आशा के तुम दीप जलाओ

कभी – कभी हमारे जीवन में कुछ ऐसी घटनाएँ घट जाती है जिसके कारण मन उदास हो जाता है और हम गुमसुम रहने लगते है | हालांकि उदासी, किसी बड़े दुख के अनुभव का एक छोटा सा हिस्सा मात्र होता है ।

ये एक ऐसा दर्द भरा अनुभव होता है, जो अकसर किसी बाहरी फ़ैक्टर जैसे कि, ब्रेकअप,  झगड़ा या किसी करीबी फ्रेंड के साथ असहमति,आदि  की वजह से जन्म लेता है।

ये उदासी एक ऐसी आम भावना है, जिसे हर एक इंसान अपनी ज़िंदगी के किसी न किसी दौर में महसूस जरूर करता है | इन्हीं भावनाओं को समेटने का प्रयास है ये कविता |

आशा के तुम दीप जलाओ

तुम आज गुमसुम क्यों बैठे हो ?

निराश मन को कुछ समझाओ

दुख के बादल छट जाएंगे

आशा के तुम दीप जलाओ |

आपस के इस रंजिश को

प्रेम – भाव से तुम सुलझाओ

 मिट जाये  मन का क्लेश 

ऐसा करके कुछ  दिखलाओ |

बढ़े आपस में भाई-चारा

 नफरत को तुम दूर भगाओ

और अधिक लालच क्यों करना ,

जो है उसी में खुशी मनाओ |

मन में फैले अँधियारों को

ज्ञान  का प्रकाश दिखलाओ

इस  जीवन की कीमत समझो

नवजीवन की ज्योत जगाओ |

(विजय वर्मा )

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Categories: kavita

9 replies

  1. Wah बहुत सुंदर पंगतियाँ

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  2. सुन्दर एवं शिक्षाप्रद कविता। साधारण भाषा के निहितार्थ गुढ़ है।

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  3. Bahut sundar kavita. Aasha hi Bharosa hai.Aasha humko jineka Bharosa deti hai.

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  4. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    Your attitude is like a price tag.
    It shows how valuable you are.

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