# एक अधूरी प्रेम कहानी #…7 

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ज़िन्दगी की तलाश

यह कैसे हो गया ?….मेरी आँखों के नीचे घाव को देख कर सुमन चिंतित हो कर पूछ बैठी |

बस छोटी सी घाव है, ठीक हो जाएगा  …मैं हँसते हुए ज़बाब दिया |

मैं कुछ बोलता ,उससे पहले ही वो हाथ पकड़ कर अपने चैम्बर में ले गई और वहाँ रखे “फर्स्ट ऐड बॉक्स” से दवा  निकाल कर खुद से ही लगाने लगी ….. तब उसे पता चला कि घाव तो गहरा था और मुश्किल से आँख बच गया था | 

वो दवा लगाते  हुए रोने लगी. …उसके आँख से आँसू निकलने लगे |

मैं कुछ समझा नहीं और हड्बडा  कर पूछ बैठा …तुम रो क्यों रही हो ?

तुम बेतुकी हरक्कत क्यों करते हो ?  अगर तुम्हे कुछ हो जाता तो ?

अरे सुमन, तुम इत्मीनान रखो,  भगवान् इतना निर्दयी नहीं है ..

वो तो तुम्हे परेशान करने के लिए ही मुझे धरती पर भेजा है |

यह सब बातें चल रही थी कि  ..उधर से मैनेजर साहेब गुज़र रहे थे और उन्होंने सुमन और मुझे उसके चैम्बर में देख लिया |

वो अपने चैम्बर में आते ही बेल बजाया  तो चपरासी रामू काका दौड़ा दौड़ा आकर सामने खड़ा हो गया |

मेनेजर साहब — आप सुमन जी को खबर कर दीजिये कि अभी स्टूडियो चलना है |

 जी साहेब, बोल कर रामू काका, सुमन मैडम के पास जाकर, मैनेजर साहेब का फरमान सूना दिया |

उधर मैनेजर  साहेब सुमन को इस तरह मुझे सेवा करता देख कर जल -भुन गया था  | शायद वो सोच रहा था कि  मजदूर आखिर मजदूर होता है |

एक मजदूर के लिए सुमन को  इतना हमदर्दी क्यों ? कम से कम अपनी पोजीशन का तो ख्याल रखना चाहिए |

मैनेजर साहेब , अपनी आँखे बंद कर कुर्सी पर बैठा हुआ इन्ही बातों में खोया था और उसे पता ही नहीं चला कि सुमन कब आ कर सामने खड़ी हो गई है  |

सुमन ने आवाज़ लगाई …विशाल सर , अब चले ?…

हाँ .. हाँ ..चलो ,. अचानक सुमन को सामने देख हडबडाहट में मैनेजर  साहेब ने ज़बाब दिया | और अपनी सीट से उठ खड़े हो गए |

बाहर निकल कर कंपनी की कार में दोनों बैठे और विशाल साहेब ड्राईवर को चलने का इशारा  किया |

मैं  अंदर से उनलोगों को कार में बैठ कर जाते देखता रहा और अपने किस्मत को कोसता रहा कि मैनेजर साहब की तरह मैं क्यों नहीं पढ़ा लिखा और उनकी तरह बड़ा ओहदा में क्यों नहीं हूँ ?

एक भगवान् हरेक इंसान की किस्मत अलग अलग तरह से कैसे लिख देता है ? यही सोचते हुए मैं रमेश बाबू के पास पहुँच गया और अपने कामो में लग गया |

अचानक सेठ जी इधर आ गए और काम का जायजा लेने लगे और हिदायत भरी नजरो से बोल रहे थे…यह माल का कन्साइनमेंट आज ही जाना चाहिए,  अर्जेंट है |

जी साहेब,  आज ही चला जायेगा ..मैंने सेठ जी को आश्वासन भरे लहजे में कहा |

बहुत अच्छा रघु …तुम काम ख़तम करके मेरे पास आना | कुछ ज़रूरी काम है तुमसे  |

मेरा  तो दिल ही धड़क गया …कही हमारे और सुमन के बीच के रिश्ते को जान तो नहीं गए है ?

