# रिक्शावाला की अजीब कहानी # ..10 

आज सुबह सुबह रघु काका ने आवाज़ लगाई….क्या राजू, अभी तक सो रहे हो | पता है, दिन चढ़ आये है | मैंने आँखे खोली और कहा … पता है काका,  लेकिन ज़ल्दी उठ कर भी क्या  करना है |

लॉक डाउन के कारण कोई काम – धंधा तो है नहीं | घर में बैठ कर सिर्फ रोटियां ही तोड़नी है |      वह भी पता नहीं और कितने दिन घर का राशन पानी चल पायेगा | यही हाल रहा तो उपवास करने के दिन आ जायेंगे |

तुम ठीक कहते हो राजू…..अंजिला, जब से गई है,  हमलोग के बुरे दिन शुरू हो गए है | वो हमलोगों के लिए तो साक्षात् लक्ष्मी थी | पता नहीं वह बेचारी  वहाँ कैसी  होगी |

अंजिला का ज़िक्र होते ही मेरे दिमाग में जैसे हलचल शुरू हो गई | मैं बिस्तर पर लेटा अपनी आँखे बंद  किये अतीत में खो गया …सच, .हम ने अपनी इस छोटी सी उम्र में ही कैसे कैसे दिन देख लिए है |

जब पिता जी की मौत हुई थी तो मेरी पढाई छुट गई और बुरे दिन की शुरुआत हो गई  | फिर नौकरी की तलाश में बनारस आना हुआ और संयोग से रघु काका  और फिर अंजिला के संपर्क में आना, … लगा बुरे दिन समाप्त हो गए है |

पर यह सब  एक धोखा निकला …और हमारी ख़ुशी कुछ दिनों तक ही बरकरार रही |         परिस्थिति ने फिर करवट बदली और सब कुछ उल्टा पुल्टा हो गया |

पहले तो कोरोना की बिमारी आयी और फिर अचानक अंजिला अपने देश चली गयी | और आज हम सब इस स्थिति में आ गए है कि हमें पता नहीं है कि कल भोजन नसीब होगा या नहीं |

समझ में नहीं आता है, आने वाला समय कैसा होगा |  घर से निकलना बिलकुल बंद हो गया है |   लोगों से मिलना जुलना बंद है, काम धंधा बंद है…   ऐसा लगता है जैसे ज़िन्दगी ठहर सी गई हो |

अपनी ज़िन्दगी की सारी दिनचर्या ही बदल चुकी है | सभी लोग डरे सहमे से जी रहे है | कोई घर से बाहर  नहीं निकलता, बाज़ार और गलियां बिलकुल वीरान और सुनी हो गई है |

यह सामने चाय की दुकान जो हमेशा लोगों से आबाद  रहता था | राजनितिक और सामाजिक चर्चाएँ चलती रहती थी,  चाय के साथ समाचार पत्रों को लेकर देर तक बैठे रहना ..आज यह दूकान विराना है | और वहाँ पड़ी बेंच और कुर्सियों पर कुत्तों का बसेरा है |

चौक चौराहे पर सिर्फ पुलिस वाले नज़र आ जाते है |  ऐसा लगता है इमरजेंसी लग गया है |      जिस बनारस के बारे में कहावत थी कि  बनारस कभी सोता नहीं है …वह बनारस अब पूरी तरह वीरान हो गया है ……चाहे मंदिर हो,  बाज़ार हो या गंगा घाट,  सभी वीरान नज़र आ रहे है |         

  कभी कभी सडको पर घुमने वाली आवारा पशुयें,  बन्दर और अन्य जानवर नज़र तो आते है पर उन्हें देख कर ऐसा लगता है कि लोगों से वीरान पड़ी शहर को देख कर वे भी चिंतित हो खाने की खोज में भटक रहे हो |

इसी तरह तीन महीने गुज़र गए इसी आस में कि अब सभी कुछ सामान्य हो जायेगा |  लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, बल्कि घर का राशन पानी समाप्त हो गए |

ये तो भला हो यहाँ के कुछ सामाजिक कार्यकर्ता का जिन्होंने भूखे लोगों के लिए लंगर चला रखे है | काका और अपना पेट भी उन्ही लोगों के दिए हुए खाना से भर कर किसी तरह से जिंदा है |

