# वैशाली की नगरवधू # 

बिहार का इतिहास गौरवशाली रहा है, इस धरती ने चंद्रगुप्त मौर्य जैसा शासक दिया तो चाणक्य जैसा अर्थशास्त्री । शून्य की खोज करने वाला आर्यभट्ट दिया तो सम्राट अशोक जैसा चक्रवर्ती सम्राट।

और अगर नगरबधू आम्रपाली  की चर्चा न की जाए तो बिहार के इतिहास को पूर्ण नहीं माना जा सकता है |

तो आइये आज हम सभी आम्रपाली से जुडी कहानी के बारे में चर्चा करते है …

आम्रपाली कौन थी ?

आम्रपाली के माता-पिता का तो पता नहीं, लेकिन ऐसा सुना गया है कि जिन लोगों ने उसका पालन किया उन्हें वह एक आम के पेड़ के नीचे मिली थी, जिसकी वजह से उसका नाम आम्रपाली रखा गया |

वह दिखने में बहुत खूबसूरत थी | उसकी आंखें बड़ी-बड़ी और काया आकर्षक था  |  जो भी उसे देखता था वह अपनी नजरें उस पर से हटा नहीं पाता था |

लेकिन उसकी यही खूबसूरती , ….उसका यही आकर्षण उसके लिए श्राप बन गया |

एक आम लड़की की तरह आम्रपाली भी खुशी खुशी अपना जीवन  जीना चाहती थी लेकिन ऐसा हो नहीं  सका |

वह तो अपने भीतर के दर्द को कभी बयां भी नहीं कर पाई और अंत में वही हुआ जो उसकी नियति में लिखा हुआ था |

यह कहानी है भारतीय इतिहास की सबसे खूबसूरत महिला जो आम्रपाली  के नाम से विख्यात थी और जिसे अपनी खूबसूरती की कीमत नगरबधू बन कर चुकानी पड़ी |

वह किसी की पत्नी तो नहीं बन सकी लेकिन संपूर्ण नगर की नगरवधू जरूर बन गई |

नगरवधू का अर्थ होता है संपूर्ण नगर वासियों की पत्नी |  नगर के प्रतिष्ठित लोगों के द्वारा वह नगरवधू चुनी गई थी |

आम्रपाली नाच गाने के द्वारा लोगों का मन बहलाया करती थी |  इसका मुख्य काम  राजाओ मंत्रियों और बड़े लोगों को खुश रखना होता था |

आम्रपाली ने अपने लिए यह नगरवधू का जीवन स्वयं नहीं चुना था बल्कि वैशाली में शांति बनाए रखने, गणराज्य की अखंडता बरकरार रखने के लिए किसी एक की पत्नी न बनाकर उसे नगर को सौंप दिया गया |

 उसने सालों तक वैशाली के धनवान लोगों का मनोरंजन किया लेकिन जब वह तथागत बुद्ध के संपर्क में आई तो सब कुछ  छोड़कर बौद्ध भिक्षुणी बन गई |

ऐसा कहा जाता है कि अम्रपाली जैसे-जैसे बड़ी हुई, उसका सौंदर्य  चरम पर पहुँचता गया जिसकी वजह से वैशाली का हर पुरुष उसे अपनी दुल्हन बनाने के लिए बेताब रहने लगा |

 लोगों में आम्रपाली की दीवानगी इस हद तक थी कि उसको पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे | आम्रपाली  की सुन्दरता पुरे वैशाली में सर चढ़ कर बोलती थी |

आम्रपाली के शरीर का एक एक अंग सुन्दरता की मूरत थी | उसके तीखे कमल नयन और उसका आकर्षक चेहरा बरबस लोगों का ध्यान आकर्षित कर लेता  था |

उसकी सुन्दरता ने ही उसे धन और ख्याति दिलवाई | आम्रपाली की यही  विशेषता उसकी  सबसे बड़ी समस्या भी थी |

आम्रपाली के माता-पिता जानते थे कि आम्रपाली  को किसी एक को  सौंपा जायेगा तो बाकी  लोग उनके दुश्मन बन जाएंगे और  वैशाली में खून की नदियां बह जाएगी |

इसलिए वह किसी भी नतीजे पर नहीं पहुँच पा रहे थे | इसी समस्या का हल खोजने के लिए एक  दिन वैशाली में सभा का आयोजन हुआ |

इस सभा में मौजूद सभी पुरुष आम्रपाली से विवाह करना चाहते थे | जिसकी वजह से कोई निर्णय लिया जाना मुश्किल हो गया था |

इस समस्या के समाधान हेतु अलग-अलग विचार प्रस्तुत किए गए लेकिन कोई इस समस्या को सुलझा नहीं पाया |

source: Google.com

लेकिन अंत में जो निर्णय लिया गया उसने आम्रपाली की तकदीर को अंधकारमय बना दिया | सर्वसम्मति से आम्रपाली को नगरवधू यानी वेश्या घोषित कर दिया गया |

ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि सभी जन, वैशाली के गणतंत्र को बचा कर रखना चाहते थे | लेकिन अगर आम्रपाली  को किसी एक को सौंप दिया जाता तो एकता खंडित हो सकती थी |

नगरवधू बनने के बाद हर कोई उसे पाने  के लिए स्वतंत्र था | इस तरह गणतंत्र के एक निर्णय ने उसे भोग्य  वस्तु बना कर छोड़ दिया |

आम्रपाली नगरवधू बन कर सालों तक वैशाली के लोगों का मनोरंजन करती  रही | लेकिन आम्रपाली की कहानी यही नहीं समाप्त होती है |