फिर भी मन को शांत करते हुए कहा …जी सर,  आता हूँ |

सुमन आज फिर स्टूडियो के काम से  इतनी थक गई थी कि काम समाप्त कर सीधे घर चली गई थी |

और मैं शाम को उसकी राह देखता रहा लेकिन वो वापस नहीं आयी |

पता नहीं क्यों, सुमन को देर रात तक स्टूडियो में काम करता देख  और वो भी मैनेजर  साहेब के साथ.. ..मुझे अच्छा नहीं लगता था |

मेरे दिल में बस यही ख्याल सताते रहता है कि  मैनेजर, विशाल बाबु, सुमन को अपने जाल में ना फँसा ले |

वो तो मेरी तरह अनपढ़ और गरीब थोड़े ना है | वो तो स्मार्ट. पढ़ा लिखा और यहाँ उसका बॉस भी है| इस सबसे ज्यादा बड़ी बात कि  वह कुंवारा भी था | इसलिए शादी का दबाब भी बना सकता है |

इन सब बातों को सोच कर मुझे इर्ष्या होने लगती थी,  लेकिन मैं कुछ कर भी तो नहीं सकता था | और सुमन को अपना शादी का प्रस्ताव भी नहीं दे सकता था | वो तो जानती है कि मैं पहले से ही शादी – शुदा हूँ |

इधर, सुमन रात का खाना खा कर ज़ल्दी  ही सोने चली गई, क्योकि कल जल्दी फैक्ट्री जाना है |  गारमेंट का एक बड़ा आर्डर मिलने  वाला है  | सेठ जी ने कल ही इस बात की जानकारी दे दिया था |

धीरे धीरे सेठ जी कंपनी की  ज्यादा जिम्मेवारी वाला  काम सुमन को सौपते जा रहे थे | उसे काम में तो मज़ा आ रहा था |

लेकिन अकेले रहने के कारण  सभी कुछ संभालना मुश्किल हो रहा था | इसलिए बार बार उसके मन में एक पुरुष की कमी का एहसास होते रहता था |

मैं आज सुबह फैक्ट्री पहुँचा तो रमेश बाबु ने कहा …जल्दी से पांच गट्ठर जो आयी है उसे खोलना  है ताकि इसकी प्रचार सामग्री .. मॉडलिंग के लिए सुमन मैडम के हवाले किया जा सके |

सुमन का नाम सुनते ही मैं इधर उधर देखने लगा, तो रमेश बाबु ने फिर टोका …क्या इधर उधर देख रहे हो ?            जरा जल्दी जल्दी हाथ चलाओ |

मैं गट्ठर खोल कर रमेश बाबु के हवाले कर दिया |

वाह ,बहुत अच्छा रघु… तुम्हारे काम का जबाब नहीं… रमेश बाबु खुश होते हुए बोल पड़े |

धन्यवाद् रमेश बाबु …मैंने कहा |

लेकिन सुमन मैडम कही दिख नहीं रही है | क्या रोज़ स्टूडियो में सूटिंग होता है |

अरे नहीं…रमेश बाबु बोल पड़े |

आज तो एक बहुत बड़ा आर्डर मिलने  वाला है | उसी सिलसिले में सेठ जी और मैडम जी मीटिंग में गए है |

आज कल सेठ जी सुमन मैडम पर बहुत भरोसा करने लगे है तभी तो हर छोटे बड़े फैसले में मैडम का ही चलता है |

बात हो ही रही थी कि तभी मैंने देखा …सुमन  हाथों में फाइल संभाले सेठ जी के साथ कार से उतर रही है |

वो आज बहुत खुश दिख रही थी | तभी तो आते ही मुझे एक पैकेट  पकड़ाते  हुए बोली…यह तुम्हारे लिए |

शायद मिठाई था, उस पैकेट में |

लंच का टाइम हो रहा था, इसीलिए उसे लेकर कैंटीन में चला गया |

तभी पीछे से सुमन भी तेज़ कदमो से चलती हुई मेरे पास आयी और बोल पड़ी …रघु ,आज मैं बहुत खुश हूँ | आज एक बहुत  बड़ा आर्डर मिला है ..एक  मिलियन डॉलर का |

