# ऊँट की सवारी #

हमारी पोस्टिंग उन दिनों शिवगंज शाखा में थी | यह एग्रीकल्चर डेवलपमेंट शाखा थी यानी हमारी शाखा  से कृषि ऋण ही ज्यादा दिए जाते थे | इसलिए कृषि ऋण तीन जिलों के किसानो को दिया हुआ था –  सिरोही, पाली  और जालोर  |

मुझे इंस्पेक्शन  में काफी दूर – दूर जाना पड़ता था | हमारे पास शाखा में एक जीप थी उसी से सारे  इलाके में घूमते थे | जालोर जिले का अधिकांश हिस्सा  रेत से भरा हुआ रेगिस्तान था | रास्ते  में कभी कभी  रेत भरी आंधी  का सामना हो जाया करता था | जिसके कारण हमारे चेहरे और शरीर में  रेत भर जाते थे | हालत ऐसी होती थी कि शाम को इंस्पेक्शन से वापस घर आता था मैं शीशे में अपना चेहरा भी नहीं पहचान पाता था | सचमुच नित नए अनुभव प्राप्त होते रहते थे |

उन्ही दिनों की एक वाकया मुझे याद आ रहा है | है तो यह ३० साल पुराना, फिर भी आज  मैं सुनाना चाहता हूँ |

एक बार मैं अपने ड्राईवर के साथ निरिक्षण के लिए तकथगढ़  पहुँचा | यह हमारी शाखा से काफी दूर था | काफी लम्बा सफ़र तय किया था इसलिए चाय पीने की तलब हुई | तभी मैंने देखा कि पास में एक ठेले पर चाय बन रही है |

मैंने चाय का आर्डर दिया | तो चाय वाले ने पूछा —  कटिंग दूँ के |

मैं उसकी बात समझा नहीं,  तो हमारे ड्राईवर बाबु लाल जी ने बताया – कटिंग चाय का मतलब, आधी कप चाय और फुल का मतलब भर कप चाय |

मुझे उसकी बात सुन कर हँसी आ गयी क्योंकि आज मैं ने  एक नयी चीज़ सीखी थी .. कटिंग  चाय |

तभी देखा  कि पास के ठेले में गरम गरम मिर्ची पकौड़े  तले जा रहे थे | मुझे खाने की इच्छा हुई तो मैंने उसे भी मंगा लिया | सचमुच बहुत बड़े बड़े मिर्ची थे लेकिन मिर्ची पकौड़े बहुत ही स्वादिस्ट थे |

चाय पीकर आगे की यात्रा शुरू  की |  हमें नासौली  गाँव जाना था | जीप अपनी रफ़्तार से चल रही थी | गजब का नज़ारा था | चारो तरफ रेत ही रेत, कही एक भी  पेड़ पौधों का नामो निशान  नहीं था | रेत के  बड़े बड़े टीलें दिखाई दे रहे थे और साथ में धुल भरी आंधियां भी उठ रही थी |

हमारे जीप और हमारे शरीर रेत से भर गए थे | किसी तरह अगला गाँव पहुँचना था | दोपहर का समय था और  गर्मी के मारे बुरा हाल हो रहा था |

तभी अचानक मेरी जीप बंद हो गयी | मैं तो बिलकुल घबरा गया | क्योंकि चारो तरफ रेत ही रेत और कोई आदमी रास्ते में दिखाई नहीं पड़ रहा था | हमलोग तकथगढ़ से करीब सात – आठ किलोमीटर की ही सफ़र तय की थी |

जीप की खराबी पकड़ में नहीं आयी | अब हमलोग बीच  रास्ते में फंस चुके थे, समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए ?

तभी उलटी दिशा से एक ऊँट आता दिखाई दिया | पास आने पर देखा कि कोई ” रेबारी” है जो पास के गाँव से आ रहा है और तकथगढ़ कोई सामान लेने जा रहा है | यह इलाका रेगिस्तान होने के कारण इधर के लोग ऊँट पर ही सफ़र करते थे |

मेरे ड्राईवर बाबु लाल जी ने इशारा से ऊँट वाले को रुकवाया और मुझे ऊँट से तकथगढ़ जाने को कहा ताकि वहाँ से किसी मिस्त्री को भेज सकूँ जीप ठीक करने के लिए |

मुझे बहुत डर लग रहा था | मैं पहले  कभी ऊँट  पर बैठा नहीं था , लेकिन अब तो कोई विकल्प भी नहीं था | गर्मी के कारण बुरा हाल तो था ही | वो तो भला हो ऊँट वाले का , जिसने  ख़ुशी ख़ुशी मुझे साथ ले चलने को राजी हो गया |