गौतम बुद्ध से मुलाकात
एक बार की  बात है, महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ घूमते हुए वैशाली नगरी में पहुँचे | वैशाली को उस समय सोलह महाजनपदों में एक महत्वपूर्ण जनपद माना जाता था, जिसकी ख्याति दूर दूर तक फैली हुई थी । यह नगरी परम वैभवशाली और हर तरफ से संपन्न थी ।

महात्मा बुद्ध के आने की बात पूरे नगर में फैलते देर न लगी । जिसे जब पता चलता वह तभी उनसे मिलने पहुँच  जाता और उनके उपदेश सुनकर खुद को भाग्यशाली समझता ।

बुद्ध का चरित्र ही ऐसा प्रभावशाली था कि उनसे प्रभावित हुए बिना कोई नहीं रह सका । उस नगर की नगरवधू  और राजनर्तकी “आम्रपाली” भी बुद्ध से मिलने की इच्छुक थी ।

वह खुद महात्मा बुद्ध के पास चलकर आई  और उन्हें अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया । उसने इतने सरल और प्रेम भाव से बुद्ध से विनती की कि बुद्ध मना नहीं कर सके ।

जब यह बात उनके शिष्यों को पता चला कि महात्मा बुद्ध ने एक गणिका (वेश्या) का आमंत्रण स्वीकार किया है तो सबने इसका विरोध किया ।

महात्मा बुद्ध ने बड़ी सरलता से अपने शिष्यों से कहा- ‘मैंने तो उसकी प्रेम – भावना देखी । उसने जिस भावना से मुझे बुलाया है वह बिलकुल पवित्र और निश्छल था ।

वह आज मुझसे मिलने एक गणिका बनकर नही बल्कि  भक्ति – भाव से आई थी | फिर भला मैं कैसे उसका आमंत्रण स्वीकार न करता ? वह चाहे एक वेश्या हो या फिर कोई सन्यासी ।’

यथासमय महात्मा  बुद्ध आम्रपाली के घर भोजन के लिए गए । वह पहले से ही भोजन की सारी व्यवस्था करके, भगवान बुद्ध के आने की राह देख रही थी ।

उसके मन में यह विचार भी आ रहा था कि कहीं महात्मा  बुद्ध अपनी बात से मुकर न जाए। इतने बड़े सन्यासी भला क्यों एक वेश्या के बुलाने पर उसके घर आकर भोजन करेंगे।

परंतु जैसे ही आम्रपाली ने बुद्ध को अपने घर आते देखा, उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा । वह दौड़ कर दरवाजे पर गई और उनका स्वागत किया ।

खुद अपने हाथों से भोजन परोसा और उनकी आवभगत की । महात्मा बुद्ध के शिष्यों ने जो उनके साथ आए थे जब एक वेश्या को, जिसके कदमों में खुद सम्राट बिबंसार से लेकर अजातशत्रु थे ।

पूरी वैशाली जिसके एक झलक पाने के लिए तरसती थी, उसे एक सन्यासी के लिए ऐसा व्यवहार करते देख महात्मा बुद्ध के शिष्यों के मन में अपने गुरु के लिए सम्मान ओर ज्यादा बढ़ गया ।

आम्रपाली ने महात्मा बुद्ध के व्यक्तित्व के बारे में जैसा सुना था, उनसे मिलने के बाद वह उनसे उससे ज्यादा प्रभावित हुई और उसी समय वह बुद्ध की शरण में चली गई । अपनी सारी संपत्ति वह बौद्ध -मठ के नाम करके आजीवन भिक्षुणी बन गई ।

दोस्तों, इस कहानी में एक सीख छुपी हुई है, जिसे हमें समझना चाहिए | .हम अपने जीवन काल में कुछ न कुछ पाने के लिए दौड़ लगाते रहते है | एक चीज़ मिला नहीं कि दुसरे चीज़ की तमन्ना होने लगती है और इस तरह हमलोग हमेशा परेशान रहते है |

हम चैन से सो भी नहीं पाते | लेकिन दो पल ठहर कर यह कभी नहीं सोचते है कि आखिर ऐसा क्यों ?.

जीवन का असली सत्य क्या है ? क्यों मैं इस धरती पर आया था  और  अब मैं क्या कर रहा हूँ |

जीवन में मान, प्रतिष्ठा, पैसा सब कुछ रहते हुए भी अगर मन में शांति नहीं है तो यह जीवन व्यर्थ है |

मानव मन तृष्णा और काम वासना के पीछे भागते रहता है और उसे इस ज़िन्दगी की सच्चाई का पता तब चलता है जब अंत समय आता है |

और उसे लगता है कि मैंने अपने जीवन को व्यर्थ ही गवां दिया |..

ज़िन्दगी का उद्देश्य तो सच्चाई, त्याग, संतोष, दया और दुसरे की मदद होना चाहिए |  ..आम्रपाली ने अपना सब कुछ त्याग कर भगवान् बुद्ध के शरण में आयी तभी उसे शांति और शुकून की प्राप्ति हुई और उसका जीवन सफल हो गया…|

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10 replies

  1. बहुत अच्छा

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  2. आचार्य चतुरसेन का संदर्भ देने पर उन्हें भी श्रद्धा सुमन अर्पित हो जाते सर | ब्लॉग निश्चित रूप से शानदार

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    • आपने सही कहा | लेखक चतुरसेन शास्त्री ने इसे अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना घोषित करते हुए कहा था, ‘मैं अब तक की सारी रचनाओं को रद्द करता हूं
      और ‘वैशाली की नगरवधू’ को अपनी एकमात्र रचना घोषित करता हूं.| मैं उनका परिचय भी देने की कोशिश करता हूँ |
      आपके मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |’

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  3. Nice story about Amrapali.She had been influenced by the personality of Mahatma Goutam Buddha and accepted the way of simplicity.

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  1. # वैशाली की नगरवधू #  – Viv Milano | Finance Sport Life

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