आइए, अहिंसा दिवस मनाएँ

 अहिंसा एक भावना है जिसका अर्थ होता है प्रेम | किसी प्राणी को न मारना और न दुख देना ही अहिंसा है। भारतीय परंपरा में यह एक व्यक्तिगत नियम है, जो किसी भी व्यक्ति को रोकता है कि वह दूसरे व्यक्ति को चोट पहुंचाए।

लेकिन आज के सामाजिक माहौल में हिंसा का हर रूप देखने को मिलता है | किसी को अपमानित करना, शोषण करना, व्यंग या ताने देना और शस्त्रों का प्रयोग आदि कई रूपों में हिंसा का प्रयोग हो रहा है |

दुनिया भर में लोगों को अहिंसा के मार्ग पर चलने की सीख दी जाती है। अहिंसा के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल दुनिया भर में आज के दिन (2nd October ) अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस को मनाने की शुरुआत 15 जून 2007 में हुई थी। आज 2nd October को महात्मा गांधी का जन्मदिन भी है |

लेकिन अहिंसा का नाम आते ही सबसे पहले भारत और महात्मा गांधी की छवि हम लोगों के दिमाग में आती है। महात्मा गांधी ने एक लाठी के दम पर अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। पर ये लाठी अंग्रेजों को चोट पहुंचाने के लिए नहीं थी, बल्कि अहिंसा के मार्ग पर बिना डगमगाए चलने के लिए थी। 

महात्मा गांधी के तीन बंदर  वस्तुतः  मानव स्वभाव के तीन महान गुणों के प्रतीक हैं। पहला बंदर  अपनी आँखें बन्द कर रखी हैं, जो सन्देश देता है कि व्यक्ति को संसार की बुराई को नहीं देखना चाहिए |

दूसरा बंदर जिसका मुंह बन्द है, वो सन्देश देता है कि किसी के बारे में बुरा नहीं बोलना चाहिए | और

तीसरा बन्दर जिसके कान बन्द हैं, वो सन्देश देता है कि किसी की बुराई अथवा निन्दा नहीं सुननी चाहिए |  यदि संसार में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति इन तीन बातों का अपने व्यवहार  में अमल करे तो पारिवारिक और  सामाजिक तनाव अपने आप ही दूर हो जायेगा | हम अहिंसा के मार्ग पाए चल सकते है |

आइये इसकी चर्चा विस्तार से करते है …

तीन बंदरों की वह मूर्ति  गांधीजी को नागपुर के पास स्थित सेवाग्राम आश्रम में  एक चीन के प्रतिनिधिमंडल ने भेंट की थी । चीनी प्रतिनिधिमंडल ने तीन बंदरों की मूर्ति बापू को देते हुए कहा था कि इसकी कीमत खिलौने से ज्यादा भले न हो,  लेकिन इन बंदरों से मिलने वाले संदेश चीन में बेहद लोकप्रिय हैं ।

हर साल  गाँधी जयंती पर हमलोग  गांधी जी को याद तो करते ही है |  साथ ही साथ गाँधी जी के तीन बंदरों  की भी याद आती है | दरअसल यह बन्दर नहीं है बल्कि महात्मा गांधी के तीन विचारों को दर्शाने वाले ये मूर्ति है | जो हमें बताते हैं कि व्यक्ति को हर तरह की  बुराई से दूर रहना चाहिए।

मतलब न बुरा देखा जाए, न बुरा कहा जाए और न बुरा सुना ही जाए। राष्ट्रपिता के इन विचारों का वैज्ञानिक आधार भी है जो बताता है कि गलत विचार कहना, सुनना और बोलना हमारी शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए ठीक नहीं है |

आज के समय के बारे मे ये बंदर क्या कहते है ? ….

बुरा मत देखो :

यह सही है कि सोशल मीडिया पर नकारात्मक कंटेंट देखने वालों पर इसका गहरा असर पड़ता है और धीरे  धीरे उसका व्यवहार भी नकारात्मक होने लगता है |

हंगरी के एक प्रोफेसर जॉर्ज गर्बनर ने 1960 में कल्टीवेशन थ्योरी दी थी। इसमें बताया गया कि व्यावसायिक टीवी कार्यक्रमों में दिखाया जाने वाला कंटेंट से हमारे दिलो-दिमाग पर गहरा असर करता है। ऐसे लोग मीन वर्ल्ड सिंड्रोम के शिकार हो जाते हैं और उन्हें दुनिया में दुख, षड्यंत्र, अनहोनी की आशंकाएं ज्यादा दिखने लगती हैं।

उदाहरण के लिए, टीवी धारावाहिक देखने वाले लोगों की मानसिकता महिलाओं के प्रति ठीक वैसी हो जाती है, जैसे धारावाहिकों में उन्हें चित्रित किया जाता है।

बुरा मत बोलो :

यह तो हम सभी जानते है कि कड़वे बोल बहुत तरह के समस्याओं को जन्म देता है | एक कहावत है कि हमारी बोली ही हमें पान भी  खिलवाता है और यही बोली लात – जूते  भी खिलवाता है |

 हमेशा बुरा बोलते रहने से मानसिक समस्याएं पैदा होती है और इससे हमारी इम्युनिटी भी घटने लगती है |
यह हम सभी जानते है कि बोलने का सीधा संबंध सोचने से है |   

व्यक्ति जैसा बोलता है, उसका असर उनके दिमाग और शरीर पर होता है। एक बड़े वैज्ञानिक अध्ययन से पता लगा कि जब लोग खुद में ही नकारात्मकता से बात करते (सेल्फ टॉक) हैं तो उनकी मानसिक प्रक्रियाएं प्रभावित होती हैं।

इसके अलावा, गुस्सा, कड़वे बोल व अन्य उत्तेजित विचारों के आने से हमारे  फेफड़े तेजी से सांस भरने लगते हैं और मांसपेशियां स्वत: चलने लगती हैं। इससे शरीर का संतुलन बिगड़ता है जो प्रतिरक्षा (immunity) पर असर करता है।

बुरा मन सुनो...

यह सन्देश देता है कि बुरा मत सुनिए | बार बार कोई असत्य चीज़ सुनने को मिलता है तो वह सत्य प्रतीत होने लगता है अतः असत्य को सुनना ही नहीं चाहिए |

जब गाँधी जी को तीन बन्दर की मूर्ति उपहार के रूप में मिले तो वे इसे देख कर वे  काफी खुश हुए |

उन्होंने इस मूर्ति को  अपने पास जिंदगी भर संभाल कर रखा । इस तरह ये तीन बंदर उनके नाम के साथ हमेशा के लिए जुड़ गए।

इन तीन बुद्धिमान बंदरों का जापान से भी  नाता है | तीन संदेश देते तीन बंदरों को जापानी संस्कृति में शिंटो संप्रदाय द्वारा काफी सम्मान दिया जाता है।

यह माना जाता है कि ये बंदर चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के थे और आठवीं शताब्दी में ये चीन से जापान पहुंचे थे । उस वक्त जापान में शिंटो संप्रदाय का बोल बाला था। जापान में इन्हें ”बुद्धिमान बंदर” माना जाता है और इन्हें यूनेस्को ने अपनी वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल किया है।

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8 replies

  1. बहुत अच्छा।

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  2. बहुत सुंदर पोस्ट 📯

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