# मुझे कुछ कहना है #..12 

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रोज की तरह जब आज ब्लॉग लिखने बैठा था तो कुछ अजीब सी अनुभूति  हो रही थी…समझ  में नहीं आ रहा था कि  कहाँ से शुरू करूँ ?

हमारे आस – पास जो भी घटित हो रहा है और परिस्थितियां इतनी तेज़ी से बदल रही है कि समझ में नहीं आ रहा है …  लोग क्यों  कहते है कि  जो होता है, अच्छे के लिए होता है ?

कल की दुखद  दुर्घटना के बाद शायद आप भी उन  बातों से इत्तेफाक नहीं रखते होंगे |

हमारे शाखा प्रबंधक साहेब की अचानक मोटर साइकिल एक्सीडेंट में कल ही मौत हो गई , जिससे हम सभी बैंक के स्टाफ आहत थे  |

बार बार उनसे रोज़ रोज़ होने वाली  वार्तालाप को याद करके और उनके परिवार के बारे में सोच कर मन बहुत दुखी हो जाता था |

कितने नेक इंसान थे  और उम्र भी करीब चालीस साल की थी,  अभी तो उनके दोनों बच्चे स्कूल में ही पढ़ रहे थे |

भविष्य की ना जाने कितनी योजनायें पाल रखी होगी  ..सब कुछ बस  पलक झपकते की समाप्त हो गए | किसी ने ठीक ही कहा है कि  ज़िन्दगी तो बेवफा होती है, किसी दिन भी ठुकरा के चल दे सकती है |…..

आज लंच के समय मेरा भी कुछ तबियत ख़राब लग रहा था इसलिए बैंक से छुट्टी लेकर मैं घर आकर आराम कर रहा था |

भूख भी लग रही थी लेकिन मनका छोरी अपने भाई को लेकर पोलियो का दवा खिलाने  ले गई थी, इसीलिए खाना तो आज बना ही नहीं था |

समझ में नहीं आ रहा था कि  क्या खाएं | मैं किचेन में जाकर रखे डिब्बे में देखा तो बिस्कुट पड़े थे | मैं सोचा.. चलो बिस्कुट खा कर ही पानी पी  लिया जाए | और फिर थोडा आराम कर लूँगा तो मन ठीक हो जायेगा |

मैं बिस्कुट लेकर कमरे में बैठा ही था  कि  किचन में कुछ आवाज़ सुन कर मेरा ध्यान उस ओर चला गया | मैंने देखा तो पिंकी किचन  से थाली में खाना लेकर टेबल पर रख रही थी  |

मैं अचानक उसे इस तरह अकेला देख कर घबरा गया, और मैं जल्दी से पूछ बैठा कि दरवाज़ा तो बंद है तू आयी कैसे ?

वह जबाब में सिर्फ इतना ही कह सकी  कि  तुम खाना खा लो | तुम्हारे लिए ही घर से छत के रास्ते खाना लेकर आयी हूँ | मुझे पता था कि  आज “मनका” नहीं आने वाली थी, इसलिए तुम्हारे लिए अभी खाना बना कर लाई हूँ |

मैं फिर पूछा.. बच्चे लोग कहाँ है ? किसी ने देख लिया तो ?…

वो सभी बहनें चार बजे स्कूल से आएँगी  | इतना कह कर घड़े से पीने का पानी निकाल कर गिलास में डाली |

मैं फिर बोला …,तुम्हे इस तरह अकेले  नहीं आना चाहिए था |

ठीक है बाबा, मैं जाती हूँ ……वह थोडा नाराज़ लहजे में बोली |

लेकिन आज शाम को नदी किनारे  आना  ज़रूर | बोल कर जल्दी से वापस चली गई | मुझे तो भूख लगी थी इसलिए जल्दी – जल्दी भोजन समाप्त  किया और चारपाई पर लेट गया |

मुझे हल्का बुखार सा अभी भी अनुभव हो रहा था ..इसलिए चारपाई पर लेटा  ही था और कब आँख लग गई, पता नहीं..|

मेरी नींद खुली तो शाम के पांच बज रहे थे | बुखार अब भी था , सोचा कुछ दवा खरीद कर रख लेता हूँ शायद रात में ज़रुरत पड़े |