स्थिति सामान्य होने के बजाए और भी भयावह हो चुकी है |  रही सही कसर कंपनी वालों ने निकाल दिया .| .तीन महिना का क़िस्त बकाया होने पर,  पहले तो उन्होंने चेतावनी देते हुए एक सप्ताह में बकाया क़िस्त जामा करने को कहा |

चूँकि काम काज तो हो नहीं रही थी तो पैसे कहाँ से जमा  कराता |

और एक सप्ताह के बाद कंपनी वाले गुंडों को लेकर आये और ज़बरदस्ती मेरी  “ई–रिक्शा” उठा कर ले गए | मैंने लाख आरज़ू मिन्नत की पर उन्होंने मेरी एक ना सुनी….मैं बस अपनी किस्मत पर रोता ही रह गया |

मैं यही सब सोच रहा था कि  रघु काका की आवाज़ आयी…बेटे क्या सोच रहे हो ?

तब मुझे ध्यान आया कि  लंगर में खाना बाँटने का समय हो गया है, अगर देर से वहाँ पहुँचा तो खाना ख़तम हो जायेगा और रात में हम दोनों को भूखे ही सोना पड़ेगा  |

मैं जल्दी जल्दी उठ कर लंगर में पहुँच गया और खुद वही खाना खाया और काका के लिए खाना लेता आया |

खाना खाते हुए काका ने कहा ….रघु बेटा, कब तक हमलोग लंगर के भरोसे रहेंगे | अगर कहीं यह बंद हो गया  तब क्या  होगा ?

आप ठीक कहते है काका | इसलिए हम सोच रहे है कि अपना ई – रिक्शा चला गया तो क्या हुआ |

आप का रिक्शा तो है ना |  क्यों ना आप के रिक्शे को चलाया जाये |  अब तो लॉक डाउन में ढील दी जा रही है |  कुछ तो पैसे आयेगे |

तुम ठीक कहते हो राजू…..मैं भी रात में रिक्शा चलाऊंगा  | अब तो मेरे पैर भी बिलकुल ठीक हो गए है

और  इस तरह फिर से जीवन की गाडी को वापस पटरी पर लाने की कोशिश करूँगा |

दुसरे दिन से हमलोगों ने रिक्शा चलाना शुरू कर दिया | हालाँकि पैसेंजर ( passanger) कम मिल रहे थे, लेकिन कुछ ना कुछ तो कमाई हो ही रही थी  और उसी के सहारे खाने पिने का खर्च निकल रहा था |

कुछ दिनों तक तो इसी तरह सब चलता रहा पर एक दिन जब रघु काका सुबह सो कर उठे तो उनकी तबियत ठीक नहीं लग रही थी …..वो खांस रहे थे और उनको बुखार भी था | 

मैं सोच ही रहा था कि  अब क्या करूँ तभी पडोस में रहने वाले बिनोद भाई ने शंकित स्वर में कहा …अरे राजू भाई, अपने मोहल्ले में भी करोना फ़ैल गया है इसलिए अपने काका को भी करोना का टेस्ट करवा दो |

इस पर मैंने  पूछा … कहाँ लेकर  जाना होगा टेस्ट कराने , मुझे तो कुछ पता ही नहीं है |

 बिनोद भाई ने कहा …मैंने सुना है कि सरकारी अस्पताल में मुफ्त में करोना की जांच  हो रहा है |

रघु काका बुखार से तप रहे थे और आज सुबह से कुछ खाया भी नहीं था |

बाज़ार से दवा लाकर भी दिया ,लेकिन कोई  फायदा नहीं हो रहा था |

र्मैने काका से पूछा …. मैं सोचता हूँ कि आप को हॉस्पिटल में  किसी डॉक्टर से दिखा दिया जाये | घर में तो और हालत बिगड़ जाएगी |

उन्होंने धीरे से कहा ….ठीक है, और मुझे देख कर रोने लगे |

मैं उनका  हाथ पकड़ कर कहा …काका हिम्मत से काम लीजिये | मैं हूँ ना आप की देख भाल करने के लिए |

काका हॉस्पिटल जाने को तैयार हो गये और मैं सहारा देकर रिक्शे पर बैठाया और उनको मास्क लगाने को कहा और  खुद भी  मास्क पहन लिया | और धीरे धरे रिक्शा चलाते हुए, पास के “कबीर चौरा हॉस्पिटल”  ले गया |

