# वो सुनहरी यादें # 

दोस्तों ,

बात उन दिनों की है, जिस दिन मैं  बैंक से रिटायर हो रहा था | ऐसा लगा था जैसे अब ज़िंदगी खत्म । मैं बहुत नर्वस महसूस कर रहा था | फिर मैंने यह सोच कर दिल को तसल्ली दी कि और भी मेरे साथी रिटायर हो  रहे है | यह तो हमारी दूसरी पारी की शुरुआत है |

रिटायरमेंट का दिन तो वो दिन होता है, जब हम वो आखिरी लम्हा काम से लौटते हैं और घर आ कर अपनी प्रिय पत्नी से  कहते हैं,–  प्रिय, अब मै हमेशा तुम्हारी सेवा में हाजिर हूँ | सचमुच बहुत भावुक क्षण होता है | उस समय बैंक में बिताएँ बहुत सारे मधुर स्मृतियाँ आंखों के सामने घूमने लगती है |

अपने ऑफिस के उस कुरसी को अंतिम बार पीछे मूड  कर देखना एक अजीब अनुभव कराता है | उन्हीं दिनों को याद कर मैंने इस  कविता की रचना की है | मेरी दूसरी पारी की यह शुरुआत शायद आप को भी पसंद आएगी |

वो सुनहरी यादें

कुछ  सुनहरी यादें …

ना कभी धुंधली होती है

ना ही कभी भूली जाती है

हर पल हर लम्हा अब भी ..

वो सुनहरे पल …

याद करते करते

मन भावुक हो जाता है |

अब तो

ना रहा वो जोश …

ना रहा वो बैंक …

ना रही वो चाकरी …

सिर्फ है तो

कुछ सुनहरी यादें

कुछ बिताए पल

कुछ टूटे हुए सपने

और उनमें

खुद को खोजता मैं |

…….विजय वर्मा…..

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Categories: kavita

6 replies

  1. Isse yeh keh sakte he ki waqt hamesha ek jaisa ni reh pata

    Bas yaadein reh jati he

    Hume har pale ache se jee lena chahiye

    Jai shree ram

    Liked by 1 person

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