# मंजिल की ओर #

कहते है कि ज़िन्दगी में कोई ख्वाब ना हो तो ज़िन्दगी जीने का मज़ा ही क्या है | बिना ख्वाब के ज़िन्दगी अधूरी अधूरी सी लगती है | हर दिल में कोई न कोई ख्वाब पलता है जिसे पाने के लिए हम दिल से  प्रयत्न करते हैं |

कई बार रात में सोते वक्त भी वही ख्वाब नजर आता है | जब दिल में हसरतें पलने लगती है तो रात में नींद कम और ख्वाब को हकीकत बनाने का जूनून ज्यादा ही  होता हैं | इन्ही जुनून की ज़द्दोज़हद ने आज शब्दों का रूप ले लिया है .. आइये हम सब इस पल का लुफ्त उठायें… ..

मंजिल की ओर

 रोज लड़ता हूँ मैं  

 अपने ख्वाबो को ,

हकीकत में बदलने के लिए

हर हाल में जीतने के लिए ,

इसलिए  मुठ्ठी को भीच कर

अपने सांसों को खीच कर

कोशिश करता हूँ  उसे पाने के लिए

मंजिल के और करीब जाने के लिए

दृढ निश्चय मेरे इरादे को पक्का करता है

हर समय मुझमे एक नया जोश भरता है

 मंजिल की ओर मुझे  बढ़ते जाना है

अपने ख़्वाबों को हकीकत बनाना है |

( विजय वर्मा )

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Categories: kavita

11 replies

  1. हा हा सही कहा आपने 😊🤗

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  2. अच्छी कविता।

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  3. Nice poem.Video clip is also heart touching.

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  4. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    Relationship is the finest bond between two humans,
    It matures with time & passion, it is maintained through
    Connectivity, trust, care always allow it to blossom..

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