मैं तो अवाक् सुमन की ओर देखता रहा | मुझे क्या पता  ..मिलियन और डॉलर |

मुझे इस तरह से अवाक् उसकी ओर देखने से वह समझ गई कि बात मेरे पल्ले नहीं पड़ी है  |

वो हँसते हुए फिर बोली …मेरा मतलब है सात करोड़ का कॉन्ट्रैक्ट है और उसका इन्चार्जे मुझे बना दिया गया है | सचमुच रघु आज मैं बहुत खुश हूँ |

अज इतने दिनों बाद सुमन को अपने सामने खुल कर हँसता देख दिल को ख़ुशी हो रही थी |

हमलोग साथ में खाना खा रहे थे तभी  मेनेजर साहेब उधर से गुज़र रहे थे,, मानो हमलोग पर नज़र रख रहे हो |

मैं खाना खाते हुए सुमन से कहा …मुझे सेठ जी ने अभी बुलाया है | मुझे तो बहुत डर  लग रहा है | पता नहीं क्या फरमान सुनाते है |

इसमें डरने की क्या बात है …सेठ जी बहुत भले इंसान है | वो तुम्हे कुछ लाभ ही पहुचाएंगे …सुमन  निश्चिंत होते हुए कहा |

खाना समाप्त कर मैं सीधा सेठ जी के चैम्बर में चला गया |

आओ रघु …सेठ जी मुझे देखते हुए बोले |

मैं सामने ही खड़ा उनके फरमान का इंतज़ार करता रहा |

थोड़ी देर बाद फाइल से ध्यान हटा कर मेरी तरफ मुखातिब हुए और कहा …. रघु,, तुम्हारे  काम से कंपनी बहुत खुश है, इसलिए कंपनी ने तुम्हारी पगार को ५०% बढाने  का फैसला लिया  है |

और हमारा धारावी में जो नया फैक्ट्री चालू हो रहा है उसमे तुम्हारे जैसे अनुभवी आदमी की ज़रुरत है | आप कल से ही वहाँ काम शुरू कर दीजिये. |

घर के नजदीक होने से आप को आने जाने में भी सुविधा रहेगी …सेठ जी खुश होते हुए मुझे समझा रहे थे |

सेठ जी फरमान जारी कर यह सोच रहे थे कि मैं खुश हो जाऊंगा और उनको धन्यवाद कहूँगा | लेकिन उन्हें क्या पता था कि वो मेरा सुख चैन ही नहीं बल्कि मेरी  साँसे भी छीन रहे है |

मैं सुन कर स्तब्ध रह गया,  वैसे तो ज़िन्दगी में पैसो की बहुत अहमियत होती है,  लेकिन मुझे ज़रा सी भी ख़ुशी महसूस नहीं हो रही थी  |

मैं चुप चाप  साँसे रोके उनकी बात को सुनता रहा ..लेकिन बोला कुछ नहीं | मेरा मन बहुत दुखी हो गया | सुमन से मिलने की एक वजह जो थी वो भी छीनता दिखाई दे रहा था |

इधर सुमन फाइल लेकर मैनेजर  साहेब के चैम्बर में आयी थी | उसे नए कांसिग्मेंट के बारे में कुछ ज़रूरी निर्देश उनसे लेने थे   | तभी मैनेजर बाबू सामने बैठी सुमन का  हाथ पकड़ कर भावुक होते हुए उसकी ओर देख कर  बोल पड़े .. .सुमन,  मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ  और शादी करना चाहता हूँ |

अचानक इस तरह की बात सुनकर सुमन भौचक्का रह गई | और उसी समय मैं एक फाइल देने उनके कमरे में प्रवेश किया और उनकी बाते सुन ली | मैनेजर साहेब मुझे देख कर थोडा खीझ कर  बोल पड़े…..आप थोड़ी देर बाद में आइये, अभी हमलोग ज़रूरी काम में व्यस्त है…   (क्रमशः)

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