत्याचार सहन नहीं कर सकेगी |
गाँधी जी स्वराज प्राप्त करने हेतु सभी भारतीयों को एक सूत्र में बाँधने में सफल हुए थे | इसके बाद ही 1923 में स्वराज पार्टी की स्थापना की गयी थी | इसकी स्थापना इलाहबाद में सी आर दास और मोतीलाल नेहरु के प्रयास से हुई थी |
इस तरह हम 4 फरवरी के दिन चौरी चौरा काण्ड को याद किया जाता है |
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Categories: infotainment
The movie about Gandhi’s life played the other day on an old movie channel. This incident was shown. Your extended explanation of what happened was, therefore, much appreciated for what it added to the movie version of that history!
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Yes dear,
It is an important incidence of Quiet India Movement..
Thank you for sharing your information..
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चौरी-चौरा की घटना स्वतंत्रता संग्राम में एक मिल का पत्थर साबित हुआ और उसने भविष्य के आंदोलनों को प्रभावित भी किया। साथ ही इसने बल प्रयोग कर आजादी हासिल करने के विचारधारा को भी नई दिशा दी।
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बिल्कुल सही तथ्य प्रस्तुत किया है।
विचार साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
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चौरी-चौरा कांड में यद्यपि गांधी जी के सिद्धांतों के विरूद्ध कर्म किए जाने के कारण उन्हें आघात पहुँचा । लेकिन अपने आन्दोलनकारी साथियों पर गोलियों की बौछार और उनकी मृत्यु से उभरा जनाक्रोश भी परिस्थितिजन्य और स्वाभाविक था। जब भावनाएं आहत होती हैं तो भीड़ की प्रतिक्रिया विकराल रूप धारण कर लेती है। लोग अपने होश खो देते हैं। इसे भी समझने की जरूरत है। ऐसी घटना नेतृत्व कर्ता की कमजोरी को साबित करता है। इसलिए गांधी जी ने स्वयं को इसके दोषी मानते हुए अपने पदकों को वापस करने एवं असहयोग आन्दोलन वापस लेने का फैसला किया।
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घटना का बिलकुल सटीक विश्लेषण किया है /
अपने विचार साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
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Chouri Choura baare me Hame padhthe the.Sirf tarikh aur Saal.Ab padhkar khusi hui. Bahut sundar varnan.
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Yes dear,
this is an important incidence in the quit India movement..
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
इंसान कितना ही अमीर क्यों न बन जाये ,
तकलीफ बेच नहीं सकता और सुकून खरीद नहीं सकता |
सदा खुश रहें… सदा प्रसन्न रहें |
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