वहाँ पहुँच कर देखा तो भीड़ लगी हुई थी | पता चला कि करोना  की जाँच करने हेतु लाइन लगी हुई है | मैं  पर्ची कटवाने हेतु लाइन में खड़ा था | थोड़ी देर में मेरा नंबर आ गया |

उन्होंने मेरी पर्ची पर डॉ का नाम और काउंटर no.5 लिखा और साथ ही साथ करोना की जांच के लिए भी लिख दिया |

फिर क्या था, डॉ साहब ने काका को देखते ही बोले ….पहले तुरंत करोना टेस्ट आप दोनों करवा लें , यहाँ मुफ्त में हो रहा है | उसके बाद मैं मरीज़ को देखूँगा |

हमलोग दोनों टेस्ट कराने  के लिए लाइन में आ गए और हमलोगों का जांच हेतु सैंपल ले लिया गया और उन्होंने कहा …आप लोग यही थोड़ी देर इंतज़ार कीजिये,  अभी रिपोर्ट मिल जाएगा |

दुर्भाग्य से काका का रिपोर्ट  पॉजिटिव आया और मेरा नेगेटिव |

फिर क्या था …काका को वहाँ के स्टाफ तुरंत स्पेशल वार्ड में ले जाने  की तैयारी करने लगे |.

 उन्होंने एक फॉर्म भराया  और  घरवालों के बारे में जानकारी मांगी |

मैंने बताया … ये अकेले है इसका कोई परिवार नहीं है | मैं इनके साथ रहता हूँ और मैं इनका दूर का रिश्तेदार हूँ |

उन्होंने  मेरा मोबाइल नम्बर . नोट कर लिया और मुझे बताया कि कोरोना के इलाज़ के लिए आपके काका को भर्ती कर रहे है | यहाँ ऐसे मरीजों के लिए एक स्पेशल वार्ड बनाया गया है और वहाँ किसी को जाना  या मिलना जुलना वर्जित है |

जब ये ठीक हो जायेंगे तो आपके मोबाइल पर सूचित कर दी जाएगी और तब आप इन्हें ले जायेंगे |

उन्होंने यह भी बताया कि अस्पताल में ही रहने खाने पिने और दवा की व्यवस्था सरकार की तरफ से है

और मुझे घर जाने की सलाह दी |

मैं काका के  लिए काफी परेशान हो उठा | क्योकि करोना के बारे में जानता  था कि यह बहुत खतरनाक बिमारी है | इसलिए मैं काका को घर ले जा कर अच्छी तरह देख भाल करना चाहता था |

लेकिन यहाँ वे लोग मेरी एक ना सुनी और काका को मेरी आँखों के सामने ही ले जा रहे थे | काका बस एक टक  मुझे देखे जा रहे थे और उनके आँखों से आँसू बह रहे थे |

मैं भी असहाय उन्हें देखता रहा और कुछ नहीं कर सका |  मुझे इस वक़्त अंजिला की अचानक याद आ गई , अगर वह यहाँ होती तो डॉक्टर से बात कर विशेष चिकित्सा की व्यवस्था करा देती |

मैं अपनी आँखों में आँसू लिए वापस रिक्शा के पास आ गया |

उसी समय हॉस्पिटल का स्टाफ मेरे पास आये और कहा …तुम्हारे काका करोना पॉजिटिव निकले है इसलिए तुम भी घर जाकर सात  दिनों के लिए एकांत वास में रहना  और किसी से मिलना जुलना नहीं है |

मास्क लगाना और sainitizer का प्रयोग करना. | और अगर कुछ लक्षण दिखे तो उसी समय आ कर करोना टेस्ट फिर से करा लेना |

मैं जब अपने महल्ले में पहुँचा तो मेरे पहुँचने से पहले ही यह खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल चुकी थी कि रघु काका को करोना  हो गया है |

सभी लोग मुझे डरी हुई निगाहों से दूर से ही घुर घुर  कर देख रहे थे …मानो  मैं कोई आदमी नहीं,  भुत हूँ |

मुझे बहुत तकलीफ हुआ पर क्या करता,  मन मार कर घर में घुसा …और काका के बिस्तर और सभी सामान को किनारे रख दिया और sanitise कर दिया ताकि अपनी सुरक्षा कर सकूँ .

.रोज़  मैं अपने मोबाइल में चेक करता कि रघु काका के स्वस्थ होने का समाचार आया हो |…….(क्रमशः )

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2 replies

  1. कहनी अच्छी एवं दिल को छूने वाली है।

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