# दिल की कलम से #

कभी कभी हम इंसान कुछ ऐसी घटनाएँ और कुछ  विकट परिस्थिति से गुज़रते है कि उसे सोच कर मन हमेशा  ही सहमा सहमा सा और परेशान रहता है ।  

लेकिन अगर यही चिंता लम्बे वक़्त तक बना रहे, तो जीवन नीरस लगने लगता है | ऐसे में क्या किया जाए कुछ समझ में नहीं आता है |

ऐसी हालत में इंसान अपने दिल के गुबार को अपनी कलम  के सहारे निकालने का प्रयास  करता है ….

दिल की कलम से

आज अजीब सी बेचैनी है तेरी यादों की

आँखे तो बंद है पर नींद नहीं  क्यों है ?

शायद वो  जख्म फिर उभर आया है

दिल तो संभाला है, पर आँखें नम क्यों है ?

यह सच है कि तुम आस पास नहीं हो

फिर भी तुम्हारे होने का भरम क्यों है ?

तोडा था तेरा दिल, कोई मजबूरी थी

दिया हुआ वचन पूरा करना जरूरी थी

पर यकीं मानो मेरा दिल भी भरपुर रोया था

सोचा था वक़्त के साथ ये ज़ख्म भर जाएंगे  

जीना  है तो पुरानी यादों के सहारे जी लेंगे

अभी अभी ऐसा आभास हो रहा है कि

तू भी मुझे याद करती है..

खुदा से मेरे मिलने का फ़रियाद करती है 

पर मैं नहीं चाहता हूँ कि

दिल की बात जुवां  पर आए

और तू इस तरह मेरे लिए  बदनाम हो जाए

मत लिख ये कलम  अपने ग़मों को इस पन्ने पर

उन्होंने पढ़ भी लिया तो क्या कर पाएंगे

उन्होंने   मुझे नहीं समझा तो भला  

मेरे ज़ज्बात को वे क्या समझ पाएंगे ??…

विजय वर्मा

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Categories: kavita

11 replies

  1. A beautiful poem about longing and intellectual reflections 👍

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  2. Poem is beautiful accompanied by beautiful and heart touching video clip.

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  3. सुप्रभात मित्र!
    “दिल की कलम से”लिखा है आपने!
    मन के भावों को कागज पर सही –
    उतारा है आपने!
    ऐसा लगता है किसी से शिकायत है……
    ऐसा लगता है किसी और से मुहब्बत है…
    जो जख्म आपने पाला है-
    दर्द ही दर्द का रखवाला है…..
    दर्द ही दर्द का……..
    :– मोहन”मधुर”

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    • सही कहा मोहन डिअर ,
      सच्चा दोस्त मन की बात समझ लेते है |
      अपने विचार साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |

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  4. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    किसी ने पूछा –सुख क्या है ?
    तो जबाब मिला — आज के समय में सुख का मतलब सिर्फ इतना है कि
    आप डॉक्टर और वकील को न ढूंढें , और पुलिस आप को न ढूंढें |

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