
दोस्तों,
ज़िन्दगी में बहुत सारे लम्हों को हम जीते है जो बाद में भी याद आते रहते है | खास कर नौकरी के दिनों में बहुत सारे छोटे छोटे अनुभव प्राप्त होते है | कुछ घटनाये तो ऐसी घटती है जो मानस पटल पर एक अमित छाप छोड़ देती है |
कुछ सुखद लम्हे फिर याद आते है, खास कर जब हम रिटायर्ड हो जाते है | सच, वो बीते लम्हों को याद कर बरबस चेहरे पर मुस्कान आ जाती है | मुझे महसूस होता है कि वो बीते लम्हों को अपनों के साथ शेयर करना चाहिए |
आज उसी कड़ी में एक और संस्मरण पेश कर रहा हूँ |
बात उन दिनों की जब मैं बैंक में नया ही था और उस समय एक नया जोश और कुछ अच्छा करने का जोश अपने शबाब पर था |
मैं उन दिनों राजस्थान के शिवगंज शाखा में पोस्टेड था और हमारा काम किसानों को ऋण देना और क़िस्त की वसूली करना था | मैं मन लगा कर काम कर रहा था | लेकिन उन दिनों राजस्थान अकाल की स्थिति से गुज़र रहा था क्योंकि लगातार तीन सालों से पर्याप्त बारिस नहीं हुई थी |
ज़ाहिर सी बात है कि ऋण के किस्तों की वसूली में दिक्कतें आ रही थी | मैं दिन में फील्ड विजिट के दौरान किसानो से मिलने जाता तो उनसे मुलाकात नहीं हो पाती थी, क्योंकि वे अपने खेतों में काम करने चले जाते थे |

तभी जोनल मेनेजर का निर्देश आया कि आप रातों में गाँव में रुकें, यानी night stay करें, ताकि किसानो से मुलाक़ात हो सके और तभी ऋण की उगाही हो पायेगी | लेकिन हमारे शाखा के ज्यादातर ऋणी पानी की कमी के कारण सही ढंग से खेती नहीं कर पा रहे थे और इसीलिए क़िस्त भी नहीं चूका पा रहे थे | मुझे भी उन किसानो से हमदर्दी थी | इसलिए उन पर ज्यादा दबाब नहीं डालता था |
एक दिन अचानक हमारे क्षेत्रीय प्रबंध महोदय, उदयपुर से ब्रांच विजिट के तहत हमारे शाखा में पधारे | ब्रांच में ही उन्होंने एक स्टाफ मीटिंग की और फिर लंच लेने के बाद कहा कि हम आपके एरिया के किसानो से मिलना चाहते है |
हमारी शाखा में क्षेत्र का दौड़ा करने के लिए जीप थी सो बाबु लाल ड्राईवर के साथ, शाखा प्रबंधक गुप्ता जी, क्षेत्रीय प्रबंधक बघेल साहब और मैं गाँव की ओर निकल पड़े |
करीब आधे घंटे के सफ़र के बाद हमलोग सांडेराव गाँव पहुंचे | वहाँ एक एक कर फार्म हाउस का विजिट करने लगे |
वहाँ किसानो के मुँह से हमारी शाखा की बड़ाई सुन कर साहब बहुत खुश हो रहे थे और सभी को ज्यादा से ज्यादा ऋण मुहैया कराने का आश्वासन दे रहे थे |

दरअसल, हमारे किसान भाई लोग बड़े बड़े कास्तकार थे, ज्यादातर लोगों के पास खेती हेतु बड़ी बड़ी ज़मीने थी | लेकिन पानी की कमी के कारण वे मुश्किल से १० % खेतो में ही फसल लगा पा रहे थे | किसान भाई लोग भी साहब से मिल कर खुश हो रहे थे | इस तरह शाम के छः बज चुके थे और अंधियारा छाने लगा था |
मैंने साहेब से बोला – सर , अब हमें वापस चलना चाहिए |
उन्होंने मेरी ओर देखते हुए कहा – नो वर्मा, मैं तो यहाँ night stay करने की सोच रहा हूँ | गाँव में रात बिताने का मज़ा ही अलग है | उनकी बात सुन कर मैं घबरा गया | मैं सोच रहा था कि अब मैं किस किसान के फार्म में आज रात्रि में साहब को ठहराया जाए |
मैं सोच ही रहा था कि सामने से हनुमंत सिंह जी अपने ट्रेक्टर पर आते दिख गए | उन्होंने देखते ही हमलोग के पास आये और आश्चर्य से पूछा – आप हमसे मिले बिना ही वापस जा रहे है ?