मैं किसी तरह ऊँट पर बैठ गया और हिचकोले खाते हुए अपनी यात्रा शुरू हो गयी | कुछ दूर चलने के बाद मेरी  घबराहट कुछ कम  हुई और मैं सामान्य होकर आराम से बैठा रहा |  फिर तो वो रबारी  पुरे  रास्ते बातें  करते चल रहा था | मैं भी उत्सुकता से उसकी बातें सुन रहा था और रास्ता यूँ ही कट रहा था |

हम रेबारी समाज के है और  राजस्थान में सबसे बड़ा ऊँट पालक है हमारा समाज  | हमारे यहाँ  ऊँट को राज्य पशु घोषित किया गया है |

उसने  बताया कि  मेरे पास ४० ऊँट  है, और हर साल अजमेर के पुष्कर मेले में करीब दस ऊँट बिक जाती है |

अजमेर के पास स्थित पुष्कर में बहुत बड़ा मेला लगता है जिसमे ऊँट की खरीद बिक्री होती है  | मुझे ऊँट  पालने का बहुत अनुभव है और हमारे पास विभिन्न नस्ल के ऊँट है | इनमें से मुख्य नस्ल नाचना और गोमठ ऊँट हैं।

नाचना नस्ल के ऊँट तेज दौड़ने वाले होते हैं जबकि गोमठ ऊँट कृषि संबंधी या भारवाहक के रूप में काम में लाया  जाता है । इसके अलावा अलवरी,  बाड़मेरी,  बीकानेरी,  कच्छी,  सिंधु और जैसलमेरी ऊँट की नस्लें भी राजस्थान में मिलती हैं।

मैंने  बचपन में यह तो सुना था कि ऊँट 10 से 15 दिनों तक बिना पानी पिए जिंदा रह सकता है । लेकिन इन्होने हमें  बताया कि ऊँट जरूरत पड़ने पर 7 महीने तक बिना पानी के रह सकता है । लेकिन इस लम्बी अवधि में बिना पानी के इतने लंबे समय गुजारने की वजह से ऊँट का वजन आधे से भी कम हो जाता है ।

कुदरत ने इस जानवर को इतने अनोखे तरीके से बनाया है कि यह पानी को अपने अंदर महफूज कर लेता है और बाद में अपने शरीर में मौजूद उसी पानी का इस्तेमाल करके कई महीनों तक रेगिस्तानी इलाकों में जिंदा रह लेता है। 

उन्होंने बताया कि जब कभी ऊँट को लंबे समय के बाद पानी मिलता है तो एक ही वक्त में यह ऊँट 100 से 200 लीटर तक पानी पीने की क्षमता रखता है। 

मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि सहारा और अरब में लोग इस भारी जानवर के मांस को खाने या बेचने के लिए पालते हैं |  कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस जानवर के दूध का इस्तेमाल करने के लिए इसे पालते हैं | 

इस जानवर के मांस की तासीर गर्म होती है | ऊँट की  मांस स्वादिष्ट तो होती ही  है लेकिन  इसके खाने से बहुत से बिमारी में लाभ भी  होता है |

सबसे बड़ी बात कि ऊँट के दूध में कैल्शियम और आयरन की मात्रा आम दूध से 10 गुना ज्यादा होती है और इसी वजह से ऊँट का दूध बहुत ही महंगा मिलता है। ऊँट का दूध बहुत गाढ़ा होता है इसलिए राजस्थान में चाय में भी इस दूध का इस्तेमाल होता है |

उस रेबारी से बात करते हुए रास्ता कैसे कट गया पता  ही नहीं चला और अपनी मंजिल मंजिल आ गयी |

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Categories: मेरे संस्मरण

18 replies

  1. Lovely and beautifully penned

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  2. एक सुंदर संस्मरण 👌

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  3. संतोष सिंह's avatar

    30 वर्ष पुराने संस्मरण को उसी सटीकता से लिख देना लाजवाब
    👏👏👏👏👏

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    • सच कहा संतोष,
      हमलोगों के साथ बिताये कितने ही यादगार लम्हें है
      जिसे कलमबद्ध किया जा सकता है |
      ब्लॉग पढने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद..

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  4. मजेदार संस्मरण।

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  5. Good memory event with information about ship of the desert.

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  6. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    Surround yourself with people who know your worth.
    You don’t need too many people to be happy…
    just a few real ones who appreciate you for
    exactly who you are…
    Stay happy …Stay connected..

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  7. मोहन"मधुर"'s avatar

    ऊॅट के बारे में जानकारी युक्त और रोचक संस्मरण।

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  8. बहुत बहुत धन्यवाद /

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Trackbacks

  1. # ऊँट की सवारी # – Nelsapy

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