# रंगों का त्योहार#

दोस्तों ,

आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं …

एक बार फिर आज हम लोगों ने होली का आनंद लिया | लेकिन पिछले दो सालों से कोरोना  के कारण खुल कर होली नहीं मना पा रहे थे | होली रंगो और उल्लास का पर्व है, लेकिन सही मायनों में उल्लास की थोड़ी कमी नज़र आ रही है , इसका मुख्य कारण है कि इस बार भी लोग कोरोना के वापस फैलने की आशंका से डरे हुए है |

कल मैंने अखबार में पढ़ा …  कोरोना वायरस की फिर से फैलने की आशंका है, यह समाचार डराने वाली है |

 फिर भी इस बार की होली मे खूब मज़े किए | हालांकि हम लोगों ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया था कि समूह में होली नहीं  खेलेंगे  बल्कि अपनों के बीच पूरी सुरक्षा के साथ बिलकुल साधारण ढंग से होली मनाएंगे  ताकि सभी लोग कोरोना के कहर से बचे रह सकें |

कल होलिका दहन था लेकिन कुछ खास मज़ा नहीं आया | हालाँकि  हमारे जीवन में इसका बहुत महत्व है, क्योंकि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। यही इस त्यौहार की विशेषता है |

एक दूसरे को रंग में सराबोर करने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर चेहरे पर पुते रंग को साफ करते है और  थोडा विश्राम करके अपनी थकान मिटाते है |

फिर शाम के समय नए कपड़े पहन कर हम लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं | अबीर लगा कर सभी से  गले मिलते हैं | जो बुजुर्ग होते है उनके पैरो में अबीर डाल कर उनसे आशीर्वाद लेते है | एक दूसरे को मिठाइयाँ  खिलाते हैं |

आज इस होली के अवसर पर मुझे अपने  बचपन की  होली याद आ गई , क्योंकि  बचपन में होली की मस्ती कुछ ज्यादा ही रहती थी |

घर में लड़ झगड़ कर नई पीतल वाली  पिचकारी और रंग मंगवाते थे और साथ ही घर की  बहुत सारी हिदायतें होती थी  कि होली कैसे खेलना है ?

लेकिन  यह क्या ?   सुबह हुआ नहीं कि दोस्तों की टोली घर के दरवाजे पर !!  और सब लोग जोर – जोर से चिल्लाने लगते थे — अरे भोला ( मेरे बचपन का नाम),  घर से बाहर निकलो, और बुरा ना मानो होली है जैसे नारे लगने लगते थे  |

और घर वाले मुझे मजबूरी में घर से बाहर निकलने देते थे और फिर हम लोग  जो  हुरदंग मचाते थे, वो हम  कैसे भूल सकते है ?

जब मौका मिलता एक बन्दे को सब मिलकर कीचड़ में पटक देते और देखते – देखते ग्रुप के सभी दोस्त कीचड़ से सन जाते थे |  और तो और, रंग भी चेहरे पर ऐसा लगता कि कोई तीसरा आदमी देख कर हमें पहचान भी नहीं पाता |

गजब का उत्साह होता था, हम लोगों के हाँफपैंट वाले दोस्तों के ग्रुप में | बुशर्ट  सभी के इतने फाड़ दिए जाते कि पूरा बदन झाँकता था |

एक ढोलक या कनस्टर  का जुगाड़ करते और फिर  झाल बजा – बजा कर होलिका गाते हुए बारी- बारी से सभी के घर जाते | जिनके घर के सामने गाना बजाना चलता, वो लोग बड़े प्यार से घर का बना हुआ “पुआ” और  “गुजिया”  हम लोगों को खिलाते थे |

इस तरह दोपहर तक यह कार्यक्रम चलता था  और  फिर चेहरे से रंग उतारने  की  जद्दोजहद शुरू हो जाती |

इस अवसर पर इससे जुड़ी एक बचपन की घटना याद आ रही है | उस समय हम सभी दोस्त छोटे थे और होली के हुड़दंग के लिए बदनाम थे | होली के चार दिन पहले से  ही लोगों को ज़बरदस्ती रंग डाल देते तो कभी किसी को कीचड़ में डाल देते थे | और इस तरह होली का मज़ा लेते थे  |

एक बार की बात है कि होली के दिन माँ के साथ रेलगाड़ी से नानी के घर जा रहे थे | एक घंटे का सफर था और दिन के ग्यारह बज रहे थे | लोकल ट्रेन थी जो काफी धीमी गति से चलती थी | लेकिन बचपना ऐसा था कि ट्रेन जितना लेट होता तो मुझे खुशी होती थी, क्योंकि ट्रेन में ज्यादा देर बैठ कर बाहर का सुंदर नज़ारा देखने का मौका मिलता था |

मैं खिड़की के पास बैठ कर बाहरी नज़ारा का लुफ्त उठा रहा था | तभी मैंने ट्रेन से बाहर देखा तो कुछ बच्चे हाथों में गोबर और कीचड़ लेकर ट्रेन की तरफ फेंक रहे थे | मुझे यह देख कर मजा आ रहा था, क्योंकि मैं भी कभी – कभी होली के मौके पर ऐसी हरकतें करता था |

तभी अचानक एक पत्थर आ कर हमारे बगल में बैठे एक सज्जन के आँख के पास लगी | पत्थर नुकीला था, इसलिए वे बुरी तरह से ज़ख्मी हो गए और खून बहने लगा |

मैं यह देख कर बहुत डर  गया | कोई कह रहा था कि भाग्य से उनकी आंखें बच गई, वरना पत्थर उनकी आँख में लगती तो न जाने क्या हो जाता |

चूंकि ट्रेन अपनी गति से चल रही थी, इसलिए अब अगले स्टेशन पर ही उनका इलाज संभव था | वहाँ बैठे सभी लोग उन बच्चों को कोस रहे थे जो कीचड़ -पत्थर ट्रेन की तरफ फेंक रहे थे |

यह घटना देख कर मुझे भी उस दिन आभास हुआ कि होली का हुड़दंग कभी -कभी अप्रिय घटना को जन्म दे देता है | उस दिन के बाद मैंने इस तरह की  हरकतें करने से तौबा कर ली  |

आज सचमुच वो बचपन के होली के बिताए दिन बहुत याद आते है |  ना ज़िन्दगी  की जद्दो-जहद, …. ना चिता, ना फिकर, ना  गुस्सा , ना नफरत .. सिर्फ प्यार और खुशियों के पल … और ना ही  कोरोना का  डर |

लेकिन आज के दौड़ में परिस्थितियां भले ही बदल गयी है लेकिन इन पर्व को मनाने के पीछे की भावना नहीं बदली है  |  वो भावना है ख़ुशी को सबों में बांटना …. समाज के हर तबके को बराबरी का अधिकार देना |

उंच – नीच,  जाति – धर्म के भेद – भाव से ऊपर उठ कर सच्चे मन से पर्व मनाना और सबों में खुशियाँ बाँटना ताकि हमारा समाज और देश खुशहाल हो सके और आपसी सम्बन्ध मजबूत हो सके | …..आपसी भाई चारा हमेशा कायम रहे |

आपके जीवन में हो रंगों की भरमार,

ढेर सारी खुशियों से भरा हो आपका संसार ,

यही दुआ है मेरी ईश्वर से इस बार

होली मुबारक हो आपको दिल से हर बार |

होली की हार्दिक शुभकमनायें

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5 replies

  1. पहले की होली के वास्तविक चित्रण के साथ बदलते समय की सही चर्चा पर आधारित रचना।

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  2. होली पर्व की शुभकामना।

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