मैंने बड़े साहब का परिचय हनुमंत जी से कराया , तो हनुमंत जी ने साहब को हाथ जोड़ कर विनती पूर्वक कहा – आप तो शहर में रहते है | आज हमारे गाँव में रात बिताएं |
साहब तो यही चाहते थे | उन्होंने तुरंत कहा – बिलकुल सही, आज मैं आपके साथ ही रात्रि भोज करूँगा |
बस, फिर क्या था, उन्ही के फार्म हाउस की ओर हम सभी चल दिए | वहाँ कुछ और किसान भी आ गए और कृषि से जुडी समस्याओं पर चर्चा होने लगी | बड़े साहब बहुत उत्साही थे , क्योंकि गाँव के लोग बहुत सज्जन और सीधे सादे होते है |
बात करते हुए रात के नौ बज चुके थे और हमलोग के लिए भोजन आ चूका था | हमलोग खाना समाप्त ही किये थे कि बड़े साहब ने कहा – आज मौसम कितना सुहाना है | चारो तरफ हरियाली और बड़े बड़े फार्म हाउस है | चलो कुछ और लोगों के फार्म पर चल कर मिलते है | रात में तो किसान अपने फार्म पर ही मिलेंगे |
मैं कभी इतनी रात को गाँव का दौरा नहीं किया था इसलिए मुझे कोई अनुभव नहीं था | लेकिन हमारा ड्राईवर बाबु लाल ने साहब को बोला – मैं इस एरिया में सभी ऋणी किसान के फार्म को जानता हूँ , आप जिस किसान को बोलेंगे मैं वहाँ पहुँचा सकता हूँ |
ठंडी ठंडी हवा चल रही थी और चारो तरफ खेत परन्तु घोर अँधेरा था | हमलोग जीप के हेड लाइट के रौशनी में पगडण्डी पर चलते हुए दुष्यत सिंह के फार्म पर पहुंचे | उनका बहुत बड़ा फार्म था | बिजली मोटर चलने की आवाज़े आ रही थी, गेहूं के खेतों को पानी पटाया जा रहा था |
मैं जीप से उतर कर उनके फार्म हाउस के बाहर से आवाज़ लगाईं |
तभी अन्दर से आवाज़ आयी — कौन ?
मैंने तुरंत अपना परिचय दिया तो वे अन्दर से बोले. .— वर्मा साहब ! आइये, अन्दर आ जाइए दरवाज़ा खुला ही है |
मैंने दरवाज़ा धकेल कर अन्दर प्रवेश किया | अन्दर हलकी सी रौशनी थी और सामने कुर्सी पर दुष्यंत सिंह बैठे थे और सामने दारू की बोतल खुली हुई थी | हमें देखते ही वे बोले– आइये वर्मा साहब—दो चार पेग हो जाये |
मैं घबरा कर ज़ल्दी से बोला …आप से मिलने के लिए उदयपुर से बड़े साहब आये हुए है | वे लड़खड़ाते हुए उठे और हाथ जोड़ कर साहब को नमस्कार किया |
फिर वे बोले – साहब , आप हुक्म किया होता मैं आपके पास हाज़िर हो जाता |
साहब ने कहा – यहाँ सभी कास्तकार से मिल रहा था , तो आप के पास भी चला आया |
दुष्यत सिंह गाँव के ठाकुर थे और ठाकुर लोगों का पीना पिलाना शौक होता है | मैं थोड़ी देर औपचारिक बात चित कर वहाँ से चलने में ही अपनी भलाई समझी , वर्ना दारु की नदियाँ बह जाती |
मैं वहाँ से निकल कर वापस हनुमंत सिंह की फार्म की ओर चल दिया ताकि दिन भर की थकान को आराम कर मिटाया जा सके |

मैं कुछ दूर ही चला था कि तभी ड्राईवर बाबु लाल बोल पड़ा – सुमेर सिंह का भी फार्म पास में ही है | रात के दस बज रहे थे और चारो तरफ बिलकुल अँधेरा था | मैं तो और कही जाने के पक्ष में बिलकुल ही न था |
लेकिन बड़े साहब को जाने की इच्छा थी, उनके निर्देश की अवहेलना भी नहीं कर सकता था |
थोड़ी ही देर में सुमेर सिंह जी के फार्म के गेट पर था | जीप के हेड लाइट से गेट को खोला गया और जीप जैसे ही १० मीटर आगे चली होगी कि फार्म हाउस के मकान से उस रात के अँधेरे में किसी औरत की आवाज़ गूंजी – वही रुक जाओ | हमलोग घबरा गए | हमें लगा कि वे लोग हमें चोर डाकू समझ रहे है ?
