#अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है ? 

ऐसा माना जाता है कि आत्मविश्वास और  आत्मबल जीवन में  सफलता की कुंजी है । जब व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास की कमी होती है, तो वह हमेशा निराश, हताश व दुःखी रहता है, जबकि अगर हम आत्मविश्वास से भरे रहते है तो  कठिन से कठिन कार्य को  आसानी से कर सकते है  ।

वैसे तो अपने अंदर आत्मविश्वास  बढ़ाने के बहुत से साधन है, जिसकी चर्चा अलग से करने की  कोशिश करूंगा |

हम बचपन से यह  कहावत सुनते आ रहे है कि  ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता |“ अकसर जब हम किसी परिवर्तन को हवा देने की बात करते है, तब हमारा  निराशावादी मन यह कह उठता है,–  ‘क्या करें !’ कोई अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

मुझे तो समझ नहीं आती है कि एक चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, पर क्या एक हजार चने भी कभी भाड़ को फोड़ सकते हैं ? यह  सत्य है कि चने तो चने हैं ! वे कितने ही हों, भाड़ को नहीं फोड़ सकेंगे।

जंगल की  कहावत बड़ी मशहूर है कि एक शेर को गिदड़  कभी नहीं मार सकता , चाहे वह एक की  संख्या में हो या हजारों की संख्या में हो | क्योंकि प्रश्न केवल भीड़ का नहीं है, उसके मनोबल का है, संकल्प शक्ति का है।

निहत्थे राजा को उसका बंदूक धारी सिपाही कभी भी मार सकने में सक्षम है, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकता है |  वह तभी कर सकता है जब उसका मनोबल ऊंचा हो और  वह भयमुक्त हो |

 स्वामी विवेकानन्द ने सच कहा है —  ‘भय से ही दुःख आते हैं। भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं’। वास्तव में भय ही हमारा मनोबल तोड़ देता है।

जब हमारा मनोबल ऊंचा होता है और लक्ष्य स्पष्ट होता है , तो हमारे अकेले होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। महात्मा बुद्ध ने जब ज्ञान प्राप्त किया था  तो वे अकेले थे किंतु आज करोड़ों लोग उनकी पूजा कर रहे हैं !

आज मैंने एक बहुत सुंदर और शिक्षाप्रद  कहानी पढ़ी  है, जिसे आप सब लोगों के साथ शेयर करना चाहता हूँ |

एक घटना  वर्ष 1979 की है | जाधव नाम  का युवक 10 वीं की परीक्षा देने के बाद अपने गाँव में आया था | वह ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ का पानी उतरने पर इसके बरसाती भीगे रेतीले तट पर घूम रहा था ।

तभी उनकी नजर वहाँ लगभग 100 मृत सांपों के विशाल गुच्छे पर पड़ी। वह आगे बढ़ता गया और देखा कि पूरा नदी का किनारा मरे हुए जीव – जन्तुओं से अटा पड़ा है | वहाँ एक  मरघट सा दृश्य  था। मृत जानवरों के शवों के कारण पैर रखने की जगह नहीं थी।

जानवरों के इस दर्दनाक सामूहिक मौत के दृश्य ने  जाधव के किशोर मन  को झकझोर दिया था ।

हजारों की संख्या में उस  जीव – जन्तुओ की  आकस्मिक मौत को अपनी आँखों से देखने के बाद जाधव को कई रात नींद नहीं आई थी ।

गाँव के ही एक बुजुर्ग आदमी ने चर्चा के दौरान  विचलित जाधव से कहा था — जब पेड़ पौधे ही नहीं उग रहे हैं, तो नदी के रेतीले तटों पर जानवरों को बाढ़ से बचने का आश्रय कहाँ मिले? जंगलों के बिना इन्हें भोजन कैसे मिले ? 

यह बात जाधव के मन में पत्थर की लकीर बन गयी कि जानवरों को बचाने के  लिए पेड़ – पौधे लगाने होंगे।

50 बीज और 25 बांस के पेड़ लिए 16 साल का जाधव पहुंच गया नदी के रेतीले किनारे पर उन्हें रोपने हेतु । यह आज से 35 साल पुरानी बात है। एक वो दिन था और एक आज का दिन है |

क्या कोई कल्पना कर सकता हैं कि इन 35 सालों में जाधव ने 1360 एकड़ का जंगल बिना किसी सरकारी मदद के लगा डाला।

यह सुन कर हमें अपनी कानों पर  भरोसा करना मुश्किल हो जाता है कि एक अकेले आदमी के लगाये उस घने जंगल में आज 5 बंगाल टाइगर, 100 से ज्यादा हिरन,  जंगली सुअर, 150  जंगली हाथियों का झुण्ड, विचरण करता है |

इसके अलावा भी अनेक जंगली पशु वहाँ मौजूद है | और हाँ,  सांप भी वहाँ बहुतायत की  संख्या में है | वही साँप जिसने इस अद्भुत नायक को जन्म दिया था  ।

जंगलों का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए वह  रोज सुबह 9 बजे से पांच किलोमीटर साइकिल से जाता,  फिर नदी पार करते और नदी के दूसरे तट पर वृक्षारोपण करते | फिर शाम ढलने पर वे नदी पार कर पुनः साइकिल से 5 किलोमीटर तय कर घर वापस आते । यह उसका जुनून बन चुका था |

