किस्मत की लकीरें …7

कितना भी पकड़ लो, ….फिसलता ज़रूर है
ये वक़्त है साहब ….बदलता ज़रूर है …

vermavkv's avatarRetiredकलम

कितना भी पकड़ लो, ….फिसलता ज़रूर है

ये वक़्त है साहब ….बदलता ज़रूर है …

काफी लोगों की भीड़ वहाँ इकट्ठी हो चुकी थी. | सभी लोगों को ऐसा लग रहा था कि खदान में ज़ल्द ही पानी भर जायेगा और उसमे फँसे सभी पचास मजदूर उसी में दफ़न हो जायेंगे |

किसी को भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि खदान के अन्दर जाकर ब्लॉक हुए रास्तों को खोलने और मजदूरों को बचाने का प्रयास करे |

इधर कालिंदी ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए खदान में उतरने का फैसला ले लिया |

वहाँ खड़े सभी लोग कालिंदी को खदान के अन्दर जाने से मना कर रहे थे लेकिन उनलोगों के मना करने के बाबजूद भी उसने मन ही मन अपने पिता को याद किया और फिर खदान में उतर गयी | उसे अपने पिता के आशीर्वाद पर भरोसा था |

उसके साथ ही वहाँ ड्यूटी पर तैनात…

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