मैंने तुरंत बाबु लाल से कहा – आप हेड लाइट के सामबे आप खड़े हो जाए ताकि उनको आभास हो जाये कि हमलोग डाकू नहीं है | बाबू लाल वैसा ही किया और स्टार्ट जीप के हेड लाइट में खड़ा हो गया |
थोड़ी देर में दो औरत अपने हाथ में बन्दुक लिए हमारे सामने प्रकट हुई | अँधेरा में उसका चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था लेकिन देखने में फूलन देवी टाइप लग रही थी | पास आते ही बाबू लाल जी को उन्होंने पहचान लिया और फिर उन्होंने जो कहा उसे सुन कर मेरे होश उड़ गए |
उन्होंने बताया कि सुमेर सिंह दुसरे खेत पर गए हुए है | हमारा गाँव में दुश्मनी भी चलते रहता है | हमने समझा कोई दुश्मन या डाकू लोग आ गए है | इसलिए बन्दुक लेकर छत पर चली गए और वही से आप लोग को आवाज़ लगाईं थी | अगर आप लोग नहीं रुकते तो हम फायर कर देते क्योंकि इतनी रात गए कोई अपना मिलने वाले नहीं आते है |
फिर उन्होंने कहा — आप फार्म हाउस पर पधारो, ज़िम्मन (Dinner) कर के जाओ |
हमारे मेनेजर साहब गुप्ता जी के पैर काँप रहे थे और आवाज़ भी | वे कांपती आवाज़ में बोले — नहीं मैं फिर कभी आऊंगा |
और मैं आगे की घटना फिर कभी सुनाऊंगा …||
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Categories: मेरे संस्मरण
Danke für den Beitrag und die extra schönen Bilder. Lieben Gruß zu Dir zu Euch von Lis
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Vielen Dank ..Ich hoffe, Ihnen hat
dieser Beitrag gefallen..
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o ja, sehr sogar. Danke
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Guten Morgen, Schatz,
Einen schönen Tag noch..
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Danke…
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Danke Liebes, wie war der Tag?
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Danke, der Tag war heute für mich sehr schön. Hatte Freunde eingeladen und haben einen wunderschönen Grill Nachmittag verbracht. Ich hoffe Du hattest auch einen schönen und angenehmen Sonntag. Sende lieben Abendgruß zu Dir … Lis
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Ja liebes,
Der Tag war sehr schön,
Aber meine Stimmung war am Abend gestört, weil Indien heute das WM-Spiel verloren hat.
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मज़ेदार वाकया।
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बहुत बहुत धन्यवाद डिअर
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Very nice. Is Farm house visit photo a real one or today’s? Very good video clip.
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Thank you dear,,
That photo from google ..
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
A New Year is like a blank book, and the pen is in your hand..
It is your chance to write a beautiful story for yourself..
Wish you and your family a very happy new year 2022..
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वाह! रोमांचक संस्मरण। ऐसे संस्मरण जीवन के लिए नई सीख देते हैं।
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बिलकुल सच कहा डिअर ,
ज़िन्दगी में ऐसी बहुत सारी छोटी छोटी घटनाएं है , जिससे हमें सीख मिलती है |
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