इनके लगाये पेड़ो में कटहल, गुलमोहर,  बांस, साल, सागौन, सीताफल, आम, बरगद, शहतूत, जामुन, आडू और कई औषधीय पौधे हैं। लेकिन सबसे आश्चर्यजनक और दुर्भाग्य पूर्ण तथ्य यह है कि इस असम्भव को सत्य कर दिखाने वाले साधक से कुछ साल पहले तक देश अनजान था। 

यह लौह पुरुष अपने धुन में अकेला आसाम के जंगलों में साइकिल में पौधों से भरा एक थैला लिए अपने बनाए जंगल में गुमनाम सफर कर रहा था।

सबसे पहले, वे वर्ष 2010 में देश की नजर में आये जब वाइल्ड फोटोग्राफर “जीतू कलिता” ने इन पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई “The Molai Forest” यह फिल्म देश के नामी विश्वविद्यालयों में दिखाई गयी। दूसरी फिल्म आरती श्रीवास्तव की “Foresting Life” जिसमें जाधव की जिन्दगी के अनछुए पहलुओं और परेशानियों को दिखाया। तीसरी फिल्म “Forest Man” जो विदेशी फिल्म महोत्सव में भी काफी सराही गई।

एक ऐसा व्यक्ति, जो इतने पिछड़े इलाके से है कि उसके पास अपना पहचान पत्र के रूप में “राशन कार्ड” तक नहीं है,| वो अकेला व्यक्ति ने वन विभाग की मदद के बिना, किसी सरकारी आर्थिक सहायता के बगैर  हजारों एकड़ में फैला पूरा का पूरा जंगल ही खड़ा कर दिया।

यह जान कर घोर आश्चर्य होता है कि इस दौर में उसके द्वारा अच्छे कामों का श्रेय देने के बजाए लोग उसे गुमनाम ही रखना चाहते है । उन जंगलों को उसके नाम से न जान कर इन जंगलों को “मिशिंग जंगल” कहा जाता है क्योंकि  जाधव आसाम की मिशिंग जनजाति से हैं।  

जीवन यापन करने के लिए इन्होंने गाय पाल रखी हैं।  शेरों द्वारा आजीविका के साधन उनके पालतू पशुओं को खा जाने के बाद भी जंगली जानवरों के प्रति इनकी करुणा कम नहीं होती है । उनका कहना है कि शेरों ने मेरा नुकसान किया क्योंकि वो अपनी भूख मिटाने के लिए खेती करना नहीं जानते। आप जंगल नष्ट करोगे वो आपको नष्ट करेंगे ही ।

सम्मान

जाधव को देश की प्रसिद्ध “जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी” ने साल 2012 में सम्मानित किया | जिसके बाद  2015 में महामहिम “राष्ट्रपति” द्वारा देश के चतुर्थ सर्वोच्च नागरिक सम्मान “पद्मश्री” से अलंकृत कर ये बताया कि हमारे पास प्रकृति को बचाने वाला सबसे खास खजाना मौजूद है | जाधव आज भी आसाम में बांस के बने एक छोटे से कमरे में अपनी पुरानी में दिनचर्या में लीन हैं।

वे फ्रांस में आयोजित हुई “सातवीं ग्लोबल कॉन्फ्रेंस ऑफ सस्टेनेबल डेवलपमेंट” की बैठक में शामिल हो चुके हैं. जहां से उन्होंने पूरी दुनिया को सम्बोधित करते हुए कहा था कि हर देश को फॉरेस्ट मैन की जरूरत है | हमें आईटी की खेप के बीच फॉरेस्ट मैन तैयार करने वाली फसल भी पैदा करनी चाहिए | अब जाधव की तैयारी है 5000 एकड़ क्षेत्र में वृक्षारोपण की | उन्होने इस मिशन को जारी रखे हुए हैं.

हम प्रकृति बचाने के नाम पर क्या कर रहे हैं ? पर्यावरण दिवस, जल दिवस, पृथ्वी दिवस, स्वच्छता दिवस मना लेते हैं | इन खास दिनों पर एकाध पौधे को हाथ लगाकर फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर शेयर कर देते हैं |

तमाम सरकारी प्रयासों, वृक्षारोपण के नाम पर लाखों रुपये के पौधों की खरीदी करके भी ये पर्यावरण, वन-विभाग वो मुकाम हासिल न कर पाये जो एक अकेले की इच्छा शक्ति ने कर दिखाया।

साइकिल पर जंगली पगडंडियों में पौधों से भरे झोले और कुदाल के अपनी मिशन में लगे हुये है | वह  हरी-भरी प्रकृति की अनवरत साधना में निस्वार्थ पुजारी है ।

उन्होंने आज सिद्ध कर दिया कि  कभी – कभी “अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है।

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6 replies

  1. We visited there in India. Great image. Anita

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  2. बहुत ही सुंदर और प्रेरक। अगर हमे जिंदा रहना है तो हमे पेड़ लगाना ही होगा। अगर पेड़ और जंगल खत्म हुए हो मानव जाति भी खत्म हो जायेगी।

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  3. christinenovalarue's avatar

    💚💚💚

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