लेकिन पिंकी का ख्याल आते ही मैं नदी तट पर जाने को तैयार हुआ,  लेकिन अभी तो पिंकी की आवाज़ उसके घर से आ रही थी, शायद अपनी बहनों से कुछ कह रही थी |

मैं बिना कुछ सोचे नदी की ओर चल दिया | थोड़ी देर में वहाँ पहुँचा तो शाम का मौसम और नदी के किनारे , सूर्यास्त का दृश्य बहुत प्यारा लग रहा था |

मुझे बैंक से आने में रोज़ ही रात हो जाती थी ,इसलिए ऐसे नज़ारे का दर्शन कम ही हो पाता था | मैं वही एक बड़ा सा पत्थर पर बैठ कर प्रकृति के सुंदर नज़ारे का आनंद लेने लगा |

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थोड़ी देर के बाद पिंकी लगभग दौड़ते और हांफते  हुए आयी और मेरे बगल में बैठ गई | मेरे पसंद की लायी  हुई  ड्रेस में कुछ ज्यादा ही अच्छी लग रही थी |

मैं उसकी तरफ देख कर कुछ बोलना चाह रहा था कि  मेरा हाथ उसके हाथ को छुआ तो चिंतित स्वर में बोल पड़ी … अरे, तुम्हे तो बुखार है |

ऐसी स्थिति में तुम क्यों आये यहाँ पर ? तुम्हे तो आराम करना चाहिए था | उसकी बातों पर मुझे हँसी आ गई और उसे देखते हुए बोला….तुम्हारा ही तो आदेश था |

देखो , कितना शांति है यहाँ | ये नदी का किनारा ,यह बहता पानी और यह सूर्यास्त का दृश्य भी कितना मनभावन लग रहा है | और सच तो यह था कि  मैं दूसरी बार तुम्हारा दिल तोड़ना नहीं चाहता था |

वो लगभग मेरा हाथ खीच कर उठाते हुए बोली… तुम्हे बुखार है और तुम घर जाकर आराम करो | हमलोग फिर कभी यहाँ मिलेंगे | यह नदी कही भागने वाली नहीं है | सूर्यास्त रोज़ होता है यहाँ |

मैं तुम्हारे  साथ यहाँ से नहीं चल सकती , इसलिए पास में मेरी एक मासी रहती उन्होंने मुझे बुलाया था , उनसे मिल कर आती हूँ |

मैं चलते चलते पूछा कि  बंद दरवाज़ा का रहस्य तो बताओ | वो जबाब में बोली कि  उसी समस्या को ठीक करने के लिए ही मासी के पास जा रही हूँ..शायद उन्होंने ही मेरे चाचा से कुछ शिकायत कर दी थी |

इतना कह कर वो तेज़ कदमो से दूसरी दिशा में चल दी ,और मैं सोचता हुआ लौट रहा था कि  चलो अब मंथरा का तो पता चला |

आज अगर हमें बुखार नहीं होता तो सारी सच्चाई का पता चल गया होता | मैं मंद गति से चलता हुआ पहले बुखार की दवा खरीदी और फिर वापस रूम पर आ कर उसी के बारे में सोचता रहा कि  वो मेरे बारे में इतना कुछ कैसे जानती है |

मेरे हर पसंद और नापसंद की जानकारी थी …रात के करीब आठ बज चुके थे और दरवाज़ा पर हल्का दस्तक. | .मुझे समझते देर नहीं लगी कि  दरवाज़ा पर कौन खड़ी  थी. ..(क्रमशः)

इससे आगे की घटना हेतु नीचे दिए link पर click करें …

सिर्फ हँसना था मुस्कुराना था

ये कौन सी  करोना की आफत आई

बेचैन हो उठी ज़िन्दगी अपनी 

हँसना भूले.  ख़ुशी मनाना भूले

अपनों से  आँख  मिलाना भूले,

आओ,  एक वादा करे अब

मुँह लटका कर जीना नहीं

हँस कर गम को  पीना सीखे..

रो रो कर दिल बहलाना नहीं

हँस हँस कर दर्द छुपाना सीखे… 

 BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

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6 replies

  1. बहुत सुन्दर संस्मरण।

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  2. Kahani bhi acchi hai saat Kavita bhi acchi hai.

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